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मेरे कुछ अनुभव

By April 16, 2020December 23rd, 2023No Comments

पनवेल और नवी मुंबई में हो रहे राहतकार्य के बारे में युवा साथी का अनुभव

कोरोना वायरस — ऐसा वायरस जो ऊँची ऊँची इमारतों में रहने वालों के साथ प्लेन से सफर कर हमारे भारत देश में आया और बस्तियों में रहनेवाले करोड़ो लोगों के साथ ही सड़कों पर बेघरों की जिंदगी जीने वाले, कूड़ा-कचरा-प्लास्टीक बेचकर गुजारा करने वाले और नाका कामगार, फेरीवाले जो रोज का कमाते है इन लोगोंके भय का कारण बना | इन लोगों के आंसुओ का और भुखमरी का बुनियादी कारन बना माहामारी की वजह से सरकार द्वारा लिए गए शीघ्र निर्णय जैसे की निषेधाज्ञा (curfew) और लॉकडाउन (lockdown) । इस निर्णय के गंभीर परिणाम समाज के एक ऐसे तपके पर हुए जिसे हम अनऑर्गनाइज सेक्टर (असंगठित कामगार — नाका कामगार, फेरीवाले, घरेलु कामगार, ट्रक ड्राइवर्स) कहके जानते है और जो बस्तियों में बड़े पैमाने पर रहते है। इस वायरस का प्लेन से देश में आना और पुरे देश में फ़ैल जाना इसकी वजह चाहे जो भी हो, गलती किसी की भी हो पर बहोत ही बुरा नतीजा भुगतना पड़ा वो इन्ही असंगठित कामगारोंको ।

सरकार द्वारा लिया गया लॉकडाउन का निर्णय जरुरी तो था पर इसे पूरी तरीके से सही नही माना जा सकता ! पूर्वनियोजन ना होने की वजह से लाखों कामगार रास्तो पर उतर आए जिसके लिए देशभर के कामगारोंका रास्तों पर निकलना ताजा उदाहरण हम समझ सकते है ! जिसमे लाखों माइग्रेंट वर्कर्स जो मजदूरी करते है, जो किसी ना किसी कारणवश अपने गांव छोड़कर पेट भरने के लिए दिल्ली मुंबई जैसे शहरों में आ बसे है!

लॉकडाउन के बाद ऐसे लाखो कामगार सड़को पर उतर आए क्यों की सरकार का कहना था, ‘घर पर ही रहो, सुरक्षित रहो’ पर यह कामगार लॉकडाउन की वजह से अभीतक घर नहीं पोहोंचे थे, कही ना कही फसे हुए थे ! जिनका सिर्फ एक ही मकसद था, ‘हम सिर्फ घर जाना चाहते है’, कोरोना वायरस के बढ़ते प्रभाव में इतने नाजुक समय पर भी लोग सडको पर उतर आने के ४-५ दिन बाद सरकार को याद आया की स्थलांतरित मजदूरों,बेघरों के लिए शेलटर होम होने जरुरी है और तब जाके हमारे सरकार ने शेलटर होम के लिए अपने प्रयत्न शुरू किए |

पनवेल कामोठे में फंसे ट्रक ड्राइवर भी इस लॉकडाउन से पीड़ित है ! ट्रक ड्राइवरों का एक गुट जो ट्रांसपोर्ट का काम करते है, इस संचार बंदी निर्णय के बाद जहा पर ट्रक रोके गए वही इन्हे उन ट्रकों के साथ रहना पड़ा ! २१ दिनो तक ना खाना और ना रहने की जगह ! ऐसे में उनकी मदत कौन करता ये सवाल है ?

