कोविड-19 के चलते हमारे राहत कार्य पर एक ख़बर
बढ़ती भेद्यता
आज जब भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित 21-दिनों के लॉकडाउन के 9-वे दिन में पहुँच गया है, एक-तिहाई से बस कुछ ही ज़्यादा, हमारे सामने जो चुनौतियाँ हैं वो कोविड-19 महामारी से फैलती अस्वथता से कई ज़्यादा बड़ी हैं । इस अचानक लिए गए फैसले ने, जो कि भारत के ग़रीबों के लिए किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा की घोषणा के बिना ही ले लिया गया, लाखों की तादाद में दैनिक मजदूरी पर काम करने वाले मज़दूरों को दरिद्रता में धकेल दिया है । रातों रात, रोज़गार में जुटा ये तबका (अनुमान के मुताबिक भारत में काम करके कमाने वालों में से लगभग 90 प्रतिशत लोग) अब बिना किसी रोज़गार के, बिना खाना खरीदने के लिए रुपयों के, और भरपूर लाचारी के साथ रह गए हैं । हमारे टीवी चैनलों पर इनकी तस्वीरें भरी पड़ी हैं — स्टेशनों पे इस उम्मीद से जमा हजारों लोग कि उन्हे उनके गाँव वापस जाने का मौका मिल जाए, सुबह से रात तक इस उम्मीद से लाइनों में खड़े लोग कि एक वक़्त का ख़ाना मिल जाए, या फिर ऐसी अकल्पनीय कोशिश करते लोग कि वहाँ से उनके हजारों किलोमीटर दूर घरों की तरफपैदल ही चल दें । और इस स्थानान्तरण को शायद देश के विभाजन के बाद का सबसे बड़ा ऐसा स्थानान्तरण बताया जा रहा है जो पैदल तय किया जा रहा है । जल्द ही केन्द्रीय और राज्य सरकारों द्वारा कई मदद भी घोषित हुईं, लेकिन उनमें से अभी बहुत कुछ लोगों तक पहुँचना बाकी है । और यह स्पष्टता भी नहीं है कि यह मदद लोगों तक पहुँचेगी कैसे, बिना और गड़बड़ी के ।
हमारी कोशिशें
कोविड -19 के बढ़ते प्रभाव के चलते, यूथ फॉर वालन्टेरी एक्शन (युवा) ने मुंबई महानगर के चार शहर — वसई विरार, मुंबई, नवी मुंबई और पनवेल — के उन शहरी ग़रीबों की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने की कोशिश की है जिनके साथ हम काम करते हैं । इनमें से सबसे ज़रूरतमंद परिवारों से शुरू कर के हमने सब तक हफ्ते भर का राशन पहुँचने का काम किया है । हमारे कोशिशों के बारे में यहाँ पढ़ें —#1, #2, #4, #5, #6, #7, #8 ।
परिस्थिति के बदलते स्वभाव के चलते और लोगों की बढ़ती ज़रूरतों और मांगों के चलते, हमारी कोशिश इस प्रकार से आकार लेती गई:
- (20 मार्च 2020 से) 2 हफ्तों से अधिक समय में #TogetherWeCan का राहत कार्य कम से कम 16,895 लोगों तक पहुंचा! हम कम से कम 3,379 शहरी गरीब परिवारों को हफ्ते भर का राशन देने में कामयाब रहे । इनमें से 390 परिवारों की पहचान और उन तक राहत सामान पहुँचने का काम हमारी साथी संस्थाओं और आंदोलनों द्वारा हुआ — Aajeevika Bureau, Save the Children India, Curry Stone Foundation और जीवन बचाओ आंदोलन, माहुल । हमने जिन स्थानों में काम किया है उनमें यहाँ के बेघर लोगों के ठिकाने भी शामिल हैं — कुर्ला, शीव, दादर, माटुंगा, जोगेश्वरी, इत्यादि । इसके अलावा मानखुर्द, बांद्रा, मालाड, नालासोपारा, नवी मुंबई इत्यादि की स्लम सेटलमेन्ट और रीसेटलमेन्ट (आर एण्ड आर) कॉलोनियाँ और मुंबई महानगर के विभिन्न स्थानों में रहते/फंसे प्रवासी मजदूर भी शामिल हैं ।
- हम #SpreadLoveNotCorona के साथ भी जुड़े हैं जिसमें ज़मीनी स्तर पर काम करने वालों — जैसे मुंबई पुलिस (अब तक 22,000) और 16 सरकारी अस्पतालों के कर्मचारियों — को पका हुआ ख़ाना देने का काम हो रहा है ।
- राहत कार्य के साथ हम सरकार से अपनी मांगों को भी आगे बढ़ा रहे हैं, मुनिसिपल, राज्य और केन्द्रीय स्तरों पर । हम असंगठित मज़दूरों और हाशिये पर रहने वाले समुदायों के उद्धार के अपनी इन कोशिशों को और पुख्ता करने की कोशिश कर रहे हैं ।
- ऐसे आपातकालीन समय में हमें पूरे मुंबई महानगर से प्रवासी मज़दूरों की मदद के लिए मांगें आ रहीं हैं। इनमें से कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इस लॉकडाउन के समय अपने घर जाने की कोशिश कर रहे हैं । हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं कि उन्हे सरकारी हेल्पलाइन के साथ किसी ऐसी संस्था या समूह से भी जोड़ सकें जो उनकी मदद कर सके। ऐसी कोई जानकारी होने पर कृपया नीचे कमेन्ट करें या हमें हमारे सोशल मीडिया पतों पर संपर्क करें: Twitter, Facebook और Instagram।
