COVID-19 Second Wave: Narratives from the Ground
Many families were barely able to make it through the first wave of COVID-19. As they comprise daily and weekly-wage earners, every support they received from neighbours, civil society, and any coverage under government welfare efforts went a long way in offering them relief.
These households are struggling to survive the second wave at present. Resources are more depleted, more people are falling sick and more jobs have been lost for a longer period now. Samrin, a nineteen-year-old living in Behrampada, Bandra, shared her family’s experience of both lockdowns in a recent conversation.
Samrin lives with her family and both her parents lost their jobs during this lockdown. Her father is a scrap dealer, and sells food waste from market areas. However, with markets and other public places closed now, he is out of work.
‘मार्केट में भाजी वाले या फ्रूट वाले उनका कचरा फेंकते हैं तो उनको 20 रुपये मिलता है। अब वो भी नहीं हो पा रहा है।’
By disposing the waste of fruit and vegetable vendors, he receives Rs 20. Now even that is not possible.
It is also difficult for Samrin’s father to continue working, she says, as he has difficulty in walking and frequent pain in his leg in recent years.
Last year during the lockdown, the family used their savings to get by, with some additional support from YUVA and the community. However, they were unable to pay rent and lost their security deposit. During this second lockdown, they have run out of their savings, and are once again behind on rent. Samrin shared how her father is worried about having to return to their village in Uttar Pradesh if he is not able to start working soon.
Samrin studied till the 9th grade, but was not able to continue her education after that because of the family’s financial constraints. Now, after being associated with community efforts facilitated by YUVA in the past 1.5 years, she is again thinking of completing the 10th grade. However, her plans were postponed due to the pandemic. She also had to take up some domestic work for a month to help the family’s income. She is very concerned about her father and wants to help him in whatever way she can.
‘अब मैंने पढ़ाई के बारे में सोचना ही छोड़ दिया है | यही सोच रही हु की कही अच्छी जगह जॉब लग जाए तो में अपने पापा की हेल्प कर सकू|’
I have stopped thinking about studies right now. I am just thinking that if I find a good job I will be able to help my father.
Samrin has also been an active and enthusiastic youth volunteer in many community events organised by YUVA and has been working on several issues in the community, like sexual harassment, sanitation and garbage management, along with other young people. She is currently looking forward to helping spread more information about the vaccine through the vaccine help desk being set up by YUVA and youth volunteers in Behrampada. People in the community, including Samrin’s parents are hesitant to take the vaccine. Samrin hopes her work with the community will help fight these fears and dispel the myths formed through rumours and misinformation.
This is the third story in a series of interviews we are conducting with community members, to bring to light the onground situation during the second wave of COVID-19. You can also catch up on the first and second story.
