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कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान मुंबई महानगर क्षेत्र में शहरी गरीबों की स्थिति का विश्लेषण

By April 28, 2021December 20th, 2023No Comments

कोरोना महामारी की दूसरी लहर के तेजी से फैलने के मद्देनज़र हमने 15–18 अप्रैल 2021 के बीच शहरी गरीबों की स्थिति का एक संक्षिप्त विशलेषण किया। इस सर्वे में मुंबई महनगरिय क्षेत्र जिसमें चार शहर -मुंबई, नवी मुंबई, पनवेल और वसई — विरार शामिल हैं, के 35 से ज्यादा समुदायों के करीब 297 घर (1432 लोग) का सर्वेक्षण किया। यह लेख इसी सर्वेक्षण के प्रारम्भिक कुछ निष्कर्षों का एक संक्षिप्त सारांश प्रस्तुत करता है। यह निष्कर्ष काम तथा मज़दूरी की हानि, और बुनियादी जरूरतों तक पहुंचने में असमर्थता जैसी समस्याओ की ओर इशारा करते है। सर्वेक्षण में शामिल कई परिवारों ने काम करने व मिलने में सक्षम बताया लेकिन इससे अधिक चिंता उन्हें भविष्य के बारे में काम को लेकर रही। यह स्पष्ट है कि इन समुदायों पर एक सख्त लॉकडाउन प्रभाव काफ़ी गहरा पड़ेगा, खासकर तब जब अधिकांश गरीब परिवार अभी तक 2020 के लॉकडाउन से अच्छी तरह उबर भी नहीं पाए हैं। किसी भी तरह के काम की खोज में कई लोग असंगठित श्रम कार्य में लग गये हैं।

स्थानीय मेलों में खिलौने बेचने वाले संजय कुरैशी कहते हैं, ‘मुझे आखिरी बार काम किए हुए 15 महीने हो चुके हैं।’

वसई में सड़क विक्रेता के रूप में काम कर चुकी प्रियंका कांबले कहती हैं, ‘अगर मैं आज कमाऊँगी तो हम अपना अगला भोजन कर पाएंगे। अब घर पर कोई और नहीं कमा पा रहा है। हमारे पास राशन कार्ड भी नहीं है।’

मुंबई की माधुरी सेडके ने कहा, ‘मेरे परिवार के सदस्य ने वैक्सीन ली और वे ठीक है। लेकिन COVID के कारण काम रुका पड़ा है।’

सारांश: अनिश्चितताओं में बढ़ोत्तरी, एकल आय वाले परिवारों में वृद्धि, सरकारी कल्याणकारी योजनाओं से असंगठित मज़दूरों का शामिल नहीं हो पाना, राशन तक पहुंचने में चुनौतियां व अन्य।