- युवा सतत बेघरों के लिए Right to Shelter, यानि आश्रय का हक, की मांग करता है और पिछले कुछ दिनों में हमनें अपनी मांगें मुनिसीपल कमिशनर के सामने भी रखी हैं । बहुत सारे बेघरों को अब बी.एम.सी. द्वारा संचालित स्कूलों में और बृहन्मुंबई महानगरपालिका के अन्य अस्थायी आश्रयों में भेजा जा रहा है । हमनें एक ऐसी कोशिश में मदद भी की जिसमें F/North वॉर्ड में रहने वाले 15 बेघरों को टॉय लाइब्रेरी, एन्टॉप हिल में ले जाया गया । हम ये भी मांग कर रहे हैं कि बेघरों के लिए लॉकडाउन खतम होने के बाद भी आश्रय का इंतज़ाम जारी रहे ।
- अन्य शहरों में हमारी टीमें भी वहाँ के स्थानीय साथियों के साथ मिलकर राहत कार्य में लगी हुई हैं ।
नाशिक में खाना बांटने का अभियान हुआ और अनुभव शिक्षा केंद्र के युवा संगठन के कार्यकर्ताओं ने इनमें से कुछ कोशिशों का नेतृत्व भी किया जो कि बेघरों, रोज़ी वाले मज़दूरों, निराश्रित महिलाओं और बच्चों की मदद के लिए करी गईं । नागपूर में हम नागपूर मुनिसीपल कार्पोरेशन के विभिन्न अनौपचारिक बस्तियों में राशन बांटने की कोशिशों में निरंतर साथ देते रहेंगे । भोपाल शहर में हमारे कर्मचारी हमारी साथी संस्था मुस्कान के साथ मिल कर राहत कार्य में निरंतर जुटे हैं । गुवाहाटी के भूतनाथ इलाके में पाताडिक नारी समाज (एक महिलाओं का समूह) और असम पुलिस के एस.पी.यू. कर्मचारी के साथ मिल कर खाने के वितरण का अभियान चलाया गया । अब तक हम 60 परिवारों तक ज़रूरत के खाने का सामान पहुँचा चुके हैं । हम इस कोशिश में भी लगे हुए हैं कि इस राहत कार्य को अन्य इलाकों में भी पहुंचाया जा सके और सरकारी राहत कार्य सब जगह तक पहुंचे ।
आने वाला सप्ताह
ऐसे आपातकालीन स्थिति में लंबे समय तक राहत कार्य के जारी रहने की ज़रूरत होने के कारण हम इस तरीके से अपने राहत कार्य को आगे ले जाने का प्रस्ताव रखते हैं –
- हम अपनी राशि जमा करने की कोशिश को मिलाप http://m-lp.co/yuva1 और केटो https://bit.ly/SpreadLoveNotCorona पर जारी रख रहे हैं और इस सहयोग का उपयोग आगे दिए गए कामों में करते रहेंगे (अगले 2 अंक पढ़िए) ।
- क्यूँकि ज़रूरतमंद परिवारों को दिया गया हफ्ते भर का राशन जल्द ही खत्म हो रहा है, अब हम उन तक महीने भर का राशन पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं जिसमें चावल, गेहूं, दाल, खाने का तेल, नमक, साबुन आदि शामिल हैं । हर किट की कीमत 2,000 रुपये है|
- इस समय पुलिस और सरकारी अस्पतालों के कर्मचारियों की ज़रूरत को देखते हुए हम उन तक दाल, चावल, रोटी और सब्ज़ी युक्त खाने के डब्बे पहुँचाने का काम जारी रखेंगे ।
- हाशिये पर रहने वाले समुदायों के उद्धार और सुरक्षा के लिए हम सरकार के आगे अपनी मांगें रखने का काम जारी रख रहे हैं, मुनिसिपल, राज्य और केन्द्रीय स्तरों पर ।
- हम सरकारी प्रतिनिधियों और अन्य संस्थाओं के साथ लगातार संपर्क में हैं ताकि जहां राहत कार्य पहुँच चुका है वहाँ दोबारा सामान और समय की बेवजह लागत ना हो । अभी के लिए जैसा ऊपर बताया गया है वैसा राहत कार्य हम जारी रख रहे हैं क्यूँकि ज़्यादातर सरकारी योजनाएं थोड़ी-थोड़ी कर के लागू करी जा रही हैं और पूरी तरह अप्रैल महीने के बीच तक जा कर शुरू होंगी ।
- शहर में बहुत सारे प्रवासी मजदूर सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हैं क्यूँकि उनके पास हर वक़्त अपेक्षित दस्तावेज़ (जैसे राशन कार्ड या मजदूरों के रेजिस्ट्रैशन के कागज़) नहीं होते हैं । उनके लिए बुनियादी जरूरतों के सामान तक न पहुँच पाने की मुश्किल जारी रहेगी और हम ऐसे समूहों तक राहत का सामान पहुँचाने की कोशिश को जारी रखेंगे ।
आभार पत्र
हम जो काम कर रहे हैं, राहत का काम और मांगों को आगे बढ़ाने का काम, दोनों ही, बहुत सारे लोगों, समूहों और संस्थाओं की मदद से सबल हुआ है । हम उनमें से हर एक को शुक्रिया कहना चाहते हैं । हम सरकारी अधिकारियों से भी निरंतर संपर्क में हैं और उनके सहयोग के लिए आभार व्यक्त करते हैं और उम्मीद करते हैं कि साथ मिलकर और काम हो सके । हम आने वाले सप्ताहों में अपने काम को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित हैं ।
शीवा दुबे द्वारा अंग्रेजी से अनुवादित