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मेरा वजूद और प्रशासन

By , , February 11, 2022July 28th, 2023No Comments

सरकारी योजनओं और सुविधाओं तक पहुचने के यंत्रणाओं के साथ गठबंधन

I. अनिवार्य आधार सबका अधिकार

नवी मुंबई के तुर्भे इस एरिया में तुर्भे स्टोर ,तुर्भे नाका और तुर्भे क्वारी नाम की तिन बस्तिया हैं| उन बस्तियों में ज्यादातर लोग असंघटित खेत्र में काम करनेवाले है| ज्यादातर महिलाये घरेलूकाम कामगार है, कुछ पुरुष वाही पास की कंपनियों में मजदूरी का काम करने जाते है, कुछ लोग नाका पर खड़े होते है और कुछ लोग अन्य काम करते है| बस्ती के एक हिस्से में सेक्स वर्कर महिलाए अपना काम भी करती है| बस्ती का एक हिस्सा क्वारी का है जहा पहाड़ तोड़कर पत्थर निकालने का काम चलता था, जो अब बंद किया गया है| क्वारी की जमीन वहा की कंपनियों की मालिकों की है और कुछ हिस्सा सरकारी| इस तरह बस्ती की बाकी जमीन भी सरकारी या कलेक्टर की है| बस्ती में बसे ज्यादातर लोग काम की तलाश में मुंबई आये है और कुछ सालों से यही बस गए है| जमीन की मालकी किसकी है यह पता न होने की वजह से उनके पास कुछ मुलभुत डॉक्यूमेंट का अभाव है|

बस्ती की अधिकतर जनसंख्या अशिक्षित भी है जिसके कारण उन्हें पढ़ने और लिखने में काफी दिक्कते भी आती है| अगर उन्हें किसी डॉक्यूमेंट के लिए अप्लाई करना अहै तो एप्लीकेशन फॉर्म कहा मिलेगा? किस ऑफिस में जाना होगा? फॉर्म कैसे भरना होगा? कितने पैसे लगते है? कौनसे डॉक्यूमेंट लगते है? यह जानकारी ज्यादातर लोगों के पास नहीं थी| इसलिए वो बस्ती में जो एजेंट होते थे उनके पास जाते थे और वो एजेंट उनसे जरुरत से ज्यादा पैसे लेकर उनका काम करते थे| लोग भी उनके पास डॉक्यूमेंट नहीं होने की वजह से उतना पैसा देने को तैयार हो जाते थे क्योंकि सरकारी ऑफिस से उन्हें यही जवाब मिलता की ‘आपके डॉक्यूमेंट नहीं बन सकते क्योंकि आपके पास कोई डॉक्यूमेंट नहीं है की आप यहाँ पे रहते है|’ जिनके पास पैसे है वो अपना काम करा लेते पर जिनके पास नहीं है वो ऐसे ही रह जाते| कुछ मुलभुत डॉक्यूमेंट जैसे की आधार कार्ड, न होने की वजह से वो उनके लिए बनी कुछ सरकारी स्कीम का फायदा भी नहीं उठा पाते| इस तरह एक डॉक्यूमेंट न होने की वजह् से दुसरा डॉक्यूमेंट नहीं बन पाया और इन बस्तियों के ज्यादातर लोग किसी भी तरह का डॉक्यूमेंट बनाने से रह गए|