Contributed by Niyoshi Parekh and Taslim Khan
#3: समरीन अपने परिवार की आर्थिक स्थिति व समस्याओं के बारे में साझा करती हैं
कई परिवार काफ़ी मुश्किल से कोविड-19 की पहली लहर से बच पाए थे। चूँकि वह दिहाड़ी व साप्ताहिक रूप से आय अर्जित करने वाले परिवारों में से थे अतः पड़ोसियों, सामाजिक संस्थाओं व सरकारी योजनाओं से मिले लाभ व राहत सहायता उनके लिए नाकाफ़ी साबित हुए।
यह सभी परिवार वर्तमान में दूसरी लहर का सामना मुश्किल से कर पा रहे हैं। संसाधनों की कमी हो गयी है, कई ज़्यादा बीमार पड़ रहे हैं और उससे भी ज़्यादा नौकरियाँ लम्बे समय के लिए ख़त्म हो गयी हैं। हाल ही में एक चर्चा के दौरान बेहरामपाड़ा, बांद्रा में रहने वाली 19 साल की समरीन ने दोनों ही वर्षों के लॉकडाउन में अपने परिवार के अनुभवों को हमसे साझा किया।
समरीन अपने परिवार के साथ रहती है और उसके माता-पिता ने इस लॉकडाउन में अपनी नौकरी गंवा दी है। उसके पिता कचरे का काम करते थे व बाजरो से भोजन, सब्ज़ी या फल का कचरा फेंकने का काम किया करते थे। अब क्योंकि बाजर और सारे ही सार्वजनिक स्थान बंद पड़े हैं, तो उनका काम भी ख़त्म हो गया है।
‘मार्केट में भाजी वाले या फ्रूट वाले उनका कचरा फेंकते हैं तो उनको 20 रुपये मिलता है। अब वो भी नहीं हो पा रहा है।’
समरीन के पिता के लिए पिछले कुछ समय में काम करना इसलिए भी मुश्किल हो गया है क्योंकि पिछले कुछ समय में उनके पाँव में दर्द रहता है और उनको चलने में भी तकलीफ़ रहती है। पिछले साल के लॉकडाउन के दौरान परिवार ने अपने समुदाय व युवा के सहयोग और अपने पिछले बचत के साथ गुज़ारा कर लिया था। हालाँकि, वे अपने मकान का किराया नहीं दे पाए थे और इस कारण उनका सिक्यरिटी डिपॉज़िट भी ज़ब्त कर लिया गया था। अब इस बार के लॉकडाउन में उनका बचत ख़त्म हो चुका है, और फिर से किराया नहीं दे पा रहे हैं। समरीन बताती हैं कि उसके पिता यह चिंता अक्सर ज़ाहिर करते हैं कि यदि उनका काम जल्द शुरू नहीं हुआ तो बहुत जल्द उन्हें उत्तर प्रदेश में अपने गाँव वापस जाना पड़ सकता है। समरीन ने कक्षा 9 तक पढ़ाई की है और अपने परिवार की ख़राब आर्थिक स्थिति के कारण आगे नहीं पढ़ पायी। अब क़रीब डेढ़ साल से युवा के साथ जुड़ कर अलग अलग सामुदायिक प्रयासों में जुड़े रहने के कारण वह 10वी की परीक्षा देना चाह रही है। हालाँकि दूसरी लहर के कारण उसकी यह योजना पूरी नहीं हो पायी। अपने परिवार का सहयोग करने के लिए उसे कुछ महीनों के लिए घरेलू कामगार के रूप में काम भी करना पाड़ा। वह अपने पिता के बारे में काफ़ी चिंतित रहती है और किसी भी हाल में उन्हें पूरा समार्थन प्रदान करना चाहती है।
‘अब मैंने पढ़ाई के बारे में सोचना ही छोड़ दिया है | यही सोच रही हु की कही अच्छी जगह जॉब लग जाए तो में अपने पापा की हेल्प कर सकूँ।’
युवा द्वारा आयोजित कई सामुदायिक समारोहों में एक युवा स्वयंसेवक के रूप में समरीन काफ़ी सक्रिय रूप से उत्साह के साथ शरीक हुई है तथा लगातार समुदाय में कई मुद्दों पर जैसे यौन उत्पीड़न, स्वच्छता व कचरा प्रबंधन आदि के मुद्दों पर अन्य युवा लोगों के साथ कार्य कर रही है। अभी वह युवा तथा बेहरामपाड़ा के युवाओं द्वारा स्थापित किए गये वैक्सीन सहायता केंद्र के माध्यम से लोगों को ज़रूरी सूचनाएँ साझा करने का काम कर रही हैं। समुदाय के लोग, जिसमें समरीन के माता-पिता भी शामिल हैं, टीका लगवाने को लेकर थोड़े संकोच में हैं। समरीन मानती है कि वह अपने काम के माध्यम से समुदाय के लोगों के अंदर से अफ़वाहों व ग़लत सूचनाओं के कारण बने मिथकों और डर को समाप्त कर सकती है।
कोविड-19 के दूसरे लहर के दौरान ज़मीनी हक़ीक़त बताते हुए यह इस ऋंखला की यह तीसरी कहानी है। पहली व दूसरी कहानी आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
Translated to Hindi by Ankit Jha