शहर एक अजीब भौगोलिक इकाई है। यह प्रश्न भी ज़रूरी है कि क्या यह एक भौगोलिक इकाई मात्र है, या फिर यह एक सामुदायिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व सामाजिक इकाई भी है। शहर एक मिश्रित इकाई है, जिसमें भौगोलिक के साथ साथ सामाजिक, आर्थिक, व सांस्कृतिक विविधता
- प्रावधान–नियम–क़ानून: शहरी प्रशासन के मुख्य आयाम तीन महत्वपूर्ण वैधानिक प्रक्रियाओं के कारण सम्भव हो पाते हैं। इन प्रक्रियाओं को वैसे तो एक दूसरे की पूरक के रूप में देखा जाता है, लेकिन तीनों ही प्रक्रियाओं की अपनी परिभाषा है, अपने सम्भावनाएँ हैं, अपनी पारदर्शिता व जवाबदेही के आयाम हैं और अपनी दिक़्क़तें हैं। प्रावधान मुख्यतः शहरी स्तर के होते हैं व यह हर शहर में अलग-अलग भी हो सकते हैं। यह स्थानीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा किसी विशेष राजकीय आदेश से पारित किए जाते हैं, वहीं नियम किसी क़ानून या नीति का वैधानिक निर्वहन है। यह स्थानीय भी हो सकते हैं व राज्य स्तरीय भी। इसके विपरीत क़ानून सबसे महत्वपूर्ण वैधानिक प्रक्रिया है जिसे निर्वाचित प्रतिनिधियों का दल राज्य स्तर व विधानसभा व केंद्रीय स्तर पर संसद में पारित किया जाता है। क़ानून एक संसदीय प्रक्रिया है। जिसका सबसे अधिक प्रभाव व सख़्ती से पालन किया जाता है।
इसके अतिरिक्त कुछ प्रावधान किसी विशेष योजना के अंतर्गत भी बनाए जाते हैं। उदाहरण के लिए स्वच्छ भारत अभियान योजना के अंतर्गत शहरी स्तर पर कचरा प्रबंधन के लिए बनाए प्रावधान, वहीं इन प्रावधानों में केंद्रीय व राज्य स्तरीय शर्म क़ानूनों के नियम भी शामिल रहेंगे जिससे कि कोई भी प्रावधान उन क़ानूनों का उल्लंघन ना कर रहे हो।
सहभागी योजना के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया “मास्टर प्लान” या “विकास योजना” राज्य स्तर के क़ानून “नगर तथा ग्राम निवेश क़ानून” या “टाउन एंड कंट्री प्लानिंग क़ानून” के तहत तैयार किया जाता है।
- पथ विक्रेताओं के प्रकार: शहरी योजनाओं में सबसे महत्वपूर्ण कड़ियों में से एक होते हैं पथ विक्रेता। जैसा कि स्पष्ट है पथ विक्रेता का आशय ऐसे असंगठित मज़दूर वर्ग से है जो अपनी आजीविका के लिए शहरों (या ग्रामीण क्षेत्रों) में सड़कों-पगडंडियों-फुटपाथ-या बाज़ार विशेष में विक्रय करते हैं। 2014 के पथ विक्रेता क़ानून से पथ विक्रेताओं को एक वैधानिक पहचान मिली व पथ विक्रय के विनियमन के लिए एक नया रास्ता मिला। पथ विक्रेता एक बहुत बड़ा वर्ग है व असंगठित मज़दूर वर्ग की श्रेणी में देश में सबसे अधिक संख्या वाले समूहों में से एक है। पथ विक्रेता क़ानून 2014 के अनुसार मुख्यतः चार प्रकार के पथ विक्रेता होते हैं। जिसे हम इस टेबल के माध्यम से समझ सकते हैं।
