COVID-19 Lockdown and Resilience: Narratives from the Ground
Location — Malad, Mumbai
Navin (name changed) is a 57 year-old man who lives in a rented house in Bhabrekar Nagar, an informal settlement in Malwani, Malad. Navin’s source of income comes from daily-wage work as a construction worker. The lockdown has directly affected his ability to earn, leaving him dependent on his young children’s salaries to pay for rent, food and other needs of the household.
Navin is involved with collectives that advocate for workers’ rights but hasn’t heard anything from his group regarding action to secure their labour rights. Meanwhile, everyone in his family has experienced a cough, cold, fever and other concerning symptoms of COVID-19. Initially, they went to a local private doctor who told them they would be fine. However, eventually his daughter’s condition severely deteriorated, and they had no choice but to take her to the hospital. When they reached the Shatabdi hospital in Mumbai, they noticed that there were countless COVID-19 positive patients. They felt concerned that they would also contract the disease on account of being at the same hospital. Given this fear, Navin and his family decided to return home from the hospital without getting tested or accessing proper treatment. Though they are all slightly better now, the misinformation and fears linked to COVID-19 come to the forefront through their experience.
Navin is worried about the rising number of cases of COVID-19 in his community, and his family’s increased susceptibility to the disease especially because of their use of overcrowded, shared toilets. Though they have received their Jan Dhan money, ration and support from YUVA for a month’s worth of grains, Navin’s family is struggling to make ends meet. Meanwhile, the quality of grains that they received from ration stores was also inedible. Even prior to the lockdown, Navin’s family grappled with a heightened sense of precarity and uncertainty. At this point, all of his struggles have deepened further. While talking about the impact of COVID-19 on his everyday reality, Navin says,
‘There is no work, no business and no money. Everyone is troubled. I’m living in a rented room so I’ve had to keep paying rent. Our health is also deteriorating, with fever and cough symptoms. We can’t go to work since everything is shut. What is one expected to eat, merely sitting at home with no money and ration?’
While urging the government to do much more to help the poor and most marginalised people who are currently surviving without adequate support during the pandemic, Navin asks, ‘Am I expected to pay for my ration or pay my rent?’
As narrated to Alicia Tauro and Zarin Ansari; written by Sneha Tatapudy
स्थान — मलाड, मुंबई
नवीन (बदला हुआ नाम) एक 57 वर्षीय व्यक्ति है, जो मालवाणी, मलाड की एक बस्ती, भब्रेकर नगर में किराए के मकान में रहता है. नवीन एक निर्माण कामगार है जिससे वह दैनिक आय कमाता है. लॉकडाउन के कारण उसके कमाई को काफ़ी नुक़सान हुआ है, जिसके कारण वह घर के किराए, भोजन और अन्य जरूरतों के लिए भुगतान करने के लिए अपने छोटे बच्चों के वेतन पर निर्भर है. नवीन श्रमिकों के अधिकारों की वकालत करने वाले समूहों का भी हिस्सा है लेकिन श्रमिक अधिकारों को सुरक्षित रखने के क्रम में उनके समूह ने अभी तक कुछ भी नहीं किया है. इस बीच, उनके परिवार में सभी को खांसी, जुकाम, बुखार और COVID-19 के लक्षणों के विषय में अनुभव हुआ है.
शुरूआत में, वे एक स्थानीय निजी चिकित्सक के पास गए जिन्होंने उन्हें बताया कि वे ठीक हो जाएंगे. लेकिन, उनकी बेटी की हालत काफ़ी बिगड़ गयी, और उनके पास उसे अस्पताल ले जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा. जब वे मुंबई के शताब्दी अस्पताल पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि वहाँ अनगिनत COVID-19 पॉजिटिव मरीज थे. वे चिंतित महसूस करने लगे कि वे एक ही अस्पताल में होने के कारण उन्हें भी इसका संक्रमण हो जाए. इस डर के कारण, नवीन और उनके परिवार ने परीक्षण किए बिना या उचित उपचार प्राप्त किए बिना ही अस्पताल से घर लौटने का फैसला किया. भले ही वे अब थोड़ा बेहतर महसूस कर रहे हैं, लेकिन COVID-19 से जुड़ी गलत सूचना और भय उनके अनुभव के माध्यम से काफ़ी स्पष्ट दिखते हैं.
नवीन को अपने समुदाय में COVID-19 के बढ़ते मामलों की काफ़ी चिंता है, और विशेष रूप से भीड़भाड़ वाले साझा शौचालयों के उपयोग के कारण उनके परिवार में बीमारी के लिए संवेदनशीलता बढ़ गई है. हालांकि, उन्हें जन धन योजना के तहत पैसा, राशन और YUVA संस्था से क़रीब एक महीने के लिए अनाज का सहयोग मिला है लेकिन अभी भी नवीन के परिवार को दोनो समय की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. इस बीच, उन्हें राशन की दुकानों से प्राप्त अनाज की गुणवत्ता इतनी ख़राब थी कि उसे खाया भी नहीं जा सकता था. लॉकडाउन से पहले भी, नवीन के परिवार में अनिश्चितता के ही हाल थे. लेकिन इस समय, उनका दैनिक संघर्ष और भी अधिक गहरा हो गया है.
अपनी रोजमर्रा जीवन पर COVID-19 के प्रभाव के बारे में बात करते हुए नवीन कहते हैं,
‘ना कोई काम है, ना कोई व्यवसाय है और न ही कोई पैसा है. सभी परेशान है. मैं किराए के कमरे में रहता हूँ इसलिए मुझे किराया देना पड़ता है. बुखार और खांसी के लक्षणों के साथ हमारा स्वास्थ्य भी बिगड़ रहा है. सब कुछ बंद होने के बाद हम काम पर भी नहीं जा सकते. घर पे बैठे बैठे हम बिना काम और पैसे के क्या खाने की उम्मीद कर सकते हैं?’
गरीबों और सबसे अधिक हाशिए पर रहने वाले लोगों की मदद करने के लिए सरकार से आग्रह करते हुए, जो इस समय महामारी के दौरान पर्याप्त समर्थन के बिना जी रहे हैं, नवीन पूछते हैं, ‘क्या मुझसे अभी भी अपने राशन और किराए के लिए भुगतान करने की अपेक्षा की जा सकती है?’
एलिसिया टोरो, ज़रीन अंसारी और स्नेहा टाटापुडी का योगदान.अंकित झा द्वारा अंग्रेजी से अनुवादित.
‘COVID-19 Lockdown and Resilience: Narratives from the Ground’ is a series through which we are showcasing community voices and experiences in lockdown, people’s resilience and the continued struggle for their rights. Stay tuned!
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