इस समस्या को ध्यान में रखते हुए युवा संस्था ने इस बस्ती के हनुमान नगर इलाके में अर्बन रिसोर्स सेंटर (URC) शुरू करने का तय किया| काम की शुरुवात में युवा साथी अक्सर बस्तियों में जाया करते थे पर अधिकतर लोग काम पर होने की वजह से घरपर या बस्ती में काफी कम लोग मिल पाते थे| इस बात को ध्यान में रखते हुए टीम ने लोगों के समय के हिसाब से मिलना शुरू किया| बस्ती में अवेयरनेस सेशन और मीटिंग के माध्यम से अपनी पहचान बनाई और लोगों के साथ एक रिश्ता तैयार किया| लोगों के साथ बात करते हुए पता चला की काफी लोगों के पास आधार कार्ड नहीं है (ज्यादातर जो बच्चे है उनके पास) और जिनके पास है उनके आधार कार्ड में जो जानकारी है वो अधूरी है या उसमे कुछ गलतियां है, जैसे की नाम की स्पेलिंग गलत होना, जन्म तारीख का सिर्फ साल लिखा होना, मोबाइल नंबर आधार से लिंक ना होना आदि| आधार का मोबाइल से लिंक होना अभी बेहद जरुरी है क्योंकि आधार को अपडेट करने के लिए या किसी भी स्कीम से जुड़ने की जो ऑनलाइन प्रक्रिया है उसको अभी आधार कार्ड से जोड़ा गया है| लोगों से और चर्चा करने पर पता चला की नजदीकी आधार केंद्र से नया आधार कार्ड बनाने के लिए या उनके आधार कार्ड अपडेट करने के लिए उन्हें काफी दिक्कते आ रही है क्योंकि वहा के ऑफिसर उन्हें ठीक से जवाब नहीं दे रहे है या उनके पास डॉक्यूमेंट न होने की वजह से उन्हें सहयोग नहीं कर रहे है|

इन सभी मुसीबतों को देखते हुए URC की टीम ने इस मुद्दे को लेकर बस्ती में काम शुरू करने का सोचा| शुरवात में आधार कार्ड बनाने की पूरी प्रक्रिया को स्टडी किया, जिनके पास किसी भी प्रकार का डॉक्यूमेंट नहीं है उनका आधार बनाने के लिए क्या प्रावधान है उसको ध्यान से पढ़ा| फिर युवा साथियों ने बस्ती से नजदीकी आधार सेंटर के अधिकारीयों से बात करना शुरू किया| शुरुवात में बस्ती में आधार न होनेवाले लोगों की और जिनके आधार कार्ड में गलती है ऐसे लोगों की संख्या को देखते हुए टीम ने अधिकारीयों के साथ बस्ती में आधार कार्ड बनाने का कैप लगाने की बात चलाई| पर अधिकारीयों ने साफ़ मना कर दिया| लोगों को अपने दिन भर का काम छोड़ कर आधार सेंटर पर जाकर लाइन लगना मुमकिन नहीं था और वहा जाकर भी उनका काम हो जाएगा इसकी कोई गारंटी नहीं थी| इसलिए कैंप ही एक ऐसा मार्ग लग रहा था जहा लोगों के मुश्किल को हल किया जा सकता था| पर यह पर्याय कम नहीं आया आधार सेंटर के अधिकारीयों के साथ काफी समय बात करने के बाद और लोगों को बार बार आधार सेंटर ले जाने के बाद उन अधिकारीयों के साथ युवा साथियों का एक अच्छा कनेक्शन बना| जिसके चलते अधिकारीयों ने हफ्ते के डॉन दिन इन बस्तियों से आनेवाले लोगों के आधार कार्ड बनाने के लिए रिज़र्व रखने का वादा किया| इस तरह बस्ती के लोगों को आधार सेंटर से मदद मिलना शुरू हो गया और लोगों के आधार कार्ड बनाना भी शुरू हुआ| पर अभी भी एक समस्या वैसे ही थी, जिन लोगों के पास आधार कार्ड बनाने के लिए किसी भी प्रकार का डॉक्यूमेंट नहीं था| ऐसे लोगों के लिए एक प्रावधान प्रक्रिया में किया गया है| जिसमे बताया है की एक फॉर्म जिस पर स्थानीय नगरसेवक वह लोग इसी बस्ती के रहिवासी है यह निश्चित कर के अपनी स्वाक्षरी और stamp लगाकर दे तो ऐसे लोगों के आधार कार्ड भी बन सकते है| इस प्रक्रिया को ठीक से पढ़कर युवा साथियों ने लोगों को स्थानीय नगर सेवक के पास ले जाना शुरू किया| उनकी पोलिटिकल सोच और आइडियोलॉजी की वजह से शुरुवाती तौर पर उनसे ठीक जवाब नहीं मिल रहे थे| पर बाद में युवा संस्था का काम और लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने लोगों की सहयता करना शुरू किया|

सही समय पर आधार कार्ड बनने की वजह से असंघटित क्षेत्र के कामगारों के लिए लॉक डाउन के बाद जो स्कीम सरकार ने अन्नोउंस की गयी थी उनका लाभ कुछ लोग उठा पाए| और आगे भी लोग अन्य स्कीम का फायदा उठा पाएंगे|

Usha Patnayak

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IIA. कोशिश बिन पते के बस्ती का पता ढूंढने की….