शहरी योजनाओं में सबसे महत्वपूर्ण कड़ियों में से एक होते हैं पथ विक्रेता। जैसा कि स्पष्ट है पथ विक्रेता का आशय ऐसे असंगठित मज़दूर वर्ग से है जो अपनी आजीविका के लिए शहरों (या ग्रामीण क्षेत्रों) में सड़कों-पगडंडियों-फुटपाथ-या बाज़ार विशेष में विक्रय करते हैं। 2014 के पथ विक्रेता क़ानून से पथ विक्रेताओं को एक वैधानिक पहचान मिली व पथ विक्रय के विनियमन के लिए एक नया रास्ता मिला। पथ विक्रेता एक बहुत बड़ा वर्ग है व असंगठित मज़दूर वर्ग की श्रेणी में देश में सबसे अधिक संख्या वाले समूहों में से एक है। पथ विक्रेता क़ानून 2014 के अनुसार मुख्यतः चार प्रकार के पथ विक्रेता होते हैं। जिसे हम इस टेबल के माध्यम से समझ सकते हैं।
इस टेबल के अनुसार पथ विक्रेताओं के मुख्य रूप से चार प्रकार हैं:
- स्थिर पथ विक्रेता
- अस्थिर पथ विक्रेता
- अस्थायी पथ विक्रेता
- अवधि आधारित पथ विक्रेता (साप्ताहिक पथ विक्रेता, रात्रि बाज़ार, मासिक हाट इत्यादि)
इन पथ विक्रेताओं के विकर के स्थान भी लगभग तय होते हैं जो निम्नलिखित स्थानों से विक्रय करते हैं:
प्राकृतिक बाज़ार
विशेष बाज़ार
योजना निर्माण व मास्टर प्लान
शहरी व ग्राम निवेश क़ानून या राज्य द्वारा तय किसी भी क़ानून के अंतर्गत उस शहर के लिए एक दीर्घ अवधि (लम्बे समय) के लिए विकास योजना बनाए जाते हैं, जिनका निर्माण राज्य स्तरीय क़ानून के माध्यम से होता है। इन दस्तावेज़ों को अलग-अलग शहरों में अलग नामों से जानते हैं जैसे विकास योजना, मास्टर प्लान आदि। दिल्ली के संदर्भ में यदि समझे तो इसे मास्टर प्लान कहते हैं जिसे दिल्ली विकास प्राधिकरण क़ानून के अंतर्गत बनाया जाता है। दिल्ली का पहला मास्टर प्लान 1962 में तैयार किया गया था, जिसके बाद हर 20 वर्ष में यह दस्तावेज़ तैयार किया जाता है। अभी तक कुल तीन मास्टर प्लान बन चुके हैं जिसमें दिल्ली मास्टर प्लान 2021 सबसे नया था व 2041 के मास्टर प्लान बनाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
जैसा कि ऊपर लिखित है कि पथ विक्रेताओं का मास्टर प्लान के अंतर्गत योजना निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका होता है क्योंकि शहर की भगोलिक परिसीमा में पथ विक्रेताओं का एक बड़ा वर्ग शहरी ज़मीन पर है व उनके लिए हर बार प्लान में विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। एक आवश्यक समझने वाली बात यह है कि मास्टर प्लान में भूमि उपयोग, ज़ोनल प्लान, और लेआउट डिज़ाइन को भी समझाया जाता है। भूमि उपयोग प्लान का मतलब है कि किसी भी शहर के के पूरे भौगोलिक क्षेत्र को उन क्षेत्रों में होने वाले क्रिया कलापों या फिर योजना में तय किए गये आरक्षणों के अनुसार भूमि का उचित उपयोग के लिए एक नक़्शा तैयार करना। भूमि उपयोग एक तरह का नक़्शा है जिसमें कई तरह के उपयोग जैसे आवासीय, व्यवसायिक, आर्थिक, औद्योगिक, सार्वजनिक उपयोग इत्यादि का आरक्षण किया जाता है। वहीं ज़ोनल प्लान मास्टर प्लान का ही एक हिस्सा है जिसमें शहर को अलग अलग ज़ोन में बाँट दिया जाता है, व मास्टर प्लान को और भी अधिक विस्तार से समझने के लिए उन ज़ोन का ज़ोनल प्लान बनाया जाता है। एक ज़ोन में कई प्रकार के भूमि उपयोग हो सकते हैं, व कुछ ज़ोन ख़ास तरह के भूमि उपयोग के लिए ही आरक्षित किए जाते हैं।
सहभागी योजना से क्या आशय है?