  • सर्वेक्षण में शामिल सभी उत्तरदाताओं में, केवल 16 प्रतिशत ने पिछले पुरे सप्ताह काम किया (8 अप्रैल से), और 59 प्रतिशत आने वाले सप्ताह में मिलने वाले काम को लेकर अनिश्चित हैं।
  • लगभग 55 प्रतिशत परिवारों को मजबूरी में परिवार में एक व्यक्ति की कमाई पर ही आश्रित होना पड़ा है।(घरेलू काम में, ड्राइवर, निर्माण कामगार, मॉल आदि में में कार्यरत परिवार के अन्य सदस्य अपने कार्य स्थलों के बंद होने, परिवहन की कमी, आदि के कारण अपना काम छोड़कर घर पर रहने के लिए मजबूर हो गये हैं)।
  • सर्वेक्षण में शामिल निर्माण श्रमिकों, सड़क विक्रेताओं, घरेलू श्रमिकों और ऑटो चालको में केवल 25 प्रतिशत ही सरकार के घोषित 1,500 रुपये की एकमुश्त राहत के पात्र हैं क्योकि केवल इन्ही लोगो के पास पंजीकरण का प्रमाण है।
  • बेघर, ट्रांसजेंडर समुदाय और एकल अभिभावक के सदस्य सबसे अधिक असुरक्षित व असहाय हैं, क्योंकि अधिकांश पहले से ही काम करने में असमर्थ हैं और अब साथ-साथ इसके लिए भी अनिश्चित हैं कि आने वाले समय में भी काम करने को मिलेगा या नहीं।
  • पिछले 2 महीनों में कोटा के अनुसार केवल 46 प्रतिशत को राशन मिला है जबकि 64 प्रतिशत के पास राशन कार्ड हैं।
  • लोगो की मुख्य चुनौतीयां काम और परिवहन में कमी (62 प्रतिशत), वेतन का नुकसान (38 प्रतिशत), घर पर भोजन की कमी (33 प्रतिशत), दुकान से राशन प्राप्त करने में असमर्थ होना (22 प्रतिशत), मौजूदा बीमारियों के लिए उपचार प्राप्त करने में असमर्थ होना (15 प्रतिशत), कन्टेनमेंट जॉन में रहना (9 प्रतिशत), और अन्य कोई कारण (39 प्रतिशत) रही हैं।
  • समुदाय में रह रहे लोगों के परिपेक्ष्य में उनका प्रमुख डर आने वाला लॉकडाउन (66 प्रतिशत), अपने गाँवों में लौटने का (54 प्रतिशत), खाने के लिए पर्याप्त नहीं होने का (56 प्रतिशत), COVID से संक्रमित होने का (52 प्रतिशत) और अन्य कारणों (5 प्रतिशत) का है।
  • सर्वेक्षण में शामिल 25 प्रतिशत उत्तरदाताओं (45 वर्ष से अधिक आयु वाले सदस्य के परिवार में) ने कहा कि उन्हें वैक्सीन के संबंध में आधिकारिक तौर पर संपर्क किया गया था, केवल 44 प्रतिशत ने कहा कि वे टीकाकरण के इच्छुक होंगे।

उत्तरदाताओं के काम की प्रकृति और अर्जित मजदूरी

  • उत्तरदाताओं ने बताया कि 40 विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में मुख्य रूप से असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
  • उनमें से ज्यादातर या तो घरेलू कामगार व निर्माण कामगार (23 प्रतिशत प्रत्येक) के रूप में काम करते हैं, पथ विक्रेता के रूप में (14 प्रतिशत), गृहिणी (11 प्रतिशत) हैं, और 5–5 प्रतिशत निजी क्षेत्र व घर आधारित कामगार, ऑटो चालक, भिखारी, साथ ही छात्र के रूप में कार्यरत हैं।
  • 42 प्रतिशत उत्तरदाता दिहाड़ी मज़दूर हैं, जबकि 34 प्रतिशत मासिक वेतन कमाते हैं, और 8 प्रतिशत साप्ताहिक मजदूरी कमाते हैं। 1 प्रतिशत ने बताया कि वे 2 नौकरियां करते हैं जिसमें दिहाड़ी और वेतनभोगी नौकरियां दोनो शामिल हैं। 1 प्रतिशत ने उल्लेख किया कि उन्होंने जो मजदूरी अर्जित की है वह कार्य आधारित थी। 15 प्रतिशत ने इस प्रश्न पर ‘लागू नहीं’ (जिसमें मुख्य रूप से गृहिणी और छात्र शामिल हैं) का उल्लेख किया।

कलीम खान वसई से एक प्लंबर और पेंटर हैं । उनके काम पाने का मुख्य तरीका नाका के माध्यम से है (सड़कों व चौराहों के ऐसे श्रम बाजार जहां श्रमिकों काम के लिए इकट्ठा होते हैं)। हालांकि, पिछले एक सप्ताह में वह केवल दो दिन काम पाने में कामयाब रहे है, और वह भी फोन के माध्यम से। उन्हें लगता है कि अगले सात दिनों तक उन्हें काम मिलने की संभावना 50 प्रतिशत से भी कम है। वे कहते हैं, ‘ मेरे दो बेटे भी निर्माण मजदूर हैं लेकिन वे भी वर्तमान में बेरोजगार हैं।’

एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति चंपा बेन भीख मांगकर अपना जीवन यापन करती हैं, भायंदर से बोरीवली तक रोजाना यात्रा करती है। वर्तमान में कोई आय नहीं होने से, कोई परिवार का समर्थन और कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है। चंपा किराया और भोजन के लिए भुगतान करने में असमर्थ है।

पिछले और आने वाले सप्ताह में काम की संभावनाएं

  • पिछले 7 दिनों में पूरे सप्ताह सिर्फ 16 प्रतिशत ही काम कर पाए, जबकि 27 प्रतिशत को कोई काम नहीं मिल पाया और 41 प्रतिशत ने सप्ताह में सिर्फ कुछ दिनों तक ही काम करने का जिक्र किया।15 प्रतिशत के ऊपर यह लागू नहीं है।
  • अगले 7 दिनों को देखते हुए 30 प्रतिशत ने उल्लेख किया कि उन्हें नहीं पता कि उन्हें काम मिलेगा या नहीं, 29 प्रतिशत ने कहा कि उनके लिए काम ढूंढना असंभव होगा।18 प्रतिशत ने काम खोजने की 50 प्रतिशत संभावना बताई, जबकि 8 प्रतिशत को आने वाले सप्ताह में नौकरी मिलने को लेकर यक़ीन है।15 प्रतिशत पर यह लागू नहीं है ।
  • सर्वेक्षण में शामिल लगभग 55 प्रतिशत परिवारों को एकल अर्जक परिवार बनने के लिए विवश हो गये हैं (घरेलू काम में, ड्राइवर, निर्माण कामगार, मॉल आदि में में कार्यरत परिवार के अन्य सदस्य अपने कार्य स्थलों के बंद होने, परिवहन की कमी, आदि के कारण अपना काम छोड़कर घर पर रहने के लिए मजबूर हो गये हैं)।

मुंबई के एक सुरक्षा गार्ड विमल चव्हाण, जो अपने परिवार में एकमात्र आय अर्जक हैं, ने उल्लेख किया कि अभी के हालात में वह काम करने के लिए यात्रा करने में सक्षम है और उन्हें भुगतान किया जा रहा है, लेकिन एक पूर्ण लॉकडाउन की सूरत में वो अब और कमाने में सक्षम नहीं हो पाएँगे। वर्तमान में वह अपने कार्यस्थल के लिए साइकिल का उपयोग कर रहे हैं क्योंकि अभी उन्हें ट्रेनों या बसों का उपयोग करने की अनुमति नहीं है। उन्हें डर है कि वह अपने किराए और खाने के खर्च का भुगतान कैसे कर पाएँगे। अगर स्थिति बिगड़ती है तो वह अगले महीने अपना पूरा वेतन मिलने को लेकर भी अनिश्चित है ।

नवी मुंबई के एक चित्रकार राजेश तायडे ने कहा, ‘मेरी पत्नी पहले एक घरेलू कामगार के रूप में काम करती थी और उसकी कमाई से परिवार की जरूरतें पूरी हो जाया करती थीं। लेकिन वायरस फैलने के कारण, वह जिस घर में काम करने जाती है उसने घरेलू कामगारों के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया है, इसलिए अब मैं केवल आय अर्जक हूं ।हालांकि वह पिछले सप्ताह में काम करने में सक्षम थे, लेकिन उन्हें नहीं पता कि वह आने वाले सप्ताह में कमाई कर पाएँगे या नहीं।