आंबेडकर नगर, यह मालाड (पूर्व) में करीबन ३५० एकर जमीन पर बसी एक बस्ती है| यह बस्ती पिछले ३० सालों से अपने मूलभूत अधिकारों और सुविधाओं से वंचित रही है| क्योंकि यह बस्ती वनविभाग के जमीन पर बसी है|

इस बस्ती के अधिकतर लोग असंघटित क्षेत्र में काम करने वाले है, जो दिहाड़ी पर काम करते है| बस्ती की अधिकतर महिलाए घरेलू काम कामगार है और पुरुष बांधकाम कामगार या अन्य कोई काम करते है| लोगों के घर प्लास्टिक और लकड़ी से बने हुए है| बस्ती में पिने के पानी, बिजली और शौचालय जैसी सुविधाओं की परस्थिति ठीक नहीं है| बस्ती को शहर से जोड़नेवाली सड़क भी अभी तक कच्ची है और बस्ती के अन्दर की सड़के भी मिटटी की बनी है| बस्ती में इन सब के अलावा और भी समस्याए है जैसे की डाक विभाग बस्ती के लोगों तक उनके दस्तावेज नही पंहुचा रहा था जिसको बस्ती के लोगों ने कभी ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया था| पर इस समस्या की वजह से बस्ती में कोई भी सरकारी या व्यक्तिगत पत्र या दस्तावेज लोगों तक नहीं पहुच पाए | इस बस्ती के इतिहास में कई संघर्ष शामिल है| मकानों के लिए, पीने के पानी के लिए, शौचालय के लिए ऐसे सभी मुलभुत सुविधाओं के लिए इस बस्ती के लोगों को संघर्ष करना पड़ता है| वही बस्ती की दूसरी तरफ ऊँची ऊँची इमारते और उनमे रहने वाले रईस लोग है दिखाई देते है| उन इमारतों में रहनेवाले लोगों को बस्ती के समस्याओं जैसी किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता|

इस बस्ती में जब URC ने प्रवेश किया तब बस्ती के इतिहास को समझने का मौका हमें मिला| लोगों के पहचान पत्र (आधार कार्ड, पैन कार्ड आदि.) बनाना, उन दस्तावेजों की मदत से लोगों को सरकारी योजनाओं से जोड़ना और उनका योजनाओं का लाभ प्राप्त करने में मदद करना इन कामो से पहचान मुलभुत सुविधा केंद्र का आंबेडकर नगर बस्ती में प्रवेश हुआ|

बस्ती में युवा संस्था अपना काम करते समय नागरिको के दस्तावेज बना तो रही थी पर कुछ समय बाद पता चलता की वो दस्तावेज नागरिको तक पहुँच ही नहीं रहे है| जिसका कारण पता लगाने के लिए जब लोगों से बात करना शुरू किया तब उसी बस्ती में रहने वाले दिपक घोंगडे ने बताया की —‘मैं इस बस्ती में कई साल से रहता हु पर मेरे दस्तावेज कभी मुझतक नही पहुंचे, यदि पहुचे तो वो भी बस्ती के लोगों के जरिये फाडकर मेरे हाथो में आये है| मुझे यह भी गारंटी नहीं है की मेरे गोपनीय (कॉंफिडेंशीअल) डॉक्यूमेंट मुझ तक सही सलामत पहुचेंगे’| और लोगों से बात करने से पता चला की डाक विभाग के लोग बस्ती में किसी भी प्रकार का पत्र लेकर आते ही नहीं है|

इस समस्या का निवारण करने के लिए बस्ती के लोगों के साथ मिलकर युवा साथी ने एक पत्र लिखा और बस्ती के लोगों के ओर से लोकल डाक विभाग में वो शिकायत पत्र जमा करने की प्रक्रिया चलाई ताकि इस समस्या पर काम शुरू किया जाए| परंतु डाक विभाग के अधिकारीयों ने यह पात्र लेने से मना किया और युवा साथी के सामने ही वो पत्र फाड़ दिया| इस वाकिये को सहना बहुत ही शर्मसार था इस लिए तुरंत नजदीकी पुलिस कार्यालय में इस मामले का केस दर्ज करवाया और पत्र को जिस व्यक्ति ने फाड़ा था उसके विरूद्ध, डाक कार्यालय में ऑनलाइन ट्विटर अकाउंट पर शिकायत भी दर्ज की| जल्द ही उस शिकायत पर जवाब आया| डाक विभाग के दिल्ली ऑफिस से युवा साथी को कॉल आया और उनको बताया गया की जल्द ही इस मामले पर करवाई की जाएगी|

कुछ ही दिनों में मुंबई के डाक विभाग के मुख्य कार्यालय से कुछ अधिकारी मालाड में आये और बस्ती के लोगों के साथ और युवा साथियों के साथ एक बैठक का आयोजन किया गया| इस बैठक में हम बस्ती में पत्र कैसे पंहुचा सकते है इस विषय पर चर्चा की गयी| क्योंकि यह समस्या की पूरी बस्ती की थी तो बस्ती के नाम से एक शिकायात नजदीकी डाक विभाग के ऑफिस में दर्ज करने के लिए कहा गया| इसलिए बस्ती के अध्यक्ष्य और वरिष्टो से बात कर के फिर से एक पत्र लिखा गया| इस पत्र के भेजने के बाद डाक विभाग से फ़ोन आया की ‘हमें बस्ती में पत्र पहुचाने में बहुत दिक्कतों का सामना करना पद रहा है| यह बस्ती वनविभाग की जमीन पर होने की वजह से लोगो के घरों पर किसी भी प्रकार के नंबर नहीं है जिस वजह से पोस्टमन को बस्ती में घरों को ढूँढने में काफी तकलीफ हो रही है और इस समस्या पर उपाय निकालना हमारे बस की बात नहीं|’ फिर से अधिकारीयों से बात करने के बाद यह तय हुआ की बस्ती में हर बड़े चाली के बाहर पत्र डालने या निकालने के लिए एक पोस्ट का डिब्बा रखा जाएगा| जहां उस चाली के सभी ख़त इकट्ठा किये जायेंगे| इस डिब्बे की जिम्मेदारी बस्ती के लोगो की ही होगी| इस तरह बस्ती की हर चाली के बाहर एक डिब्बा लग सकता है लेकिन उसकी जिम्मेदारी बस्ती के लोगों को ही लेनी होगी| बस्ती के कुछ जिम्मेदार लोगों को डिब्बे से ख़त जमा कर के लोगों तक पहुचाने होगे| जिसकी प्रक्रिया अभी भी बस्ती में चल रही है |

इस पूरी प्रक्रिया में युवा साथियों का डाक घर के अधिकारीयों के साथ एक अच्छा रिश्ता तैयार हो गया| उसके बाद बस्ती के अनेक कामों के लिए युवा साथियों ने डाक घर के अधिकारीयों के साथ गटबंधन किया| १० साल से छोटी बच्चियों के लिए डाक विभाग से सुकन्या समृद्धी योजना नामक एक योजना चलाई जाती है उस योजना में बस्ती की बच्चियों का खता खुलाने के लिए पहली बार डाक विभाग के अधिकारीयों ने वनविभाग की जमीन पर आकर बस्ती के लोगो के लिए कैंप का योजन किया| यह इस बस्तियों को सरकारी योजनाओं तक पहुचाने की पहली पहल थी|

पिछले महीने में है डाक विभाग के लोगों ने बस्ती में दो दिनों का आधार कार्ड का कैंप भी लगाया| जिसके चलते बस्ती के बहुत सारे लोग जिनका आधार कार्ड नहीं बना था उन्हें पाने आधार कार्ड बनाने का मौक़ा मिला|

