भूख से लड़ने व सभी के बुनियादी अधिकारों की रक्षा के हमारे प्रयासों व पहल के बारे में आपको क्या जानना चाहिए
हम लॉकडाउन से पहले क्या जानते थे
जब हमने सात सप्ताह पहले #TogetherWeCan अभियान शुरू किया था, तो हमारा लक्ष्य स्पष्ट था — हम उन समुदायों पर COVID -19 के प्रभाव को समझना और संबोधित करना चाहते थे, जिनके साथ हम काम करते हैं। लॉकडाउन की घोषणा होने से पहले, हमने शहरी ग़रीबों के जरूरतों के आकलन से हमारे निष्कर्षों पर जोर दिया गया, जिनके लिए ‘घर में रहना’ का सीधा अर्थ ‘सुरक्षित रहना’ नहीं है।
हमने जिन लोगों से बात की उनमें से एक बड़े तबके ने जिसमें 2000 से भी अधिक लोग शामिल थे उन्होंने हमें बताया कि वो अपनी जीविका अनौपचारिक कार्यों से चलाते हैं। उनमें से अधिकांश के लिए, लॉकडाउन का सीधा अर्थ एक सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र में बिना पैसे, बिना भोजन, और हाथ धोने के लिए पानी के अभाव के रहना और सामाजिक दूरी के लिए ना ही पर्याप्त जगह और ना ही सुरक्षित आवास।
मुंबई महानगरीय क्षेत्र (एमएमआर) की 39 बस्तियों के सर्वेक्षण में शामिल लोगों के बीच सबसे प्रमुख चिंता उनके काम की होने वाली क्षति और इसका उनके भूख पर होने वाले प्रभाव थी — जब हम अब और नहीं कमा सकते तो हम घर पे पैसे कैसे भेजेंगे? हम कैसे सुनिश्चित करेंगे कि हमारे बच्चों को ज़रूरी पोषण मिले? हम अपने परिवारों को कैसे खिलाएंगे?
प्रत्यक्ष प्रभाव और राहत के प्रयास
हमारे राहत प्रयास की पहल लोगों के जीवन और उनके रोजमर्रा की वास्तविकताओं में भुखमरी के इस डर का मुकाबला कर रही है। करुणा व लोगों के अधिकारों की शक्ति को समझते हुए समर्थन व सहयोग के मजबूत नेटवर्क बनाते हुए, हम लगातार जरूरतमंद लोगों को आपातकालीन खाद्य आपूर्ति के साधन वितरित कर रहे हैं।
अपने प्रयासों के पहले सप्ताह के भीतर, हम मुंबई और नवी मुंबई की बस्तियों में रहने वाले 4,700+ लोगों को चावल, गेहूं, दाल, तेल इत्यादि युक्त खाद्य किट प्रदान करने में सफल रहे थे। तब से लेकर अब तक, हमारा प्रभाव कई गुना बढ़ गया है। सात हफ्तों के समर्पित फ़ंडरेज़िंग, दैनिक वितरण के प्रयासों और मजबूत साझेदारी ने हमारे लिए MMR के 6 शहरों में 82,740 से अधिक व्यक्तियों को 16,548 राशन किट प्रदान करना संभव बना दिया है। हमने मुंबई पुलिस और सरकारी अस्पताल के कर्मचारियों के साथ-साथ नवी मुंबई, मुंबई, और भिवंडी (ठाणे) में प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों के लिए 835,000 पके हुए भोजन उपलब्ध कराए हैं।
24 मार्च मंगलवार की रात 8 बजे लॉकडाउन की अचानक घोषणा ने, समाज के हाशिये पर रहने वाले लाखों असहाय लोगों के लिए चिंता व संशय का एक मुश्किल सवाल खड़ा कर दिया, और सिर्फ़ चार घंटे के भीतर उन्हें अपने लिए सुरक्षित रहने के लिए अपनी सर्वश्रेष्ठ कार्य योजना निर्धारित करना था। इसके बाद आने वाले सप्ताहों में, हमें प्रवासी मजदूरों के समूहों, दैनिक वेतन भोगी मज़दूरों, बेघर और शहरी गरीब समुदायों के कई अन्य लोग जो इस संकट की घड़ी में हमारे सहयोग की अपेक्षा में थे, उन लोगों से क़रीब 907 फोन कॉल, कई