YUVA observed World Cities Day, 31 October 2018, committing to the goal of resilient and sustainable cities with the launch of the anti-eviction support website http://antievictionsupport.org. The website aims to address the huge gap in the mainstream reporting of evictions, and offer holistic support to vulnerable communities and street vendors prone to repeated eviction cycles.
YUVA’s anti-eviction support cell has been existing as a helpline-based outreach (dial 9833900200) for vulnerable persons and communities since 2015. With the addition of the website, the cell has expanded on its capabilities to address the welfare of the marginalised people both offline and online. The website offers technical, legal as well as advocacy support to anyone who wants to engage with anti-eviction processes in the country. It contains important resources, publications, case studies, strategic plans and is constantly updated with news on handling evictions. The website has support for Hindi and English currently.
The anti-eviction support cell (AESC) is the first of its kind in the country. Calls can be made and online support sought before, during, and post-evictions experienced. It is adaptable to the needs of the people, undergoing iterations as required to not just respond to evictions but ensure their prevention in the first place.
Once a call/online application is received, the Support Cell documents and forwards it, to be taken up by us directly or through partner organisations and independent activists. Interventions often take the form of legal support, advocacy with representatives and commissions, and awareness building to help the community respond to evictions.
YUVA also offers strategic guidance, training and capacity building of communities and organisations on how to handle and prevent forced evictions, and seek fair and just rehabilitation. Given the pace of development being followed in urban centres, the urban poor has become particularly vulnerable to evictions. The AESC tries to capacitate communities with legal and socio-political tools to help them address evictions and encourages community based networks and basti-based task forces to remain alert about the on-ground situation constantly. Similar actions are taken in the case of eviction of street vendors too. While informality is the very nature of street vending, most of the time they are evicted for being informal. Even after the enactment of the Street Vendors Law 2014, to protection and regulate their livelihood profession, street vendors have faced violation of their rights. With our support, several eviction drives have been resisted so far in cities like Ranchi, Bhubaneswar, and Delhi.
We also undertake trend mapping of communities through different planning studies and onground research efforts. We have intervened in many cases through the judiciary, supporting communities in Mumbai, Indore, Bhubaneshwar, Cuttack, Delhi, Puri, Patna, Ahmedabad and Ranchi. The Support Cell is based on the Basic Principles and Guidelines on Development-based Evictions and Displacement by the United Nations, and the human rights and social justice framework.
In the coming times, we aim to add the elements of urban planning, and mapping of incidents of evictions to strengthen the website further, and are inviting proposals to conduct capacity building sessions on handling forced evictions with communities. Do spread the word, and join us in our endeavours towards a more just society.
नम्य व सतत् शहरों के ध्येय से युवा संस्था ने 31 अक्टूबर 2018 को होने वाले अन्तर्राष्ट्रीय शहर दिवस के उपलक्ष्य में ज़बरन बेदख़ली के विरुद्ध सहायता इकाई के वेबसाइट http://antievictionsupport.org का अनावरण किया।इस वेबसाइट का मुख्य उद्देश्य ज़बरन बेदख़ली के मामलों की रिपोर्टिंग में व्याप्त कमियों को कम करके एक ऐसा प्लैट्फ़ॉर्म प्रदान करना है जहाँ लोग आसानी से इन मामलों को रिपोर्ट कर सकें और साथ ही बस्ती तथा पथ-विक्रेता बेदख़ली के चक्र से लड़ने हेतु सहायक संसाधन भी उपयोग में ला सकें।
