15 अगस्त के दिन एक कार्यक्रम के लिए बस से जा रहा था, बस सिग्नल पर रुकी थी, सिग्नल पर 10 से 12 साल के कुछ बच्चे हर रिक्षा के पास, हर कार के पास जाकर झंडे बेचने का प्रयास कर रहे थे। कुछ लोग उनसे झंडे खरीद रहे थे तो कुछ मना कर रहे थे, या फिर अपनी गाड़ी के शीशे उपर कर रहे थे। कुछ देर तक बस सिग्नल पर रुकी रही, दूर एक गाना चल रहा था जो मुझे सुनाई दे रहा था, “नन्हे -मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है…” कुछ स्कूल के बच्चे हाथ में झंडा लेकर, नाचते झूमते घर जा रहे थे, सिग्नल से बस निकली, गाना और बच्चे अब नज़रों से दूर जा चुके थे….I
ऐसी ही किसी भागदौड़ वाली सुबह, ट्रेन मे सफर कर रहा था। एक परिवार बैठा हुआ था, उनके साथ एक बच्ची थी, लगभग 10 साल की, किसी खिलौने के साथ खेल रही थी, अपनी ही दुनिया मे खोई हुई, बिस्कुट खा रही थी, अचानक उसकी नजर एक बच्ची पर गई, उसी की तरह लगभग 10 साल की जो हाथ फैलाकर खाने के लिए कुछ मांग रही थी, दोनों बच्चियों ने एक दूसरे को देखा, कुछ देर तक देखते रहे, परिवार ने अपनी बच्ची का चेहरा घुमाया, दूसरी बच्ची वहां से चली गयी। मैं स्टेशन पर उतर गया…दोनों बच्चियों के चेहरे दिन भर मेरी नज़र के सामने आते रहे…I
एक शाम टीवी पर न्यूज़ देख रहा था, एक खबर आयी, ट्यूशन पढ़ाने वाले शिक्षक ने एक १४ साल की लड़की का यौन शोषण किया, जो उसके यहाँ ट्यूशन लेने आती थी, ऐसे ही एक दुसरी खबर में एक स्कुल में एक बच्चे को शिक्षक द्वारा बुरी तरह से पीटने का मामला भी सामने आया।
ऐसी अनगिनत घटनाएं हमारे आसपास होती रहती हैं। आये दिन हम न्यूज चॅनल पर देखते है, अखबारो मे पढ़ते हैं कि कभी किसी बच्ची के साथ यौन शोषण हुआ, किसी बच्चे के साथ मारपीट हुई, किसी बच्ची का अपहरण हुआ, किसी बच्चे के साथ अत्याचार हुआ, बाल विवाह, बाल मज़दूरी, स्कुल से ड्रॉप-आउट बच्चे, नशीली चीज़ों का सेवन करने वाले बच्चों की बढ़ती संख्या, साइबर बुलींग इत्यादी की घटनाएं हमारे आसपास, हर जगह होते हुए दिखाई देती हैं पर हम इसे नजरअंदाज करते हैं…या फिर नजरअंदाज करना सिख जाते हैं।
20 नवंबर 1989 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने जागतिक (वैश्विक) स्तर पर एक बाल अधिकार परिषद बुलाई थी। उस परिषद में बच्चों के अधिकार और हकों को लेकर एक संहिता बनाई गयी जिसे हम सभी बाल हक़ संहिता के नाम से जानते हैं। इस बाल हक़ संहिता ने दुनिया के सारे बच्चो को कानुनन हक़ दिये हैं। यह बाल हक़ संहिता कहती है कि जिस भी व्यक्ति के 18 साल पूरे नहीं हुए हैं, उन्हें हम बच्चा यानी के बालक/बालिका कहेंगे। साथ ही में, इस संहिता ने बच्चों को विविध अधिकार मुहैया किए जिसमें जीने का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार, विकास का अधिकार, और सहभागिता के अधिकार शामिल हैं और इन अधिकारों को अमल में लाने के लिए सरकार की जवाबदेही भी तय की गयी है। हमारे भारत देश ने 11 दिसंबर 1992 को इस बाल हक़ संहिता पर अपने हस्ताक्षर किये और बच्चों के हक़ों को लेकर अपनी ज़िम्मेदारी और जवाबदेही तय की। इस साल 2023 मे बाल हक़ संहिता को 34 साल पुरे होंगे और भारत के इस बाल हक़ संहिता पर हस्ताक्षर करने के 