वॉयस नोट्स और लिखित संदेश प्राप्त हुए (जिनमें कागज के टुकड़ों पर लिखी गई जानकारी शामिल है), क्योंकि ये इस चुनौतीपूर्ण स्थिति से निपटने के लिए हमारे सहयोग की लालसा में थे। उनके स्थान के इस तरह बिखरे हुए के कारण उन सभी तक पहुंचना हमारे लिए मुश्किल हो गया है। हालाँकि, हम अपने साथ संपर्क स्थापित करने वाले हर व्यक्ति को सहायता प्रदान करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। जब भी आवश्यकता होती है, तो हम अपने नेटवर्क के भीतर प्रासंगिक जानकारी भी साझा करते हैं ताकि हमारे इन प्रयासों में उनकी सहायता प्राप्त हो सके।
जो प्रक्रिया मात्र हमने जिन समुदायों के साथ काम करते हैं उन पर COVID-19 के संभावित प्रभाव को समझने के लिए एक प्रारंभिक प्रस्ताव के रूप में शुरू हुआ वो धीरे-धीरे संकट को कई रूप से उत्तर दे सकने वाले एक गतिशील आंदोलन में बदल गया है। पुलिस और सरकारी अस्पताल के कर्मचारियों को पका हुआ भोजन प्रदान करने से लेकर बेघर लोगों, प्रवासी कामगारों, ट्रांसजेंडर समुदायों, सर्कस कलाकारों, कपड़ा कारखाने के मज़दूर, स्वच्छता कर्मचारियों, अनाथालयों में बच्चों और पुनर्वास कॉलोनियों में रहने वाले कई अन्य लोगों को सूखे राशन के किट प्रदान करना हम अपनी प्रत्यक्ष राहत पहलों के माध्यम से विभिन्न समूहों को खाद्य आपूर्ति प्रदान कर रहे हैं। हम स्थानीय राहत प्रयासों के सहयोग से नागपुर, नाशिक और गुवाहाटी में जरूरतमंद समुदायों तक पहुंच बनाने में सफल रहे हैं।
हमारे प्रयासों से इकट्ठे किए गए ये आउटरीच नंबर एम एम आर भर में बड़े पैमाने पर गहराते संकट के बारे में बता रहे हैं। रातों रात, लाखों लोग जिनके श्रम के कारण में शहर में काम सुचारू रूप से हो पाते थे, उन्हें अगले भोजन या अगले सप्ताह के राशन के लिए एक अंतहीन खोज शुरू करने के लिए मजबूर कर दिया गया। सैकड़ों संगठनों, धार्मिक समूहों, कार्यकर्ताओं के समूहों के लगातार चल रहे राहत प्रयासों के बावजूद संकट जारी है। जिस तरह हमने शहर के 60 प्रतिशत से भी अधिक जनसंख्या को ऐसी स्थिति में धकेल दिया है वो हमारे देश की आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों में गहराती खाई को दर्शाता है।
हमारे राहत प्रयासों और उसके बढ़ते प्रभाव को समझने व इसके बारे में अधिक जानने के लिए हमारे साप्ताहिक ब्लॉग #1, #2, #3, #4, #5, #6 तथा #7 को देखें।
सरकारी प्रयासों के लिए पैरवी
हमारा फ़ंडरेज़िंग प्रयास हमारे लिए उनसमुदायों तक पहुँचने का एक माध्यम रहा है जो इस समय सबसे अधिक आवश्यकता में हैं, एक मानवीय भूमिका जो इस समय महत्वपूर्ण है। हालांकि, हमें एहसास है कि लॉकडाउन के प्रभावों का कोई भी स्थायी समाधान केवल सरकार की ओर से हो सकता है। जब हमने अपना अभियान शुरू किया, तो राजनैतिक प्रतिनिधियों का ढाँचागत असमानताओं से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले लोगों के प्रति प्रतिबद्ध रखना था। हमारे स्थानीय, राज्य और केंद्रीय स्तरों पर सरकारी कार्रवाई के लिए हमारे पैरवी के प्रयासों का मुख्य उद्देश्य लोगों की मूलभूत गरिमा, अधिकारों और सभी के लिए अधिकारों को हासिल करने के लिए सशक्त करना था। यह किसी भी तरह की पैरवी के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय रहा है और हमने मौजूदा नेटवर्क के साथ काम किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हाशिये पर रह रहे लोगों की आवाज़ भी मुख्यधारा की पैरवी में स्थान बना सके।
