COVID-19 Lockdown and Resilience: Narratives from the Ground
Location — Juhu, Mumbai
Vanita (name changed) is a single mother of two living in an informal settlement in Juhu Galli, Mumbai. In the pre-COVID world, she was a domestic worker in 3–4 homes and made almost Rs.10,000 per month. Her earnings were split between daily expenses and rent for her small room that housed a family of four. When the lockdown went into effect, Vanita instantly lost all her sources of income because none of her employers offered to continue paying her a salary. She further explains,
‘I asked them to just give me money for one month or half a month and they said, from where will we be able to pay you? I said okay, let it be. Now you tell me, what can I say to such people?’
Vanita’s main concern right now is to make sure she can find money to pay rent. She has spoken to her landlord and requested him to make a concession, but he continues to ask her for money. This has instilled a great fear in her about the safety and security of her family. ‘I don’t know what the landlord is going to do. We can’t pay rent. We already haven’t paid rent for 2 months, and if we still can’t pay in the 3rd month, it will be a huge source of stress. I am most stressed about that. If he makes us leave, where will we live? What will we do?’, she says. Her husband, who worked as an auto-rickshaw driver and had a drinking problem, is no longer alive. Even though her husband wasn’t the best support system to her, she keeps thinking of him, imagining a better situation if he were still alive.
When the lockdown began, Vanita’s loss of job security and housing security was exacerbated by health concerns for her children. Given that her daughter had recovered from jaundice only a couple of months ago and Vanita and her son both experienced fever and fatigue around the same time when the pandemic became known to people, she was concerned about everyone’s health. A local private doctor gave her a discounted consultation fee of INR 200 and told both Vanita and her son that they would feel fine soon. They have recovered now, though they didn’t go through any testing for COVID-19. Vanita has zero bank balance and no savings to get through the prolonged period of no work due to the pandemic. She is no longer able to buy most essential items, including sanitary pads for her daughter and herself.
Vanita’s family is struggling to eat meals everyday. ‘We don’t have a ration card’, she says, describing their fear of hunger, desperation to find food and her family’s ‘new normal’ . ‘At this point, we just keep asking for food and eat whatever we get. What else can we do? If someone gives us something to eat, we eat it. Otherwise we stay quiet.’ She has received support from YUVA, but also knows that she needs a lot more support to get through this challenging period — ‘How can 10 kgs of rice suffice our needs for 2 months?’, she asks. Vanita’s family is suffering immensely — they don’t have money to buy milk or food and on most days, they end up drinking black tea, with very little tea powder and no sugar. On some days, Vanita says that they simply ‘survive by drinking water all day’.
As narrated to Taslim Khan and Alicia Tauro; written by Sneha Tatapudy
स्थान — जुहू, मुंबई
वनिता (बदला हुआ नाम) मुंबई के जुहू गली की एक बस्ती में रहने वाली दो बच्चों की एकल माँ है. COVID से पहले वह 3–4 घरों में घरेलू कामगार थी और प्रति महीने लगभग 10,000 रुपये कमा लेती थी. उसकी कमाई रोज़ होने वाले खर्चों में बँटता था और साथ ही चार लोगों के लिए उसके छोटे से कमरे के लिए किराए पर भी ख़र्च किया जाता था. जब लॉकडाउन प्रभावी हुआ, तो वनिता के सभी आय के स्रोत ख़त्म हो गये क्योंकि उसके किसी भी घर मालिकों ने उसे वेतन नहीं दिया. वह आगे बताती है,
‘मैंने उन्हें सिर्फ एक महीने या आधे महीने के लिए पैसे देने के लिए कहा पर उन्होंने कहा, हम आपको कहां से भुगतान कर पाएंगे? फिर मैंने कहा ठीक है, रहने दो. अब आप मुझे बताइए, मैं ऐसे लोगों से क्या कह सकती हूँ?’