यह सभी प्रक्रिया पिछले ७ महीनो से चल रही है| आंबेडकर नगर बस्ती के साथ पोस्ट अधिकारियों का संबंध पहली बार अच्छा होता दिख रहा है, सिर्फ अच्छा ही नहीं बल्कि कुछ ही दिनों में डाक विभाग के लोगोने बस्ती में आकर सुकन्या समृद्धि योजना के फॉर्म भरना भी शुरू कर दिया है| जो अधिकारी कभी बस्ती में कदम नही रखते थे, वो आज बस्ती में आकर काम कर रहे है और जो भी योजना ये बस्ती के लिए होगी उसका लाभ अब लोगो को मिल रहा है| अब बस्ती के लोग और युवा साथियों की युवा की इस पहल से आंबेडकर नगर बस्ती में लोगो के दस्तावेज बनाने का कैंप लगाकर डाक घर के अधिकारी खुद बस्ती में आकर लोगो के दस्तावेज बना रहे है|

Vijaya Babar

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IIB. Connecting an informal settlement in Mumbai with the postal system

Ambedkar Nagar is an informal settlement (slum) occupying approximately 350 acres of land in Malad East. This settlement, being situated on the land of the Forest Department, has been deprived of its basic rights and facilities for the last 30 years.

Most of the people living here are employed in the informal sector and work on daily wages. Many women work as domestic workers and the men engage in different forms of informal work. The residents’ houses are built of temporary material such as plastic or wood. The settlement suffers from inadequate access to basic services, such as potable water, electricity and toilets. The roads connecting Ambedkar Nagar to the city are still unpaved. There is another problem that people in this settlement face. Their addresses are not mapped to the country’s postal system.

Due to this, no official or personal letter/document could reach the residents over the years. When YUVA’s Urban Resource Centre (URC) started working in this settlement, we got an opportunity to better understand people’s challenges and needs. We facilitated people’s access to legal entitlements such as Aadhaar cards, PAN cards, etc. and tried to connect them with government schemes and help them avail the benefits of the schemes.

When we realised that the postal deparmtment service was not reaching the people living here, we investigated this matter more deeply. A resident, Deepak Ghongde said — ‘I have lived in the settlement for many years but my documents have never reached me and if they do, they often reach me in a damaged condition after passing through many hands. I am never guaranteed the safe delivery of my confidential documents’.

Along with the residents, the team wrote a letter to the post office official to look into this matter. However, the postal department official refused to accept the letter and tore it up. The team registered a case at the nearest police station and amplified this on Twitter handle too. This resulted in a prompt reply from the postal department, and they assured quick action.

Within a few days, some representatives from the head office of the postal department of Mumbai came to Ambedkar Nagar and a meeting was organised with the residents and YUVA team. The community leaders were asked to lodge a complaint on behalf of the entire settlement at the nearest postal office.

The postal department responded to this letter sharing that they face a lot of difficulties in delivering the letters to this settlement. There are no numbers assigned to the houses in Ambedkar Nagar, as it is situated on forest department land, making it difficult for the postmen to deliver letters. After discussing these challenges with the officials again, it was decided that a post-box would be placed outside every chawl in the settlement to collect and receive letters from and to the corresponding chawl. The residents were made responsible for this box. People in the settlement assumed responsibilities to carry out this task in the succeeding days.

Through these repeated engagements, the YUVA team also developed a good relationship with the post office officials, and this has led to further development efforts in the settlement in the following weeks. For instance, the ‘Sukanya Samriddhi Yojana’ run by the postal department, furthers the education of girls, and post office officials are now conducting camps for this scheme linkage in Ambedkar Nagar. This was the first initiative taken to introduce government schemes to this settlement by the postal office. Recently, post office officials also organised a two-day Aadhaar card camp in Ambedkar Nagar for the residents.

Officers who had earlier never stepped into the settlement, are working there today, and people are availing the benefits of schemes devised for them.

Translated by Souptika Das

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