केंद्र और राज्य सरकारों ने लॉकडाउन की घोषणा के कुछ दिनों बाद अपने राहत पैकेज और खाद्य सुरक्षा को लेकर रणनीतियों की घोषणा की। इन उपायों का शहरों में फंसे उन लाखों प्रवासी मजदूरों के संघर्षों से कोई लेना-देना नहीं है जिनके पास अपने मूल स्थानों पर जारी किए गए राशन कार्ड है। शहरी गरीबों का उनके आधार कार्ड को राशन कार्ड से जोड़ने के दौरान हुई तकनीकी ख़ामियों के अनुभव की भी अनदेखी की गई है। वर्तमान प्रावधानों में से किसी ने भी उन लोगों को भोजन उपलब्ध नहीं कराया है जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं। रोल-आउट योजनाओं और घोषित प्रावधानों के लगातार देरी से चल रही कार्यान्वयन के बारे में खराब संचार ने कमजोर समूहों की अनिश्चितताओं को गहरा कर दिया है। COVID-19 संकट के दौरान गहराते भूख व गरीबे के संकट और उस पर आवश्यक सरकारी कार्रवाई के लिए हमारी सिफारिशों के बारे में और यहाँ पढ़ें।
हमने महाराष्ट्र सरकार और भारत सरकार की COVID-19 आर्थिक एकनॉमिक टास्क फ़ोर्स को मांगों की एक सूची प्रस्तुत की। हमने कमजोर समूहों के स्वास्थ्य और स्वच्छता की रक्षा के लिए वार्ड-स्तर की योजना बनाने के साथ साथ, दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों का समर्थन करने के लिए एक राहत कोष, अनौपचारिक बस्तियों में जबरन बेदखलियों के खतरों का अंत, बेघर आबादी के लिए आश्रयों का प्रावधान और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सभी के लिए उपलब्ध करने की पैरवी की है।
आज, जैसा कि भारत में सबसे अधिक COVID-19 मामलों के साथ महाराष्ट्र महामारी के केंद्र में है, ये मांग विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग डिग्री में पूरी की गई है। मुंबई हाईकोर्ट के फैसले से जबरन बेदखली रोकने का फैसला, राशन स्टोरों को तीन महीने के अनाज, प्याज और आलू की आपूर्ति करने का केंद्रीय निर्देश और ठेका मजदूरों की नौकरियों की सुरक्षा के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के नियोक्ताओं के लिए राज्य का अनुरोध कुछ सकारात्मक घटनाक्रमों को प्रमाणित करता है। वृहनमुंबई नगर निगम ने भी बेघर आबादी के लिए बीएमसी (पब्लिक) स्कूलों को शेल्टर में बदलने के कदम का समर्थन किया है। हमने माटुंगा से 15 बेघर लोगों को एक आश्रय में स्थानांतरित करने के ऐसे ही एक प्रयास का समर्थन किया, जिसे एंटॉप पहाड़ी में स्थापित किया गया है।
