COVID-19 Lockdown and Resilience: Narratives from the Ground
Location — Ambujwadi, Malad West, Mumbai
Raman (name changed) is a 21-year-old, working as an attendant in a Suvidha toilet in the basti (informal settlement) of Ambujwadi, located by the sea in Malad East, Mumbai. He has eight family members. His mother is a domestic worker and his father is a daily-wage earner. Since the lockdown started, none of his family members are able to work. His mother was refused salary by some of her employers and she could not even reach others as their societies were gated and guarded and she was not allowed to enter anymore.
The ration card for the family is dysfunctional for some technical mismatch of name or fingerprint. His family is dependent on the ration provided by non-profits. From a diet of three meals a day, his family has come down to one meal a day and that too is eaten sparingly.
Coronavirus and the lockdown burdened Raman with household responsibilities, forcing him to mature before his time. ‘I can now understand that the responsibility of my family is only on me. So, I have to go to work every day.’ He says that he cannot take his weekly off anymore because he cannot afford to lose even one day’s salary, which is INR 350. This is the usual story of all those working on a contract basis who do not get any paid weekly off. Raman’s salary is also sometimes delayed.
After coming back from work, he hardly gets any rest as he has to go fetch water for the family which takes about two hours now because of social distancing rules. Earlier, it was done by the women in his family and it would take about an hour. But now Raman is fetching water himself because he wants to protect his aged parents from the virus. Raman is also concerned about his own safety from coronavirus as the public toilet he works at is not getting frequently and thoroughly sanitized.
‘I am unable to go outside to play,’ he shared. ‘If we go outside the house, the police hit us. I really yearn to play.’
Contributed by Zarin Ansari, Alicia Tauro, and Sheeva Dubey who work with Youth for Unity and Voluntary Action (YUVA).
स्थान — अंबुजवाड़ी, मलाड पश्चिम, मुंबई
रमन (बदला हुआ नाम) एक 21 वर्षीय पुरुष है और मुंबई के मलाड पूर्व में समुद्र के किनारे स्थित अंबुजवाड़ी की बस्ती में एक सुविधा शौचालय में एक परिचर का काम करता है. उनके परिवार में आठ सदस्य हैं. उनकी माँ एक घरेलू कामगार है और उनके पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं. जब से लॉकडाउन शुरू हुआ, उनके परिवार का कोई भी सदस्य काम नहीं कर पा रहा है. उनकी मां को उनके कुछ मालिकों द्वारा वेतन देने से मना कर दिया गया है. वह दूसरे मालिकों तक भी नहीं पहुंच सकी क्योंकि उनके बिल्डिंग के बाहर द्वार और चौकीदार है और उन्हें अंदर जाने की अनुमति नहीं दी गई.
परिवार के लिए राशन कार्ड नाम या उंगलियों की छाप के बेमेल की वजह से बेकार है. उनका परिवार NGO द्वारा प्रदान किए गए राशन पर निर्भर है. एक दिन में 3 भोजन से, उसका परिवार एक दिन में 1 भोजन पर आ गया है और वह भी बहुत कम खाते हैं.
कोरोनोवायरस और लॉकडाउन ने रमन पर घरेलू जिम्मेदारियों का बोझ डाला, उसे सही समय से पहले ही जिम्मेदारियां लेने के लिए मजबूर किया. ‘मैं अब समझ सकता हूं कि मेरे परिवार की जिम्मेदारी केवल मुझ पर है. इसलिए, मुझे हर दिन काम पर जाना होगा. ‘वह कहता है कि वह अपना साप्ताहिक अवकाश नहीं ले सकता क्योंकि वह एक दिन का वेतन भी नहीं खो सकता है, जो कि रु 350 / — है. यह कॉन्टैक्ट पर काम करने वाले सभी लोगों की कहानी है, जिन्हें सप्ताह में कोई भी छुट्टी नहीं मिलता है. रमन के वेतन में भी कभी-कभी देरी हो जाती है.
काम से वापस आने के बाद, शायद ही उन्हें कोई आराम मिलता है क्योंकि उन्हें परिवार के लिए पानी लाना पड़ता है, जिसे सामाजिक दूरी के नियमों के कारण करने में अब लगभग 2 घंटे लगते हैं. पहले यह उनके परिवार की महिलाओं द्वारा किया जाता था और इसमें लगभग एक घंटा लगता था. लेकिन अब रमन खुद पानी ला रहा है क्योंकि वह अपने वृद्ध माता-पिता को वायरस से बचाना चाहता है. रमन को कोरोनावायरस से अपनी सुरक्षा के बारे में भी चिंता है क्योंकि वह जिस सार्वजनिक शौचालय में काम करता है वह अच्छी तरह से साफ नहीं हो रहा है. ‘मैं खेलने के लिए बाहर नहीं जा सकता हूँ,’ उसने कहा. ‘अगर हम घर से बाहर जाते हैं, तो पुलिस हमें मारती है और हमें कहीं भी जाने नहीं देती. इसलिए हम बिलकुल नहीं खेल पाते. मैं खेलने के लिए काफी तरस रहा हूं.’
ज़रीन अंसारी, एलिसिया तौरो, और शीवा दुबे द्वारा योगदान दिया गया, जो यूथ फॉर यूनिटी और वोलन्टरी ऐक्शन (YUVA) के साथ काम करते हैं. शुभांगी गुप्ता द्वारा अंग्रेजी से अनुवादित
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‘COVID-19 Lockdown and Resilience: Narratives from the Ground’ is a series through which we are showcasing community voices and experiences in lockdown, people’s resilience and the continued struggle for their rights. Stay tuned!