असुरक्षित व वंचित समूह: बेघर, ट्रांसजेंडर व्यक्ति, व एकल अभिभावक

  • सर्वेक्षण में शामिल बेघर और ट्रांसजेंडर व्यक्ति, जो काफी हद तक कचरा प्रबंधन और भीख मांगने में कार्यरत हैं, पिछले सप्ताह में मुश्किल से काम कर पाए थे, या केवल कुछ दिनों के लिए ही काम मिल पाया। उनमें से ज्यादातर अनिश्चित है अगर वे आने वाले सप्ताह में काम करने में सक्षम हो पाएँगे। केवल एक सदस्य ने पूरे सप्ताह के लिए काम करने की सूचना दी।
  • एकल अभिभावकों ने भी अपनी नौकरी जारी रखने में समर्थता और नौकरी खोने के डर के बारे में चिंता व्यक्त की।
  • काम ना कर पाने या ना मिल पाने के कारण बाजारों के बंद होने से लेकर भीख मांगने के लिए गाड़ियों और पड़ोस तक पहुंच नहीं होना है; ट्रांसजेंडर व्यक्तियों व कचरा प्रबंधन के लिए काम करने वाले समूहों का सबसे बड़ा डर यह है कि उनके काम करने के लिए बाहर निकलने पर पुलिस उत्पीड़न का डर भी है।

सीमा थोरट एकल अभिभावक हैं, जिनपर 5 आश्रित सदस्य हैं। जबकि वह पिछले सप्ताह में कचरा प्रबंधन का काम कर पा रही थी, अब वह अनिश्चित है कि क्या वह आने वाले सप्ताह में ऐसा करने में सक्षम रहेंगी। ‘हमारे राशन कार्ड में कुछ दिक़्क़त है इसलिए हम राशन नहीं ले पा रहे हैं। मेरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि हम आने वाले दिनों में कैसे खाएंगे ।’

शशीकला अपने परिवार की एकल अभिभावक है और एकमात्र कमाने वाली हैं। जबकि वह वर्तमान में एक घरेलू कामगार के रूप में कार्यरत है और एक क्लिनिक में सफाई का काम करती है। उन्हें यह नौकरियाँ हाल ही में मिली है, वह पिछले महीने तक बेरोजगार थी। वह लॉकडाउन को लेकर काम के नुकसान के बारे में सबसे अधिक चिंतित है। वह कहती हैं, ‘अगर मेरे पास कोई नौकरी नहीं है तो मैं अपने बच्चों को कैसे खिलाऊं। वह खुद का टाइफाइड का इलाज करवा रही है और पैसे की कमी को देखते हुए अब उनकी दवाएं खरीदना भी मुश्किल होता जा रहा है।

सरकार द्वारा राहत के घोषणा की श्रमिकों तक पहुँच

  • महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में पंजीकृत निर्माण श्रमिकों, सड़क विक्रेताओं, घरेलू श्रमिकों और ऑटो और टैक्सी ड्राइवरों को 1,500 रुपये के एक बार का हस्तांतरण की घोषणा की है।
  • सर्वेक्षण में शामिल उत्तरदाताओं में से केवल 4 निर्माण श्रमिक पंजीकृत थे (2 और आवेदन प्रक्रिया में हैं), 31 में से 11 स्ट्रीट वेंडर पंजीकृत थे, 50 घरेलू कामगारों में से 13 पंजीकृत थे, और 16 ऑटो चालकों में से 10 पंजीकृत थे।
  • सर्वेक्षण में शामिल केवल 25 प्रतिशत कामगार ही राहत के पात्र होंगे।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली तक पहुंच

  • सर्वेक्षण में शामिल उत्तरदाताओं में 64 प्रतिशत ने राशन कार्ड होने का उल्लेख किया, कई ने उल्लेख किया कि उनका राशन कार्ड उनके गांव में उनके घर के पते पर था, या फिर वर्तमान में अवरुद्ध था या वे किराए पर रहने के नाते शहर में राशन कार्ड बनाने में असमर्थ थे।
  • 46 प्रतिशत ने पिछले 2 महीनों में कोटे के अनुसार राशन प्राप्त करने का उल्लेख किया।

नवी मुंबई की एक स्ट्रीट वेंडर मंगला देसाई पिछले एक सप्ताह में काम करने में असमर्थ रही हैं और वह आने वाले सप्ताह में भी बेच पाएंगी या नहीं यह भी तय नहीं है। वह कहती हैं, ‘मेरा बेटा फल बेचता है, लेकिन वह भी घर पर बैठा हुआ है’। वह कहती है कि उन्हें राशन के लिए समर्थन देने की जरूरत है और उनके मौजूदा संकट को देखते हुए उन्हें भी काम करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