31 साल पुरे होंगे, हम हर साल की तरह, इस साल भी यह दो दिन काफी उत्साह के साथ मनाए जाएंगे। बच्चों के अधिकार, उनके हक़ और सुरक्षा की बात करेंगे, लेकिन क्या हम वास्तविकता की बात नहीं करेंगे….? क्या इन 34 सालो में कुछ बदला है..? जिस बाल हक़ संहिता में बच्चों की सुरक्षा को लेकर हमने अपनी जवाबदेही तय की थी, क्या सच में हमने अपनी ज़िम्मेदारी पूरी तरह से निभाई है..? हम सभी को यह समझना होगा कि हम हमारे मकसद से अब भी काफी दूर हैं, हमें वास्तविकता की बात करनी होगी… और वास्तविकता कुछ ऐसी है-
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में बच्चों के साथ होने वाले आपराधिक मामलों का विवरण दिया गया है, जो हम सभी के लिए बेहद चौंकाने वाला है। हमारे देश मे बाल मज़दूरी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में, बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 के तहत लगभग 982 मामले दर्ज किए गए, जिनमें सबसे अधिक मामले तेलंगाना में दर्ज किए गए, इसके बाद असम का स्थान है।
सरकार की रिपोर्ट के अनुसार आज भी हमारे देश में लगभग 15 लाख बच्चे बाल मज़दूरी में है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी की गई रिपोर्ट से पता चलता है कि 2021 में बच्चों के खिलाफ अपराध के 1,49,404 मामले दर्ज किए गए। भारत में हर घंटे बच्चों के खिलाफ 17 अपराध हुए, यानी हर दिन 409 अपराध। इनमें से 36.05% मामले यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत थे। NCRB की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार बच्चों पर होने वाले यौन शोषण के मामलों में से 96% मामलों में यौन शोषण के अपराधी प्रभावित बच्चों के परिचय के व्यक्ति थे।
2021 में देश में हर दिन आठ बच्चों की तस्करी की गई। 2011 से 2021 के बीच बच्चों के खिलाफ अपराध 351% की दर से बढ़े। पिछले वर्ष की तुलना में 2021 में बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में 16.2% की वृद्धि हुई। प्रति लाख बच्चों की आबादी पर दर्ज अपराध दर 2020 में 28.9 की तुलना में 2021 में 33.6 है। कोविड-19 महामारी की वजह से बच्चे हिंसा का कहीं अधिक शिकार हुए। यूनिसेफ का अनुमान है कि हर साल, भारत में 18 साल से कम उम्र की कम से कम 15 लाख लड़कियों की शादी हो जाती है, जिससे यह दुनिया में बाल वधुओं की सबसे बड़ी संख्या का देश है – जो वैश्विक कुल का एक तिहाई है। लैंसेट के अनुसार, भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की लगभग 68% मौतों का कारण बाल और मातृ कुपोषण माना जा सकता है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2021 की रिपोर्ट ने भारत में भूख के स्तर को “खतरनाक” बताया है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में शामिल सभी देशों की तुलना में बच्चों में कमजोरी की दर भारत में सबसे अधिक, 17.3% है। बाल तस्करी की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में पिछले 3 वर्षों में लगभग 8,000 बच्चों की तस्करी की गई। इसके अलावा, महामारी ने तस्करी के खतरे को बढ़ा दिया है। (संदर्भ- Ambika Pandit, 30 जून 2022 TOI, NCRB का अहवाल 2022)