महामारी और आगामी लॉकडाउन का सबसे ज़्यादा प्रभाव उन लोगों पर रहा है जो पहले से ही हाशिये पर थे। अब वे जिन संघर्षों का सामना कर रहे हैं वो गवाह है कि किस तरह हमारे शहरों में अनौपचारिक क्षेत्र के लोगों की ढाँचागत हाशिए पर बने रहने की बात करते हैं। ये श्रमिक, ख़ासकर प्रवासी, शहर में बिलकुल अदृश्य कर दिए गये हैं। पहचान के लिए प्रमाणों की कमी और राज्य सीमाओं के कारण सामाजिक सुरक्षा के लाभों का ना मिल पाने के साथ यदि जोड़ दिया जाए तो लॉकडाउन और स्वास्थ्य आपातकाल जैसी स्थिति आने के समय उनकी स्थिति और भी ख़राब हो जाती है। पिछले सात हफ्तों में हमारे द्वारा किया गया राहत कार्य आज हमारे शहरों में सामने आए इस विरोधाभास काफ़ी प्रखरता से सामने लाता है कि- जो शहर के कामकाज को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें ही ये शहर पहचानते नहीं हैं और ना ही उनकी रक्षा करते हैं। इस तरह बढ़ते हुए प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण लोगों के अधिकारों और बुनियादी सेवाओं तक पहुंच को और सुदृढ़ करने के लिए हमें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।
लोगों की शक्ति
हमारा काम कार्यकर्ताओं की हमारी ऑन-ग्राउंड टीम द्वारा संचालित होती है जिनकी शहरी गरीबों की वास्तविकताओं के साथ गहरे संबंध और समझ ने हमारे राहत प्रयास को काफ़ी उत्तरदायी और प्रभावी बनाने में मदद की है। ऐसी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में यह बेहद कठिन काम है, और हम एक-दूसरे से प्रेरणा लेते हुए इस संकट की स्थिति में प्रत्येक नए दिन अलग तरह से उसी स्फूर्ति से इसका सामना करते हैं। हम सभी की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं और राहत के पांचवें सप्ताह में, हमने जिसने भी समुदायों के साथ संपर्क किया ही, सभी की COVID-19 के परीक्षण की व्यवस्था की।
जैसे-जैसे मानवीय संकट सामने आता है, हर दिन नई चुनौतियां सामने आती हैं। इन सभी के माध्यम से, हमने विभिन्न समूहों द्वारा सामना किए जाने वाले मुद्दों को हल करने के लिए संगठित रूप से कई साझेदारियाँ बनाई हैं। जबकि हमारे कई साथी संगठनों ने हमें धन का समर्थन किया है, कुछ अन्य ने हमारे प्रत्यक्ष राहत प्रयासों के लिए आवश्यक खाद्य आपूर्ति प्रदान की है। कुछ साथियों ने सहायता देने के लिए कुछ नए और रोचक दृष्टिकोण भी पेश किए। उदाहरण के लिए, हमने हाल ही में फिल्म-निर्माता अनुपमा मंडलोई और तनुजा चंद्रा के सहयोग के माध्यम से अपने फंडरेज़र के लिए समर्थन प्राप्त किया, जिनकी फिल्म ‘आंटी सुधा आंटी राधा’ को मुंबई फिल्म फेस्टिवल (MAMI) वारश भर चलने वाले होम थिएटर प्रोग्राम के लिए चुना गया था। इस फिल्म-स्क्रीनिंग के लिए खरीदे गए टिकटों से प्राप्त आय को हमारे अभियान में दान कर दिया गया है। हाल ही में, हमने आईआईटी बॉम्बे, अपनालय और सेव द चिल्ड्रन, भारत के साथ भागीदारी की, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्यक्ष राहत पहलों में ओवरलैप्स से बचने के लिए अंडरसाइड समुदायों के भीतर हमारे चल रहे आउटरीच को जीआईएस मैपिंग के माध्यम से कैप्चर किया जाए।
पिछले सप्ताह हमने अन्तर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस के मौक़े पर अपना पहला वेबिनार “असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों पर लॉकडाउन के प्रभाव” पर आयोजित किया था।