भय और चुनौतियां

  • लोगो की मुख्य चुनौतीयां काम और परिवहन में कमी (62 प्रतिशत), वेतन का नुकसान (38 प्रतिशत), घर पर भोजन की कमी (33 प्रतिशत), दुकान से राशन प्राप्त करने में असमर्थ होना (22 प्रतिशत), मौजूदा बीमारियों के लिए उपचार प्राप्त करने में असमर्थ होना (15 प्रतिशत), कन्टेनमेंट जॉन में रहना (9 प्रतिशत), और अन्य कोई कारण (39 प्रतिशत) रही हैं।
  • समुदाय में रह रहे लोगों के परिपेक्ष्य में उनका प्रमुख डर आने वाला लॉकडाउन (66 प्रतिशत), अपने गाँवों में लौटने का (54 प्रतिशत), खाने के लिए पर्याप्त नहीं होने का (56 प्रतिशत), COVID से संक्रमित होने का (52 प्रतिशत) और अन्य कारणों (5 प्रतिशत) का है।

वसई के एक शिक्षक आदित्य जाधव ने कहा, “मैं ऑनलाइन काम जारी रखने में सक्षम हूं, तो मैं शहर में रुका हुआ हूँ वरना मैंने भी घर जाने की कोशिश की होती। हालात लगातार ख़राब होती जा रही है।”

नवी मुंबई में एक ऑटो ड्राइवर ने साझा किया कि कैसे उनके समुदाय के लगभग 30 परिवार पहले ही अपने गांव के लिए रवाना हो चुके हैं।

मुंबई के एक दर्जी सलीम खान ने कहते हैं, “मार्च से मई का समय मेरे लिए व्यस्त रहने का समय है, लेकिन अब सभी काम रुक गए हैं और मुझे चिंता है कि घर का खर्च (बिजली और पानी का बिल, घर का किरायाआदि) कैसे वहन किया जाए।” पिछले सप्ताह में काम नहीं मिलना और आने वाले सप्ताह में भी बिना किसी काम के आशा के चलते, 4 लोगो के परिवार के इस एकमात्र अर्जक कि परिस्तिथि काफी असुरक्षित है।

टीकाकरण जागरूकता, तत्परता और संकोच के बारे में

  • सर्वेक्षण में शामिल 25 प्रतिशत उत्तरदाताओं (45 वर्ष से अधिक आयु वाले सदस्य के परिवार में) ने कहा कि उन्हें वैक्सीन के संबंध में आधिकारिक तौर पर संपर्क किया गया था, केवल 44 प्रतिशत ने कहा कि वे टीकाकरण के इच्छुक होंगे।
  • वैक्सीन न लेने के सबसे आम कारण हैं, कि कुछ लोगों ने इसके बारे में अफवाहें सुनी (38 प्रतिशत), टीका लगवाने की प्रक्रिया को न जानना (37 प्रतिशत), साइड इफेक्ट के बारे में चिंतित होना (22 प्रतिशत), वैक्सीन लेने के बाद खराब अनुभवों के बारे में सुनना (5 प्रतिशत) और अन्य कारण (23 प्रतिशत)।

वसई के एक चाय विक्रेता अरुण सरकेट, जो उनके परिवार में एकमात्र कमाने वाले है, ने कहा, ‘मुझे वैक्सीन लेने की प्रक्रिया नहीं पता।’ उन्होंने टीकाकरण जागरूकता और पंजीकरण में सहयोग की जरूरत जताई, खासकर कि जब 45 साल से अधिक उम्र वाले उनके परिवार के दो सदस्य हैं।

मार्च 2020 में, बिगड़ती स्थिति को देखकर, युवा ने मुंबई महानगरीय क्षेत्र (एमएमआर) के 4 शहरों में 34 समुदायों का तेजी से आकलन किया। भोजन और काम तक लोगों की पहुंच पर निष्कर्ष उस समय चिंताजनक थे। आप यहां मूल्यांकन के बारे में यहाँ पढ़ सकते हैं।

आप इस ब्लॉग को अंग्रेजी या मराठी में भी पढ़ सकते हैं।

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