यह सारे मुद्दे हमारे सामने हैं- एक तरफ हम बच्चों के लिए व्यापक सुरक्षा के माहौल की बात करते हैं, वहीं दूसरी तरफ दिन ब दिन हमारे बच्चों की सुरक्षा का मुद्दा बेहद गंभीर होते हुए दिखायी दे रहा है। बच्चों पर होने वाले हर शोषण के खिलाफ हमें भुमिका लेनी होगी, हम सभी को एक साथ आकर सामुहिक प्रयास करने के लिए कदम बढ़ाना जरुरी है। सामाजिक कार्यकर्ता, सामाजिक संस्था, गैर-सरकारी संगठन, सरकारी व्यवस्था और तंत्र, प्रशासन और सरकार, हम सभी को साझा गठबंधन, समन्वय और सामूहिक रणनीति बनाकर बच्चों की सुरक्षा, उनके विकास और उनकी सहभागिता को सुनिश्चित करना होगा, और इसलिए हमें कुछ निम्नलिखित ठोस पहल करनी होंगी…
- 10 जुन 2014 के महाराष्ट्र सरकार के शासकीय प्रावधानों के अनुसार, ग्रामीण और शहरी स्तर पर बाल संरक्षण समिति को गठित करना और उसे सक्रिय करना बेहद जरूरी है। यह समिती हर वार्ड में बच्चो के सुरक्षा को लेकर प्रतिबंधात्मक (Prevention) दृष्टिकोण से काम कर सकती हैं।
- स्कूलों में बाल अधिकार, बच्चों की सुरक्षा और उनसे जुड़ी प्रक्रियाओं के बारे में लगातार जनजागृती कार्यक्रम का आयोजन करना और बच्चों के अर्थपूर्ण सहभाग को बढ़ाना।
- पहिले चाईल्ड लाईन हेल्पलाइन (1098) गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा चलायी जाती थी, लेकिन अब इस महीने से यह चाइल्ड हेल्पलाइन राज्य सरकार द्वारा हर जिले के डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट के अंतर्गत चलाई जा रही है। इस हेल्पलाइन 1098 को और सक्षम बनाने की दिशा में कदम उठाया जाना और ठोस नियोजन जरूरी है।
- बच्चों के विकास और सुरक्षा से जुड़े कानून और योजनाओं को प्रभावी रूप से अमल में लाना और हर व्यवस्था और प्रणाली में समन्वय को बढ़ाना जरुरी है।
- बच्चों की सुरक्षा के मुद्दों को लेकर अलग-अलग अभियान चलाना जैसे कि स्कूल चलो अभियान, बच्चों पर होने वाले हर शोषण से आज़ादी, बाल मजदूरी विरोधी अभियान, इत्यादि।
- बच्चों की सुरक्षा से जुड़ी हर व्यवस्था जिसमें पुलिस, विशेष पुलिस बल, डॉक्टर, नर्स और अस्पताल के कर्मचारी, बाल संरक्षण अधिकारी, न्यायिक व्यवस्था से जुड़े न्यायाधीश, सरकारी वकील, विधि सेवा प्राधिकरण, कामगार विभाग, शिक्षा विभाग, आरोग्य विभाग, गैर-सरकरी संगठन के कार्यकर्ता, इन सभी की क्षमता वृद्धी के लिए प्रयास करना।
- ऑनलाईन बुलिंग, साइबर क्राइम जैसे अपराधों को रोकने के लिए इस साइबर विभाग को और मजबूत बनाने की जरूरत है।
हम सभी अगर एक साथ आकर, मिल जुलकर, सामूहिक तरीके से हमारे देश के बच्चों के अधिकारों के लिए, उनकी सुरक्षा के लिए कदम से कदम मिलाकर काम करेंगे तो वो दिन ज़रूर आएगा, जिस दिन सभी बच्चे सुरक्षित होंगे, स्कूल में शिक्षा हासिल कर पाएंगे, मैदानों में खेलते हुए दिखाई देंगे, हर तरह के भेदभाव और शोषण से सभी बच्चे सुरक्षित रहेंगे। हम सभी को उनके कल के भविष्य को ही नहीं बल्कि उनके आज को, वर्तमान को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करना है, क्योंकि हम सब चाहते हैं कि ऐसा जहान हो, जहां हर बच्चे को सुरक्षा और सम्मान मिले…यह सच है कि आज अँधेरा है पर यकीन मानिये जिस सुबह की हम बात कर रहे हैं, वो सुबह जरूर आएगी….