किसी भी राज्य के शहरी व ग्राम निवेश क़ानून (T&CP Act) में मास्टर प्लान के निर्माण की प्रक्रिया विस्तार से समझायी जाती है। इस प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है मास्टर प्लान को फ़ाइनल करने से पहले एक मसौदा आम नागरिकों के साथ साझा करना व उस पर नागरिकों के सुझाव व आपत्ति को समझना। इस क़ानून के इतने वर्षों से देश में क्रियान्वित होने के बाद भी शहरों में आम नागरिकों को मास्टर प्लान बनाने की प्रक्रिया, व मास्टर प्लान के प्रावधानों की पूरी जानकारी नहीं होती है, ख़ासकर शहर में रह रहे प्रवासी, ग़रीब व वंचित लोगों की तो बिलकुल ही पहुँच नहीं हो पाती है। जबकि मास्टर प्लान के कारण होने वाले शहर में बदलाव व विकास से सबसे ज़्यादा प्रभावित भी यही वर्ग होते हैं। इसीलिए आवश्यक है कि शहर के लिए बनने वाली योजनाओं को सभी वर्गों की सहभागिता, उनके सुझाव, उनकी समझ व उनकी आपत्तियों को सुलझा कर ही बनाया जाए। सहभागी योजना के लिए आवश्यक है कि सभी वर्गों को इस पूरे प्रक्रिया की समझ हो, उनके सुझाव इस प्लान का हिस्सा हों व सभी वर्गों के मुद्दे इस योजना में शामिल हों। कई बार एक वर्ग के लिए बनाए गये मुद्दे दूसरे वर्ग के लिए ख़तरनाक हो सकते हैं, जैसे मुंबई जैसे शहर में परिवहन की दिक़्क़त ख़त्म करने के लिए यदि समुद्र के रास्ते किसी रास्ते की योजना बनायी जाए तो इसके कारण मछली पकड़ने वाले समुदाय, उनके आवास, उनकी आजीविका व उनकी संस्कृति को इससे बड़ा ख़तरा हो सकता है। ठीक ऐसे ही यदि इंदौर में युवा वर्गों के विकास के लिए आईटी पार्क की योजना बनायी जाती है और उसके लिए बहुत बड़ा ज़मीन ख़ाली करवा कर अधिग्रहण किया जाता है तो इस कारण कई बस्तियों को बेदख़ली झेलनी पड़ सकती है। अतः सभी वर्गों के हित व अहित को ध्यान रखते हुए ही योजना का निर्माण होना चाहिए।
सहभागी योजना व विभिन्न वर्गों के साथ इसके रिश्ते पर बनने वाली असीम सम्भावनाओं के बीच एक अभियान या नेट्वर्क के रूप में साझे प्रयास किए जाने आवश्यक हैं। उदाहरण के लिए ऐसे प्रयास कई शहरों में किए गये हैं जैसे मुंबई में हमारा शहर मुंबई अभियान, तथा दिल्ली में मैं भी दिल्ली अभियान इत्यादि। यदि मैं भी दिल्ली अभियान के परिपेक्ष्य में समझें तो इसके आठ महत्वपूर्ण चरण हो सकते हैं:
- मास्टर प्लान के मुद्दे पर शहर के विभिन्न संगठनों के एक साथ लाना; सन 2018 में आयोजित एक कार्यशाला के माध्यम से सबसे पहले कुछ संस्थाओं को जोड़ा गया व उसके बाद इस कार्यशाला के बाद एक बैठक बुलायी गयी जिसमें इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा हुई व एक वर्किंग ग्रूप तैयार हुआ।
- सभी संस्थाओं व संगठनों का मास्टर प्लान से परिचय व प्रशिक्षण; इस वर्किंग ग्रूप के माध्यम से विभिन्न संस्थाओं को जोड़ा गया व उनका प्रशिक्षण किया गया।
- विभिन्न सेक्टरों व वर्गों की पहचान व संस्थाओं से उन्हें जोड़ना; कई महीनों व कई दौर के बैठकों के माध्यम से कई वर्ग जैसे ‘आवासीय’, ‘पथ विक्रेता’, ‘जेंडर’, ‘निर्माण मज़दूर’, स्पेशल ज़ोन, कचरा कामगार, व सार्वजनिक स्थल आदि समूह तैयार हुए। जिसपर कार्य करने की ज़िम्मेदारी विभिन्न संस्थाओं व संगठनों ने ली।
