COVID-19 Lockdown and Resilience: Narratives from the Ground
Savita (name changed) is a 53-year-old woman who was forcefully evicted from her home when her informal settlement was broken down by local authorities in December 2019. Since then, she has been living with her children and daughter-in-law in an open area without a roof to protect them. Without any place to call home, Savita’s family has experienced an unimaginable crisis due to the impact of COVID-19.
Savita worked as an aaya (caretaker) at a private hospital near Sewri, Mumbai. She had only started working a couple of months before the lockdown took effect. Given that she doesn’t have a longstanding equation with her employer, she isn’t very comfortable asking for her salary or any form of financial support during the lockdown. She has noticed that even for employees who have been working at the hospital for many years, there has been no job security or financial support during the lockdown. Meanwhile, her daughter-in-law, who worked as a cook in a nearby home, has also lost her job. The only means of earning for her family is through the work Savita’s son is engaged in — he occasionally washes cars and earns INR 50 for each car washed by him. Though they get free water, Savita’s family has to walk for thirty minutes everyday to collect water. They follow all the safety measures necessary to contain the spread of COVID-19 but with the rising number of cases in their area, Savita worries for the health and safety of her family, especially when they use shared toilets and water sources.
Savita’s family has spent all of 2020 holding on to the hope of accessing their housing rights. She has participated in several efforts to advocate for her community’s needs to the local corporator. However, he has refused to help them. Savita highlights the apathy of local leadership towards their suffering as well as their selective compassion towards people they personally know when she says, ‘No one came and even asked us, how are you? In what condition are you living? Your house is broken, how are you getting by? Did you get any food? They gave ration to some of their own people, but they didn’t help us at all.’ Though Savita’s family has received ration as well as money in their Jan Dhan account, she argues that this is not enough. She says, ‘I want to specifically tell the government, we are literally living on the footpath, and you are saying you are helping the poor. But why is your help not reaching us? We got the INR 500 each that you had sent but that’s not enough. What will you do to really help us?’ Despite having barely any resources to survive this pandemic, Savita does whatever she can to support her community. She wants government action for everyone suffering, not with the intention of uplifting her own family alone. As she explains,
‘The government needs to help all of us. I’m not asking just for me, or people from my community. Even people who are poorer than us, children who live on the streets, who don’t have a roof over their head. All of us need to be helped.’
As narrated to Amritlal Betwala, Pooja Yadav and Bala Akhade; written by Sneha Tatapudy.
सविता (बदला हुआ नाम) एक 53 वर्षीय महिला है जिसे उसके घर से जबरदस्ती बेदख़ल कर दिया गया था जब दिसंबर 2019 में स्थानीय अधिकारियों द्वारा उसकी बस्ती को उजाड़ दिया गया था. तब से वह अपने बच्चों और बहु के साथ खुले में बिना किसी छत के रह रही है. घर के नाम पर कुछ भी ना होने के कारण सविता के परिवार ने COVID-19 के प्रभाव के कारण अकल्पनीय समस्याओं का अनुभव किया है. सविता मुंबई के शिवरी इलाक़े के पास एक अस्पताल में कार्यवाहक के रूप में काम करती थी. लॉकडाउन प्रभावी होने से दो महीने पहले ही काम करना शुरू किया था. चूँकि उसका अपने मालिक के साथ कोई दीर्घकालिक जान पहचान नहीं है, इसलिए वह लॉकडाउन के दौरान अपने वेतन या किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता के लिए पूछने में बहुत सहज नहीं रही. उसने देखा है कि जो कर्मचारी कई वर्षों से अस्पताल में काम कर रहे हैं, उनके लिए भी लॉकडाउन के दौरान नौकरी की सुरक्षा या वित्तीय सहायता नहीं मिली है. इस बीच, उसकी बहू जो पास के घर में घरेलू कामगार के रूप में काम करती है, उसकी भी नौकरी चली गयी है. उसके परिवार के लिए कमाई का एकमात्र साधन सविता का बेटा है जो कभी-कभी कारों को धोता है और प्रत्येक कर धोने के एवज़ में उसे 50 रु मिलते है. हालाँकि उन्हें पानी मुफ़्त में मिलता है, लेकिन सविता के परिवार को पानी इकट्ठा करने के लिए हर रोज क़रीब तीस मिनट तक चलना पड़ता है. वे COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक सभी सुरक्षा उपायों का पालन करते हैं, लेकिन बस्ती में बढ़ते मामलों को देखते हुए सविता अपने परिवार के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए चिंता करती है, खासकर ऐसे में जब वे साझा शौचालय और जल स्रोतों का उपयोग करते हैं.
सविता के परिवार ने पूरे 2020 को अपने आवास के अधिकार को संरक्षित करने के प्रयास में बिताया है. उसने स्थानीय नगरसेवक से अपने समुदाय की जरूरतों को लेकर वकालत करने के लिए कई प्रयास किए हैं. हालांकि, उन्होंने उनकी मदद करने से इनकार कर दिया है. सविता स्थानीय नेतृत्व की उनके प्रति उदासीनता के साथ-साथ उनकी चयनात्मक दया के बारे में भी बताती हैं,वो कहती है, ‘कोई नहीं आया और ना ही हमसे पूछा कि आप कैसे हैं? आप किस हालत में जी रहे हैं? तुम्हारा घर टूट गया है, आप कैसे हो? क्या आपको कोई खाना मिला?उन्होंने अपने कुछ लोगों को राशन दिया, लेकिन उन्होंने हमारी बिल्कुल भी मदद नहीं की.’ हालांकि सविता के परिवार को राशन के साथ-साथ उनके जन धन खाते में भी पैसा मिला है, लेकिन उनका कहना है कि यह पर्याप्त नहीं है. वह कहती हैं, ‘मैं विशेष रूप से मोदी सरकार को बताना चाहती हूं, हम सचमुच फुटपाथ पर रह रहे हैं, और आप कह रहे हैं कि आप गरीबों की मदद कर रहे हैं. लेकिन आपकी मदद हम तक क्यों नहीं पहुंच रही है? हमें 500 रु मिला है जिसे आपने भेजा था लेकिन वह पर्याप्त नहीं है. आप वास्तव में हमारी क्या मदद करेंगे?’ इस महामारी से बचने के लिए बमुश्किल कोई संसाधन होने के बावजूद, सविता अपने समुदाय का समर्थन करने के लिए जो कुछ भी कर सकती है, करती है. वह सभी पीड़ितों के लिए सरकारी कार्रवाई चाहती है, न कि अकेले अपने परिवार के उत्थान के इरादे से. जैसा कि वह बताती हैं,
‘सरकार को हम सभी की मदद करने की जरूरत है. मैं सिर्फ मेरे लिए, या मेरे समुदाय के लोगों के लिए नहीं पूछ रही हूँ. मैं चाहती हूँ सभी को सहायता मिले जो लोग हमसे गरीब हैं, वे बच्चे जो सड़कों पर रहते हैं, जिनके सिर पर छत नहीं है. हम सभी को मदद की जरूरत है.’
अमृतलाल बेतवाला ,पूजा यादव,बाला अखाड़े और स्नेहा टाटापुडी का योगदान.अंकित झा द्वारा अंग्रेजी से अनुवादित.
‘COVID-19 Lockdown and Resilience: Narratives from the Ground’ is a series through which we are showcasing community voices and experiences in lockdown, people’s resilience and the continued struggle for their rights. Stay tuned!
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