युवा का यह ज़बरन बेदख़ली के विरुद्ध सहायता इकाई 2015 से अब तक हेल्पलाइन नम्बर (9833900200) के रूप में कमज़ोर व असहाय समुदायों के साथ काम कर रहा था। इस वेबसाइट के अनावरण के साथ अब इकाई की उपस्थिति में भी बढ़ोत्तरी होगी। जिससे हम और अधिक समुदायों तक ऑनलाइन या ऑफ़लाइन माध्यमों से पहुँच सकते हैं और आवश्यक सहायता प्रदान कर सकते हैं। यह वेबसाइट किसी भी व्यक्ति, समुदाय या संस्था को जो देश में ज़बरन बेदख़ली के विरुद्ध लड़ना चाहते हैं उन्हें तकनीकी, क़ानूनी और पैरवी के माध्यमों से सशक्त करने का प्रयास करता है। इस वेबसाइट पर ज़बरन बेदख़ली से लड़ने हेतु संसाधन हैं, उन संसाधनों के लिंक हैं, कई सारे प्रकाशन हैं, केस स्टडी हैं, रणनीति हैं, और बेदख़ली की ख़बरें हैं। यह सभी संसाधन वर्तमान में हिंदी व अंग्रेज़ी में उपलब्ध है।
यह सहायता इकाई देश का अपने स्वरूप में पहला ऐसा प्रयास है, जिसके तहत बेदख़ली से पहले, उसके दौरान या उसके बाद सिर्फ़ कॉल करके या वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी से सहायता प्राप्त कर लड़ाई लड़ी जा सकती है। यह सहायता लोगों व समुदाय की स्थिति, परिस्थिति और आवश्यकता के अनुसार की जाती है जो कि ना सिर्फ़ लगातार हो रहे बेदख़ली के बाद उसपर प्रतिउत्तर या जवाब कैसे तैयार करना है इसपर बात करनी है बल्कि साथ ही साथ अधिकांश ज़ोर इस बात पर दिया जाता है कि बेदख़ली को रोका कैसे जाए।
इसकी प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है कि एक बार जब कॉल या ऑनलाइन आवेदन प्राप्त होता है तो उस मामले को सबसे पहले दस्तावेजित कर आगे उस शहर में कार्य कर रहे हमारे साथी कार्यकर्ता जो या तो हमारी संस्था से हो सकते हैं या इस मुद्दे पर हमारे साथ कार्य कर रहे संस्था के साथी, को सूचित किया जाता है। यह हस्तक्षेप और सहायता क़ानूनी मदद, आयोग या प्रतिनिधियों के साथ पैरवी और समुदायों को बेदख़ली से लड़ने हेतु जागरूक करने के रूप में किया जाता है।
इसके साथ ही युवा समुदायों व संस्थाओं को बेदख़ली के विरुद्ध लड़ने हेतु, उसे रोकने हेतु तथा निष्पक्ष व न्यायोचित पुनर्वास प्राप्त करने के लिए रन्नीति बनाने में और क्षमता विकास में भी सहायता करती है। शहरी विकास के इस दौर में शहरी ग़रीब और अधिक असहाय व बेदख़ली के ख़तरे में आते जा रहे हैं। हम सहायता इकाई के रूप में विभिन्न समुदायों को क़ानूनी और सामाजिक — राजनैतिक माध्यमों से सशक्त करने का प्रयास करते हैं। ये सशक्तिकरण तथा सहायता हम उस समुदाय में समुदाय आधारित नेट्वर्क बनाने के माध्यम से करते हैं। ये नेट्वर्क ऐसे सशक्त नेट्वर्क होते हैं जो बेदख़ली के किसी भी स्थिति के बारे में सतर्क रहते हैं। ऐसे ही प्रयास रेहरी-पटरी व फुटपाथ विक्रेता और शहरी बेघर के मामले में भी करते हैं। चूँकि अनौपचारिकता सड़क विक्रय की एक प्रकृति है और अधिकांश समय उन्हें अनौपचारिक होने के कारण ही बेदखल कर दिया जाता है। 2014 में पथ विक्रेता अधिनियम के बाद भी देश में पथ विक्रेताओं को बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था के बेदख़ल किया जा रहा है। हमारे सहयोग से राँची, भुवनेश्वर व दिल्ली जैसे शहरों में पथ-विक्रेताओं के बेदख़ली के कई मामलों को रोका गया है।
हम इन सहायतों के प्रयास के साथ-साथ अलग-अलग नियोजन के शोध कार्य और ज़मीनी शोध करके ट्रेंड की भी समीक्षा करते हैं। हमने क़ानूनी रूप से व समुदायों को सहयोग करके कई शहरों जैसे मुंबई, इंदौर, भुवनेश्वर, कटक, पूरी, पटना, दिल्ली अहमदाबाद, और राँची जैसे शहरों में अब तक सफल रूप से कार्य किया है। इस सहायता इकाई के कार्य करने का मुख्य आधार विकास आधारित बेदख़ली पर संयुक्त राष्ट्र के दिशा-निर्देश तथा मानव अधिकार व सामाजिक न्याय की रूपरेखा है।
आने वाले समय में हम शहरी नियोजन, नक़्शे के माध्यम से बेदख़ली के मुद्दे स्थापित करना, और साथ ही साथ अपने समुदाय में क्षमता विकास को लेकर प्रस्ताव भेजने के लिए लिंक इत्यादि भी इस वेब साइट से जोड़ना चाहते हैं। हम इस वेबसाइट को उन सभी लोगों के परिश्रम, सोंच, विचार और संघर्ष को समर्पित करना चाहते हैं जो अब तक आवास व जीविका की लड़ाई से जुड़े रहे हैं और आगे भी जुड़ना चाहते हैं। एक न्यायसंगत व संघर्षशील समाज की ओर बढ़े इस क़दम में सहायता दें और इसके बारे में और लोगों को भी बताएँ।
Ankit Jha, Project Associate