युवा संस्था ने कोरोना वायरस-महामारी और लॉकडाउन की वजह से निर्माण होने वाली हानिकारक परिस्थितियों का अंदाजा लगाकर कोरोना वायरस से और लॉकडाउन के चलते करोडो लोगोंपर आनेवाले भुखमरी की परिस्थितियों से लड़ने के लिए #TogetherWeCan #spreadlove_notcorona नामक अभियान शुरू किया।

इस अभियान में युवा संस्था की और से राहत कार्य की शुरुआत हुई। जिसमे दाल, चावल, आटा, मसाला, तेल, डेटॉल, नमक, महिलाओं के लिए सेनेटरी पैड और बच्चों के लिए पोषक आहार इत्यादि सामग्री शामिल है।

युवा संस्था ने #TogetherWeCan; #spreadlove_notcorona अभियान से अभीतक मुंबई, नवी मुंबई, पनवेल, वसई-विरार के 7794 परिवार याने तक़रीबन 38970 लोगोतक मदत पोहोंचाई है, इतना ही नहीं इस कोरोना वायरस — महामारी से लड़ने के लिए कर्त्तव्य पर दक्ष पोलिस कर्मचारी और सरकारी अस्पताल के कर्मचारी ऐसे कुल मिलाकर 100000 से ज़्यादा कर्मचारियों को भी सहायता के तौर पर भोजन पहुंचाया गया ! एक संतुष्टि तो मिलती है जब हम ऐसा कुछ काम करते है, मानवता की और अपना फर्ज अदा करते लेकिन बुरा भी लगता है जब हमे मन ना होते हुए भी किसीको अनाज के लिए ‘ना’ कहना पड़ता है ! इस काम के दौरान हमे कुछ अच्छे और बुरे अनुभव भी आए ! एक किस्सा याद हे, ६५ साल की दादी थी जिनको १६-१७ साल का एक पोता है वो भी काम करता है लेकिन लॉकडाउन के चलते उसका भी काम बंद है ! आनेवाला वक्त उन्हें डरा रहा था, ऐसे वक्त में युवा की तरफ से उन्हें महीने भर का राशन मिलने पर उन्होंने हमसे कहा था ‘तुम्हाला आशीर्वाद लागो, तुमच्या रुपात देव माणसाची मदत करतोय, असच काम करत रहा आणि पुण्य मिळवत रहा’ उनका कहने का मतलब था की तुम्हे आशीर्वाद मिले, तुम्हारे रूप में भगवान् लोगोंकी मदत कर रहे है, ऐसेही काम करते रहो और पुण्य कमाते रहो |

दूसरी तरफ जब सिवुड की बस्ती में अनाज बांटा जा रहा था तब ५-६ साल की लड़की टेम्पो के पास खड़े युवा के साथियो से अनाज मांग रही थी, हमारे युवा साथी ने उस बच्ची से कहा की ‘बेटा हम आपके घर पर आकर देंगे आप अभी यहाँ मत रुको, घर पर जाओ हम आते है आपके घर पे’ तब उस बच्ची ने गुस्से से जवाब दिया की ‘तुम लोग हमें मत दो, उन मुसलमानो को ही देते रहो…’ और लड़की आगे चलते हुए निकल गयी, ५-६ साल की लड़की के जेहन में ये बात आई कैसे ? यह हम सब जानते है की इन परिस्थीतिओं के लिए घर का और बस्ती का माहौल कितना जिम्मेदार है। इस घटना से एक बात ध्यान में आती है की हमें सिर्फ COVID-19 कोरोना वायरस से नहीं बल्कि लड़ना है ऐसे मुद्दोंसे भी जहा पर इंसान बड़ी आसानी से जात-धर्म-मजहब, देश-रंग-प्रान्त-भाषा के नाम पर बट जाते है !

कोरोना वायरस के बढ़ते प्रभाव की वजह से लॉकडाउन का समय शायद और भी बढ़ता रहेगा इस कारणवश युवा संस्था आगे भी अत्यावश्यक सेवा जरुरत मंद लोगों तक पहुंचाती रहेगी और समाज के अन्य सवालों की सामाजिक संवेदनशीलता को समझते हुए बस्तियों में इन सवालों की उलझनों को सुलझाने के लिए किसी ना किसी माध्यम से कार्य पर कटिबद्ध रहेगी !

अजय अनीता लक्ष्मण, युवा संस्था

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