2020 — a year we will always remember! When we began the year with a renewed commitment to the human rights struggle, we couldn’t have imagined how our usual challenges would be amplified many times over with a pandemic. We have faltered and there have been losses. But more than that, we have learnt so much. About how inequality shows up in different ways, how core human concerns are the same everywhere, and how, when people do come together and hold each other’s fears and vulnerabilities with dignity and solidarity, things can change in spite of whatever comes at us. In 2020, we emerged stronger together, and it is with a commitment to staying together and to staying the entire course that we move into 2021.
This year, we worked with our ears to the ground, adopting a community-led approach to tackle the pandemic and its fallouts. We are grateful for the innumerable partnerships we formed to tackle intensifying vulnerabilities of the urban poor, extending relief in the wake of COVID-19, facilitating travel arrangements for migrant workers, engaging in advocacy to demand social security for informal workers, and more.
While the space for civic rights and freedoms has continued to shrink over the years, it has become more so within the ‘new normal’. Civil society, already operating under severe constraints, has been forced to speedily recalibrate in line with new regulations. Funding patterns have shifted again towards service-delivery, leaving out larger questions of equity and justice. Colleagues working at the grassroots level have adapted to online activism, although this can never be a long-term substitute. Continuing our work on core developmental issues means tackling evolving challenges.
All these shifts only strengthen our resolve. We draw our energy from Pash’s words, ‘hum ladenge jab tak ladne ki zarurat baaki hogi’.
As we reflect on the year that ends, and hope for a better tomorrow, sharing select highlights of 2020.
2021 को गहरी ऊर्जा और कटीबद्धता के साथ देखेंगे!
2020 — ये एक साल हम हमेशा याद रखेंगे! जब हमने मानव अधिकारों के संघर्ष के लिए नए सिरे से कटीबद्धता के साथ इस साल की शुरुआत की थी, हमने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी कि इस महामारी के साथ कई बार हमारी सामान्य चुनौतिया भी बढ जायेगी। हम लड़खड़ाए जरूर हैं और नुकसान भी हुआ है, लेकिन इससे कहीं ज्यादा, हमने बहुत कुछ सीखा भी है, असमानता के बारे में, अलग-अलग तरीकों से पता चलता है कि हर जगह मुख्य इंसानी सरोकार एक जैसे हैं और कैसे जब लोग एकसाथ आते हैं और एक-दूसरे की आशंकाओं और कमजोरियों को गरिमा और एकजुटता के साथ पकड कर रखते हैं, तो जो कुछ भी हमारे सामने आता है, उसके बावजूद चीजें बदल सकती हैं। 2020 इस साल में, हम एक साथ मजबूत हुए, और यह एक साथ रहने और प्रतिबद्धता को लेकर हमारे पुरे अनुभवो के साथ 2021 मे हम प्रवेश करेंगे।
इस साल, हमने अपने पूरी सजगता के साथ जमीनी काम किया, महामारी और इसके नतीजों से निपटने के लिए समुदाय के नेतृत्व वाले दृष्टिकोण को अपनाया। हम उन असंख्य साझेदारियों के लिए आभारी हैं, जिनका गठन हमने शहरी गरीबों की कमजोरियों से निपटने के लिए किया था, जिसमे COVID -19 के मद्देनजर राहत प्रदान करते हुए, प्रवासी कामगारों के लिए यात्रा की व्यवस्था की सुविधा, अनौपचारिक श्रमिकों के लिए सुरक्षा की मांग करने की पैरवी और बहुत कुछ शामिल है।
कई सालो से नागरिक अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए जगह सिकुड़ती रही है, यह स्थिति ‘नए सामान्य ’के भीतर अधिक गंभीर हुई है। नागरी समाज, पहले से ही गंभीर बाधाओं के तहत काम कर रहै है, उन्हें नए नियमों के अनुरूप तेजी से पुनर्गणना के लिए मजबूर किया गया है। फंडिंग पैटर्न समता और न्याय के बड़े सवालों को छोड़कर, सेवा-वितरण की ओर फिर से स्थानांतरित हो गया है। जमीनी स्तर पर काम करने वाले सहकर्मियों ने ऑनलाइन सक्रियता के लिए खुद को इस चुनौती के तैयार किया है. हालांकि यह कभी भी दीर्घकालिक विकल्प नहीं हो सकता है। मुख्य विकासात्मक मुद्दों पर हमारे काम को जारी रखने का मतलब है,उभरती चुनौतियों से निपटना।
ये सभी बदलाव केवल हमारे संकल्प को और भी मजबूत करते हैं। हम अपनी ऊर्जा को पाश के शब्दों से अअधोरेखित करते है,’ हम लडेंगे जब तक लडने की जरूरत बाकी होगी’