- संस्थाओं व संगठनों की मदद से संसाधन जैसे प्रशिक्षण मोड्यूल, फ़ैक्टशीट व बेसलाइन रिपोर्ट तैयार करना, उन समूहों के साथ बैठक कर, उनके साथ चर्चा व सर्वेक्षण कर विभिन्न संसाधन तैयार करना।
- इन संसाधनों की मदद से सभी सेक्टरों के लोगों का प्रशिक्षण व उनसे जुड़े मुद्दे निकालना व अभियान के रूप में पहचान स्थापित करना, अभियान का नामकरण, इसके सिद्धांत, उद्देश्य, दिशानिर्देश, समूह की पहचान व मुख्य कार्यों को विकसित करना।
- मास्टर प्लान बनाने वाली संस्थानों से परिचय व पैरवी, दिल्ली के मामले में यह संस्थान दिल्ली विकास प्राधिकरण व NIUA हैं। दोनों ही संस्थानों से लगातार बातचीत की गयी व अभियान के मुद्दों, कार्यों व दस्तावेज़ों से इन्हें अवगत करवाया गया।
- मास्टर प्लान के मसौदे पर सुझाव व चर्चा (विभिन्न सेक्टरों व संस्थाओं के साथ), पहला मसौदाँ पेश होने के बाद अभियान के रूप में विभिन्न वर्गों से जुड़े सुझावों व प्रश्नों को संस्थानों तक पहुँचाना।
- मीडिया व दूसरे शहरों के संगठनों तक बात पहुँचाना; मीडिया से जुड़ाव व मीडिया को अभियान के रूप में इस प्रक्रिया का हिस्सेदार बनाना ज़रूरी है। साथ ही अभियान के विभिन्न क्रियाकलापों के बारे में दूसरे शहर के ससन्थाओं व संगठनों को भी शामिल रखना चाहिए।
- पथ विक्रेताओं के साथ सहभागी योजना की सम्भावनाएँ
बहुत लम्बे समाय तक पथ विक्रेताओं को शहर में अवैद्य या अतिक्रमण के रूप में देखा जाता था, जिसे 2014 में पथ विक्रेता क़ानून के माध्यम से ख़त्म करने का पहला प्रयास किया गया। पथ विक्रेता देश में असंगठित मज़दूर वर्ग के सबसे बड़े वर्गों में से एक है और शहर की योजना में मुख्य रूप से इस वर्ग के बारे में भूमि उपयोग या ज़ोनल योजना में ज़िक्र नहीं किया जाता है। क़ानून के अनुसार सबसे छोटे अनुमान में भी पथ विक्रेता शहरों की जनसंख्या के क़रीब ढाई प्रतिशत आबादी होते हैं। NASVI द्वारा 2011 में किए गये शोध के अनुसार भारतीय जीविका वर्ग का क़रीब 11% पथ विक्रेता है जिसकी संख्या निरंतर बढ़ती गयी है। निरंतर बढ़ते पथ विक्रेताओं का मतलब है शहर कि कुल भूमि पर पथ विक्रेताओं के लिए अधिक स्थान की आवश्यकता। पथ विक्रेता क़ानून के अनुसार शहरी जनसंख्या के ढाई प्रतिशत जनसंख्या के बराबर भूमि आरक्षित की जानी चाहिए।
पथ विक्रेताओं के साथ सहभागी योजनाओं पर कार्य करने के लिए आवश्यक है यह समझना कि मास्टर प्लान या विकास योजना के कारण पथ विक्रेताओं पर क्या प्रभाव पद सकता है। पथ विक्रेताओं के वह कौन से मुद्दे हैं जो मास्टर प्लान के कारण प्रभावित होते हैं। पथ विक्रेताओं के लिए सबसे मुख्य दिक़्क़त है उन पर अतिक्रमण व क़ब्ज़ाधारी होने का आरोप, जिसे 2014 क़ानून में पूरी तरह से खंडन कर दिया गया है, लेकिन इसके बावजूद अभी भी शहरों में पथ विक्रेताओं को क़ब्ज़ाधारी या अतिक्रमणकारी ही कहा जाता है और इसके कारण पथ विक्रेताओं को उनके विक्रय स्थलों से बेदख़ल भी किया जाता है। इसके साथ ही पथ विक्रेताओं को न्यूनतम सार्वजनिक सुविधा व देखरेख में कार्य करना पड़ता है। इसके अलावा स्थानीय प्रशासन द्वारा उनका मानसिक व आर्थिक शोषण, आय की कमी व उनके बाज़ारों की कोई पहचान ना होना भी बड़ी दिक़्क़तें हैं। पथ विक्रेताओं को लेकर क़ानून के अलावा कई अदालत के आदेश भी हैं जिनमें पथ विक्रेताओं क महत्व को बताया गया है और उनके विनियमन और उनके अधिकारों को लेकर भी आदेश दिए हैं। इन आदेशों व क़ानून के दिशानिर्देशों के अनुसार हम पथ विक्रेताओं को अनौपचारिक अर्थ व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग समझते हुए उनके अधिकार, उनकी जीविका व उनके मुद्दों को शामिल करते हुए सहभागी योजना की सम्भावनाएँ तय करते है। जिसमें पथ विक्रेताओं को ज़मीन और उनकी जीविका के बीच के सम्बंध को अच्छे से समझना आवश्यक है, इसके बाद पथ विक्रेताओं के मुद्दे, उनकी माँग, उनके सुझाव और सड़कों के डिज़ाइन और पथ विक्रेताओं की संख्या से जुड़े ज़रूरी गणित करने के बाद योजना को एक पुख़्ता सुझाव देना आवश्यक है। ज़मीन का आरक्षण, सुविधाओं की व्यवस्था, नए प्रकार के बाज़ारों का विकास, सभी पथ विक्रेताओं की पहचान, व बेदख़ली को रोकने से जुड़े सभी आवश्यक प्रयास आदि के माँग के साथ सहभागिता से मास्टर प्लान में पथ विक्रेताओं के मुद्दों को जोड़ सकते हैं।
सहभागी योजना का मतलब सिर्फ़ यह नहीं कि सिर्फ़ निमरन की प्रक्रिया में सहभागिता हो बल्कि मास्टर प्लान के मुख्य दिशानिर्देशों को समझते हुए पथ विक्रेताओं के प्रावधानों को समझें व किसी भी समस्या में इसकी सहायता से कैसे हस्तक्षेप किया जा सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि हम निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दें:
- व्यावसायिक केंद्रों की पहचान: भूमि उपयोह योजना में व्यवसायिक उपयोग के लिए आरक्षण किया जाता है, इन केंद्रों की पहचान की जाए ताकि शहर के सभी व्यवसायिक केंद्रों की पहचान की जाए।
- क़ानून के अनुसार ढाई प्रतिशत भूमि का आरक्षण: क़ानून के अनुसार मास्टर प्लान में भूमि आरक्षण पर ज़ोर दिया जाए व तय किया जाए कि यह आरक्षण वर्तमान में स्थापित बाज़ारों के रूप में ही किए जाएँ ना कि नए ज़ोन बनाने पर ज़ोर दिए जाएँ।
- ख़तरे की पहचान: मास्टर प्लान में भूमि उपयोग व योजनाओं को लेकर शुरू होने वाली किसी भी ख़तरे की पहचान नक़्शे व योजना के अनुसार की जानी चाहिए ताकि हस्तक्षेप के लिए मुद्दे तैयार किए जा सके।
- मिश्रित उपयोग हेतु: पथ विक्रेता मात्र व्यवसायिक केंद्रों ही नहीं बल्कि औद्योगिक, सार्वजनिक स्थलों, आवासीय व अन्य स्थानों पर भी अपनी जीविका चलाते हैं, इसलिए यह ज़रूरी है कि पथ विक्रेताओं के लिए सिर्फ़ व्यवसायिक आरक्षण ही ना हो बल्कि एक मिश्रित योयोग के रूप में पथ विक्रेताओं को बढ़ावा दिया जाए।
इन सभी महत्वपूर्ण मुद्दों के साथ यह भी आववश्यक है कि सहभागी योजना बनाने से पहले पथ विक्रेताओं की समस्याओं, उनकी स्थिति व उनके सामान्य मुद्दों को लेकर एक समझ बनायी जाए जिसे कि वल्नरबिलिटी इंडेक्स के माध्यम से समझ सकते हैं।
Vulnerability Index