हमारे पैनल में असंगठित मज़दूर और सामाजिक क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल थे, जिन्होंने भारत के अनौपचारिक व असंगठित कार्यबल की जरूरतों को सामूहिक रूप से प्राथमिकता देने के लिए सरकार और नागरिक समाज के लिए संभावित रणनीतियों पर चर्चा की। इस सप्ताह की शुरुआत में, हमने भारत के उत्तर पूर्व में विभिन्न राज्यों में लॉकडाउन के प्रभाव पर एक और वेबिनार आयोजित किया।
हमने “हंगरटाल्क्स” नाम के एक गोलमेज वेबिनार श्रृंखला पर भी भागीदारी की है जिसमें राहुल द्रविड़, यास्मीन कराचीवाला, हरीश साल्वे, उर्जित पटेल, जस्टिस श्रीकृष्ण, कैप्टन रघु रमन और विभिन्न क्षेत्रों के कई अन्य प्रमुख व्यक्ति अपने ज्ञान और अनुभवों को साझा करेंगे और हमारे COVID-19 राहत प्रयासों के लिए धन जुटाने में सहायता भी करेंगे। इस पहल में भाग लेने के बारे में अधिक जानकारी के लिए, यहां क्लिक करें।
युवा में, हम जटिल चुनौतियों का सामना करते हुए कई हितधारकों के साथ सहयोग करने के मूल्य को समझते हैं। हम अनौपचारिक भागीदारी के माध्यम से अन्य नागरिक व सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर काम करना जारी करते है। हम कमजोर व ज़रूरतमंद समूहों के कल्याण के लिए विभिन्न प्रशासनिक प्राधिकरणों के साथ संपर्क में हैं, जिनमें वृहनमुंबई नगर निगम, नवी मुंबई नगर निगम, पनवेल नगर निगम, रायगढ़ तहसील, राशन और नागरिक आपूर्ति नियंत्रक (ठाणे), नागरिक सुरक्षा विभाग और महाराष्ट्र राज्य सरकार शामिल हैं। यह देखकर खुशी हुई है कि कई शहरों के लोग एक साथ मिलकर लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने में लगे हुए हैं।
हमारी डिजिटल उपस्थिति को और मज़बूत करना
हम सभी के लिए यह एक नई वास्तविकता है कि हम लोग अपने घरों में ही हैं, ऐसे में हमारे सामाजिक मीडिया चैनलों और मीडिया आउटलेट्स ने हमारे अभियान के लिए जागरूकता और धन जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमारा संदेश यह सुनिश्चित करने पर केंद्रित है कि सामाजिक दूरी के समय में भी सामाजिक ज़िम्मेदारियों को भूलना नहीं चाहिए। हम अपने फ़ॉलोअर्ज़ और सहयोगकर्ताओं को राहत कार्यकर्ताओं, कमजोर व जरूरतमंद समूहों और व्यापक भूख संकट के अनुभवों के बारे में लगातार अपडेट देते हैं। हम अपने प्रत्यक्ष राहत प्रयासों की सीख, राय और प्रभाव को उजागर करने के लिए इंस्टाग्राम, ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब और हमारे ब्लॉग के माध्यम से अपने ऑनलाइन समुदाय तक बड़े पैमाने पर पहुंच रहे हैं।
हमें ‘मिरर नाउ’ के ‘इन्स्पाइअर इंडिया’ सेगमेंट और एनडीटीवी चैनल पर संकट में फंसे हज़ारों लोगों की सहायता करने के लिए एक बेहतर नागरिक संगठन के रूप में प्रदर्शित किया।
हमारे आपातकालीन राहत प्रयास को कई मीडिया संस्थाओं जैसे हिंदुस्तान टाइम्ज़, फ़र्स्टपोस्ट, लाइवमिंट, द हिंदू तथा लोकसत्ता आदि ने मुख्य रूप से कवर किया है।
हमारे फ़ंडरेजिंग अभियान को एक वीडियो चैलेंज के माध्यम से भी ख़ूब तेज़ी से बढ़ाया गया जिसके माध्यम से हमने अपने फ़ॉलोअर्ज़ और सोशल मीडिया में सक्रिय लोगों को भूख तथा भोजन तक पहुँच में आ रही ख़ामियों को लेकर जागरूकता फैलाने का आग्रह किया। पिछले महीने में कमज़ोर व जरूरतमंद परिवारों की मदद करने के लिए किए जाने वाले कार्य के महत्व को लेकर असंख्य संदेश सोशल मीडिया पर आए हैं।
