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गुमनामी में अब शिक्षा का अलख जगाए है लड़कियों का पहला विद्यालय

By March 10, 2018January 2nd, 2024No Comments
खंडहर में बदल गया है लड़कियों के लिए भारत में पहला स्कूल

पुणे के भीड़े वाडा में, 170 साल पहले जनवरी 1848 में लड़कियों के लिए भारत में पहला स्कूल खोला गया. भारत की प्रसिद्ध महिला सामाजिक कार्यकर्ता सावित्रीबाई फुले ने अपने पति जोतीराव फुले के सहयोग से इस स्कूल का नींव रखा. सावित्रीबाई फुले को इस काम के लिए समाज की आलोचना का भी सामना करना पड़ा. उस समय लोग महिलाओं की शिक्षा का विरोध करते थे. इसके बाद भी सावित्रीबाई अपने इस नेक काम के जरिए समाज में, खास कर लड़कियों में शिक्षा का प्रसार कर समाज में नया बदलाव लाने में जुट गयीं.

आज सावित्रीबाई फुले के प्रयासों के जरिए ही लड़कियों को शिक्षित करने के लिए समाज में एक नई सोच आई है. लेकिन, यह दुखद है कि उनके द्वारा खोला गया यह पहला विद्यालय अब खंडहर में बदल गया है. लोगों को इस विद्यालय और इसकी ऐतिहासिक महत्त्व के बारे में कुछ पता नहीं है. स्थानीय लोग भी इस स्कूल के बारे में नहीं जानते हैं. इसके पास ही स्थित पुणे का मशहूर दगडूशेठ हलवाई का गणपति मंदिर ह, जहां हर दिन सैकड़ों लोग दर्शन करने आते है. लेकिन इस स्कूल के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है. इसे अब तक ऐतिहासिक धरोहर का भी दर्जा नहीं मिला है.

हाल ही में हमने लड़कियों की शिक्षा तथा सावित्रीबाई फुले के सहयोग के प्रति युवाओं में जागरूकता लाने के लिए देश के इस पहले कन्या विद्यालय का दौरा किया. इस दौरान हमने देश में लड़कियों की शिक्षा में आने वाली रुकावटों तथा इसके समाधान पर गंभीर चर्चा की.

सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों की शिक्षा के लिए कई अन्य विद्यालयों की भी स्थापना की थी. इन विद्यालयों में समाज के हर जाति तथा धर्म के विद्यार्थियों के साथ समान व्यवहार किया जाता था. उनका मकसद था, इससे समाज में सामूहिकता का भाव पैदा होगा. फातिमा शेख तथा मुक्ता साल्वे इस स्कूल की पहली छात्राओं में से एक थी. आगे फातिमा शेख लड़कियों को शिक्षित करने में लग गयीं और मुक्ता साल्वे ने एक जानी-मानी नारीवादी के रूप में अपनी पहचान बनाई.

यह एक ऐतिहासिक स्थान है. लेकिन इसकी बदहाल स्थिति सोचने पर मजबूर करती है. यहां जोतिराव फुले की प्रतिमा लगी हुई है लेकिन सावित्रीबाई फुले की प्रतिमा का अनावरण 2010 में किया गया. इसबारे में कार्यक्रम से जुड़ी आसमा सवाल करती हैं कि महिला प्रतिमाओं की स्थापना में समाज हमेशा पीछे क्यों रहता है? एक अन्य सहभागी पूजा को भी इस बारे में चकित होते हुए कहती हैं, ‘मैंने इस स्कूल के बारे में सूना था, लेकिन यह नहीं पता था कि यह इसी राज्य में है’. वे इसे संग्रहालय में बदलने कि बात करती हैं.

यह दौरा युवाओं में उनके समुदाय से बाहर एक हकीकत से परिचय कराने वाला रहा. जब कभी शिक्षा, समानता तथा लिंग पर बातचीत होगी, युवाओं का यह अनुभव उन्हें नई सोच विकसित करने में मदद करेगा. इससे उन्हें युवा समूह के लिए संविधान का मसौदा तैयार करने में भी सहायता मिलेगी. मालवणी का युवा परिषद इसी तरह नैतिक शिक्षा, सामाजिक न्याय, लैंगिग समानता, लोकतंत्र तथा धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर काम करता है.

ब्लॉग संपादक, सचिन नचनेकर (Project Coordinator, YUVA) के इनपुट के साथ

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