वनिता की मुख्य चिंता अभी यह सुनिश्चित करना है कि वह किराए का भुगतान करने के लिए पैसे की व्यवस्था कर पाए. उसने अपने मकान मालिक से बात की है और उससे रियायत देने का आग्रह किया, लेकिन वो इससे किराया माँगते ही रहते है. इससे उसके अंदर अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर एक बड़ा डर पैदा हो गया है. ‘मैं यह नहीं समझ पा रही हूं कि मकान मालिक क्या करने वाले हैं. हम किराया नहीं दे सकते हैं. हमने पहले ही 2 महीने के लिए किराए का भुगतान नहीं किया है, और अगर हम अभी तीसरे महीने में भुगतान नहीं कर पाते हैं तो यह हमारे लिए बहुत बड़ी चिंता की बात होगी. अगर वह हमें घर से निकाल देते हैं तो हम कहां रहेंगे? हम क्या करेंगे?’, वह कहती है. उनके पति, जो एक ऑटो-रिक्शा चालक के रूप में काम करते थे और उन्हें शराब पीने की समस्या थी, वो भी अब जीवित नहीं है. भले ही उसका पति उसके लिए सबसे अच्छा सहयोग नहीं था, लेकिन वह उसके बारे में सोचती रहती है, अगर वह अभी जीवित होते तो स्थिति शायद थोड़ी बेहतर होती.
जब लॉकडाउन शुरू हुआ, तो वनिता की नौकरी और आवास की दिक़्क़तें उसके बच्चों के लिए स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं से बढ़ गयी. यह देखते हुए कि उनकी बेटी को कुछ महीने पहले ही पीलिया हो गया था और वनिता और उनके बेटे को बुखार और थकान दोनों का अनुभव होने लगा, और ये ऐसे समय हुआ जब एक महामारी का पता चल रहा था, तो वह सभी के स्वास्थ्य के बारे में चिंतित थीं. एक स्थानीय निजी चिकित्सक ने उन्हें 200 रु में ही परामर्श फीस के साथ इलाज किया और वनिता और उनके बेटे दोनों को बताया कि वे जल्द ही ठीक हो जाएँगे. वे अब ठीक हो गए हैं, हालांकि उन्होंने COVID-19 के लक्षण दिखाने वाले किसी तरह का परीक्षण नहीं करवाया. वनीता के पास महामारी के कारण लंबे समय तक काम न करके भी जीवित रहने के लिए जीरो बैंक बैलेंस और कोई बचत नहीं है. वह अब अपनी बेटी और खुद के लिए सैनिटरी पैड जैसी अधिकांश आवश्यक वस्तुओं को भी नहीं ख़रीद पा रही है.
वनिता का परिवार रोज खाना खाने के लिए संघर्ष कर रहा है. ‘हमारे पास राशन कार्ड नहीं है’, वह कहती हैं, अपनी भूख के डर, और भोजन खोजने की हताशा समेटे हुए और यही उनका नया सामान्य है. ‘इस समय हम सब सिर्फ़ भोजन के लिए पूछते रहते हैं और जो कुछ भी मिलता है उसे खाते हैं. इसके अलावा हम क्या कर सकते हैं? अगर कोई हमें खाने के लिए कुछ देता है तो हम उसे खा लेते हैं. अन्यथा हम शांत रहते हैं. ‘उसे YUVA से समर्थन मिला है, लेकिन वो यह भी जानती है कि इस चुनौतीपूर्ण अवधि से लड़ने के लिए उसे और भी अधिक समर्थन की आवश्यकता है — ‘2 महीने के लिए 10 किलो चावल हमारी आवश्यकताओं को कैसे पूरा कर सकता है?’, वह पूछती है. वनिता का परिवार बेहद पीड़ित है — उनके पास दूध या भोजन खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं और ज्यादातर दिनों में, वे बहुत कम चाय पाउडर और बिना चीनी वाली काली चाय पीते हैं. कुछ दिन वनिता कहती है कि वे पूरे दिन पानी पीकर ही जीवित रहते हैं.’
तस्लीम ख़ान, एलिसिया टोरो और स्नेहा टाटापुडी का योगदान.अंकित झा द्वारा अंग्रेजी से अनुवादित.
‘COVID-19 Lockdown and Resilience: Narratives from the Ground’ is a series through which we are showcasing community voices and experiences in lockdown, people’s resilience and the continued struggle for their rights. Stay tuned!
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