हम समानुभूतिपूर्ण लोगों के एक आंदोलन का निर्माण कर रहे हैं जो इस वैश्विक महामारी के असमान प्रभाव को कम करने के लिए प्रयास करते रहेंगे। जिन लोगों ने हमारे इस संदेश का प्रसार किया है और हमारे फंडरेज़र में योगदान दिया है, वे डिजिटल एडवोकेट और समर्थकों के हमारे बढ़ते समुदाय का एक अभिन्न अंग हैं। यह दान व देने की भावना हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत रही है क्योंकि हम अपने इन प्रयासों को जारी रखे हुए हैं।
आगे का रास्ता
COVID-19 ने वैश्विक स्वास्थ्य संकट की तुलना में बहुत अधिक का नेतृत्व किया है — इसने कई मौजूदा सामाजिक और आर्थिक असमानताओं का अनावरण और गहरा किया है। हर दिन, हम लचीलापन और निस्वार्थता की कहानियों से प्रेरित होते हैं जो सबसे अधिक हाशिए के समुदायों से निकलती हैं। हमें कई लोगों की क्रूर वास्तविकताओं से भी अवगत कराया जाता है जो भूख और भुखमरी के एक भयानक डर के साथ जीते हैं। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए हमारे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष राहत प्रयासों पर निर्माण करने की आवश्यकता है कि आने वाले महीनों में अदृश्यता वाले समुदायों के अधिकारों से समझौता नहीं किया जाए।
जरूरतमंद लोगों को भोजन उपलब्ध कराना जारी रखने के उद्देश्य से, हम मिलाप और केटो पर अपने फ़ंडरेज़र के माध्यम से दान व आर्थिक सहायता स्वीकार कर रहे हैं। हम मानते हैं कि लोगों की ज़रूरतें और उससे उपजने वाली कमज़ोरियाँ अलग-अलग रूप में आती हैं। जैसे हमारा #TogetherWeCan अभियान आगे बढ़ रहा है, हमारे राहत के प्रयास आगे बढ़ते रहेंगे क्योंकि हम सीखने और राय विमर्श की एक सतत प्रक्रिया में शामिल हैं।
जैसे-जैसे हम तत्कालीन राहत से दीर्घकालिक पुनर्वास की ओर आगे बढ़ रहे हैं, हमें सुरक्षा तथा सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हर वार्ड स्तर पर- स्वास्थ्य, स्वच्छता, अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार, मोबाइल सेवाओं (स्वास्थ्य, अधिकार आदि) के लिए व्यापक हस्तक्षेप रणनीतियां बनाने की आवश्यकता है। हम भूख के संकट से परे भी संकट के प्रभावों का आकलन कर रहे हैं — इसमें घरेलू हिंसा, मानसिक-सामाजिक प्रभाव, पोषण और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं, गतिशीलता और आय शामिल हैं। जैसा कि शहर और ख़ासकर हाशिये पर मौजूद लोग इस संकट से उबर रहे हैं, हमारा काम रणनीतिक रूप से इन कई वास्तविकता सामने लाता रहेगा।
हम उन सभी के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं जिन्होंने हमारे प्रभाव को आगे बढ़ाने में भूमिका निभाई है। हमारे सभी सहयोगकर्ताओं के योगदान और हमारे कर्मचारियों, कार्यकर्ताओं, राहत कार्यकर्ताओं, पैरवी के नेट्वर्क़्स, साथी संगठनों, प्रशासनिक अधिकारियों और डिजिटल समुदाय के सदस्यों के सामूहिक प्रयासों के कारण हमारे आपातकालीन राहत प्रयास इतने सारे लोगों तक पहुँच पाए हैं! सभी को आभार व धन्यवाद!
अंकित झा द्वारा अंग्रेजी से अनुवादित