किसी भी असंगठित या अनौपचारिक श्रमिक वर्ग के लिए उनके रोज़गार के प्रकार व उससे जुड़े परिपेक्ष्यों के कारण कई तरह की दिक़्क़तें सामने आती हैं। इन सभी दिक़्क़तों को समझने के लिए आवश्यक है कि हम उन सभी वर्गों के अलग-अलग कमज़ोरियों, परिपेक्षों, तत्वों को समझे ताकि उन पर काम किया जा सके। इसी तरह सहभागी योजनाओं में पथ विक्रेताओं के उन सभी परिपेक्षों को समझने के लिए ‘युवा’ की ओर से ‘मैं भी दिल्ली अभियान’ के लिए एक फ़्रेमवर्क तैयार किया गया, जिसे पथ विक्रेता वल्नरबिलिटी इंडेक्स का नाम दिया गया। इस इंडेक्स को बनाने में हमने कुल दस महत्वपूर्ण तत्व लिए जो सीधे रूप से पथ विक्रेताओं से जुड़े हैं, फिर उन सभी तत्वों के लिए तीन प्रकार की परिस्थितियाँ रखी गयीं, उन परिस्थितियों को ‘बेस पोईंट’ दिए गये। यह बेस पोईंट थे 0, 0.5 तथा 1। ‘0’ सबसे बेहतर स्थिति व 1 सबसे ख़राब स्थिति रखी गयी व 0.5 को औसत स्थिति के रूप में रखा गया। अंत में इन सभी तत्वों की अलग परिस्थितियों को जोड़े जाने पर सभी पथ विक्रेताओं को 10 पोईंट में से आंकलन किया जाएगा, आंकलन में विक्रेताओं के पोईंट 10 के जितने क़रीब वह उतने अधिक वलनेरबल तथा 10 से जितना दूर वह उतनी बेहतर स्थिति में।
इन सभी तत्वों व बेस पोईंट के साथ कुछ तर्क भी रखे गये जो उन स्थितियों को बेहतर समझने में सहायता कर सके।
यह 10 तत्व हैं:
- लिंग
- घर से दूरी
- शिक्षा
- विक्रय का मालिकाना हक़
- कार्य अवधि
- आश्रित की संख्या
- आय
- क़ानून की समझ
- कार्य क्षेत्र से बेदख़ली
- किसी यूनियन से जुड़ाव
इन सभी तत्वों के बेस पोईंट को जोड़ने से इंडेक्स में एक पथ विक्रेता का मूल्याँकन किया जा सकता है, जिसके माध्यम से पथ विक्रेताओं के वल्नरबिलिटी का मूल्याँकन संभव है।
पथ विक्रेता को हमें अतिक्रमण व क़ब्ज़ाधारी तथा ट्रैफ़िक में अवरुद्ध पैदा करने वाले वर्ग के परे एक व्यवसायिक मज़दूर वर्ग जिसे कानों द्वारा विनियमित एक वर्ग के रूप में देखना आवश्यक है। शहर की भूमि पर पथ विक्रेताओं के लिए आरक्षण व उनके लिए शहर में पहचान व सम्मान की लड़ाई को साथ लेकर चलना आवश्यक है। कई पथ विक्रेताओं के बाज़ार अब शहर की पहचान बन गए हैं, वहीं कई बाज़ार स्वतः शहर में हो रहे लगातार विकास के कारण विकसित हो रहे हैं, इन सभी बाज़ारों की पहचान व इन बाज़ारों में काम करने वाले पथ विक्रेताओं की पहचान हम सब के लिए सहभागी योजना के लिए पहला क़दम है। शहर सभी का है, और सभी की इसमें हिस्सेदारी सुनिश्चित होनी ही चाहिए।
वर्तमान में मास्टर प्लान में पथ विक्रेताओं को असंगठित अर्थव्यवस्था का हिस्सा तो माना जाता है परंतु उन्हें जगह का अधिकारपूर्ण आवंटन नहीं मिलता है। मैं भी दिल्ली अभियान की ओर से भी इसे लेकर प्रयास किए गये हैं व सुझाव के रूप में पूरी दिल्ली की ज़मीन को पथ विक्रय के लिए अनिवार्य करने की माँग रखी गयी है ताकि पथ विक्रेता क़ानून के तहत TVC विक्रय व ग़ैर विक्रय ज़ोन की पहचान कर उन्हें चिन्हित करें व मास्टर प्लान यह ना करे। अभी भी इस पर काफ़ी कुछ किया जाना बाक़ी है, पथ विक्रेताओं का प्रशिक्षण व उन्हें मास्टर प्लान का एक अभिन्न हिस्सा बनाना अभी बाक़ी है, दिल्ली में पथ विक्रेताओं के एक बड़े हिस्से को मास्टर प्लान के बारे में सतही जानकारी ही है, इसे बदलना है, व मास्टर प्लान में पथ विक्रेता क़ानून का ज़िक्र सबसे महत्वपूर्ण क़दम होगा।
– इस आलेख के कुछ महत्वपूर्ण पहलू ‘मैं भी दिल्ली अभियान’ व ‘हमारा शहर मुंबई अभियान’ के सौजन्य से लिए गये हैं।
अंकित झा, अर्बन प्रैक्टिशनर. यह लेख अंकित के युवा में काम पर आधारित है.
यह सड़क विक्रेताओं पर लिखे गए तीन भाग का तीसरा भाग है। भाग 1 के लिए यहां दबाएं और भाग 2 के लिए यहां दबाएं।