COVID-19 Lockdown and Resilience: Narratives from the Ground
Location — Nallasopara
During the COVID-19 relief efforts being undertaken in different communities, the team met a young girl named Reema (name changed) who lives in a basti (informal settlement) next to the Mumbai-Ahmedabad highway. Reema said that there was no food at her house and she would be grateful if the team could provide some cooked food and dry ration to her family. She also brought to the team’s attention the situation of their settlement, as well as her household.
Upon meeting Reema’s family, her father mentioned that he met with an accident due to which he is not able to continue working as a rickshaw driver, which greatly affected the family’s income. One out of six children, Reema and her sisters’ desires to pursue education have always been stalled due to lack of finances, as well as worries regarding their late mother’s ill health, due to lack of treatment for her cancer. The family discussed how struggles that were persistent even beforehand were elevated in the face of the lockdown. One of Reema’s sisters talked about her personal struggles with her husband, who had always been a heavy drinker, and negligent of their children’s needs. She discussed how after the lockdown, her husband had left, and not talked to his family in a month. Reema’s sister was not on good terms with her in-laws as her mother-in-law had expressed her disappointment at the birth of three girl children in the family. She has now left her in-laws’ house and stays with her father in Nallasopara.
Reema’s other elder sister, along with her husband, were forced to sneak back home, travelling in a container for days after the factory at which the latter worked at in Surat was shut. They further explained how it was difficult to manage such a large household without any current source of income, and without the government mandated ration cards, as none of the family members held any identification proof or an Aadhaar card.
Reema and her family’s experiences and situations aren’t an exception or a lone case in their community. It is an example of the hardships faced daily by these families both before and during the lockdown imposed in late March, wherein lack of sufficient support from their employers and the government has placed them in desperate situations, and for many, leaving them displaced from their families and loved ones. These families are denied their rights to education and basic human necessities at times due to their financial situation, and it is because of this that it is important that we as a community recognise the hurdles faced by the workers who are the essential backbone of the country, and support their needs wherever possible.
As narrated to Mecanzy Dabre; written by Hiya Singh and Vanshika Choudhary
स्थान — नालासोपारा
विभिन्न समुदायों में किए जा रहे COVID-19 राहत प्रयासों के दौरान, हमारी टीम की मुलाक़ात रीमा (बदला हुआ नाम) नाम की एक युवा लड़की से हुई, जो मुंबई-अहमदाबाद राजमार्ग के बगल की एक बस्ती में रहती है. रीमा ने कहा कि उनके घर पर खाने के लिए कुछ नहीं है और अगर टीम उनके परिवार को कुछ पका हुआ भोजन और सूखा राशन मुहैया करा सके तो काफ़ी बढ़िया रहेगा. रीमा ने टीम के साथ-साथ अपने घर और बस्ती की स्थिति भी साझा की.
जब रीमा के परिवार से मिला गया, रीमा के पिता ने बताया कि उनकी एक दुर्घटना हो गयी थी, जिसके कारण वह अब रिक्शा नहीं चला पा रहे हैं जिसके कारण परिवार की आय बहुत प्रभावित हुई है. छह बच्चों में से एक, रीमा और उसकी बहनों को आगे पढ़ने की इच्छा है लेकिन कभी पैसों की कमी कभी उनकी दिवंगत मां के कैन्सर के चलते ख़राब स्वास्थ्य के कारण उनकी पढ़ाई रुक जाती है. परिवार ने बताया कि कैसे पहले से ही लगातार दिक़्क़तें चल रही थी जो लॉकडाउन के कारण और भी डरावने होते चले जा रहे हैं. रीमा की बहनों में से एक ने बताया कि उसका उसके पति के साथ हमेशा से रिश्ते ख़राब रहे हैं, वो काफ़ी शराब पीता है और अपने बच्चों के प्रति भी कोई ज़िम्मेदारी नहीं उठाता था. उसने फिर बताया कि कैसे लॉकडाउन के बाद उसके पति ने उसे छोड़ दिया, और एक महीने तक अपने परिवार से बात भी नहीं की. बहन के रिश्ते अपने ससुराल वालों के साथ भी उतने अच्छे नहीं थे, उसकी तीसरी बेटी के जन्म के समय उसकी सास ने काफ़ी हिंसक रूप से अपनी नाराज़गी जताया था. बहन ने भी अब अपने ससुराल को छोड़ दिया है और नालसोपारा में अपने पिता के साथ रहती है.
रीमा की दूसरी बड़ी बहन अपने पति के साथ, जो एक कारखाने में काम करते थे जो महामारी के कारण बंद कर दिया गया, वे दोनों एक कंटेनर में ज़बरदस्ती यात्रा करने के लिए विवश हो गए थे. उन्होंने आगे बताया कि बिना किसी आय के मौजूदा स्रोत के इतने बड़े घर को चला पाना काफ़ी मुश्किल था, साथ ही सरकार द्वारा जारी किए गये राशन कार्ड के बिना, क्योंकि परिवार के किसी भी सदस्य के पास कोई पहचान पत्र या आधार कार्ड नहीं है.
रीमा और उसके परिवार के अनुभव और उनकी परिस्थितियाँ उनके समुदाय में कोई अकेला मामला नहीं हैं. ये उदाहरण है उन समस्याओं का जो ये परिवार रोज़ाना झेलते हैं, फिर वो मार्च में लगाए गये लॉकडाउन से पहले की बात हो या उसके बाद से अब तक और जहाँ उनके काम मालिकों और सरकार द्वारा उनकी अनदेखी के कारण उनके हालात लगातार ख़राब होते जा रहे हैं, और कईयों को उनके परिवार व प्रियजनों से भी बेदख़ल कर छोड़ दिया है. इन परिवारों को अपनी आर्थिक स्थिति के कारण कई बार शिक्षा और बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं के उनके अधिकारों से भी वंचित किया जाता है, और इस कारण से यह महत्वपूर्ण है कि हम एक समुदाय के रूप में देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाले श्रमिकों द्वारा सामना की जाने वाली बाधाओं को पहचानें, और जहाँ भी संभव हो, सहायता व समर्थन करने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाएँ.
मैकेंज़ी डब्रे, हिया सिंह और वंशिका चौधरी का योगदान. अंकित झा द्वारा अंग्रेजी से अनुवादित.
‘COVID-19 Lockdown and Resilience: Narratives from the Ground’ is a series through which we are showcasing community voices and experiences in lockdown, people’s resilience and the continued struggle for their rights. Stay tuned!
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