पिछले कई दिनों से भारत में COVID-19 के मरीज़ों की संख्या में तेज़ वृद्धि हो रही है (अभी संख्या 550 पर है)। प्रशासन द्वार ज़मीनी स्तर पर इस आपत्ति के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिए, महामारी से लड़ने की लोगों की क्षमता को बढ़ाने के लिए, और पर्याप्त कल्याणकारी सुविधाओं का प्रावधान करने के लिए जो प्रयास किये जा रहे है उनमें एक बहुत बड़ी कमी नजर आ रही है| इस कमी को ध्यान में रखते हुए, हम यूथ फॉर यूनिटी एंड वोलंटरी एक्शन (युवा), परिस्थिति को बेहतर तरीके से समझने, आपत्ति के प्रभाव को समझने और जरुरी सहायता करने के लिए कम आय और वंचित समुदायों तक पहुचने का प्रयास कर रहे हैं और ऐसा करते हुए हम अपनी सुरक्षा का भी ध्यान रख रहे हैं|
यह ब्लॉग हमारे कर्मचारियों के प्रत्यक्ष अनुभवों को दर्ज करता है जो उन्हें मुंबई महानगर क्षेत्र के इन 4 शहरों के 20 बस्तियों में स्थिति का आकलन करते समय आये है — वसई विरार, मुंबई, नवी मुंबई और पनवेल। इसके माध्यम से हमें यह समझने में मदत हो पायी कि लोग COVID-19 के बारे में कितने जागरुक हैं और इस वायरस को रोकने के लिए किए गए उपायों से उनकी वर्तमान आर्थिक स्थिति पर क्या असर हो रहा है| हमने विशेष रूप से वंचित समुदायों पर लक्ष्य केंद्रित किया है — वरिष्ठ नागरिक, विकलांगता होनेवाली व्यक्ति, महिला-प्रधान घर, बच्चे और युवा। इससे हमें लोगों के डर-आशंका, ज़रूरतें और इस आपत्ति से जूझने के लिए उनकी क्या तैयारियाँ हैं यह समझने में मदद मिली है (विशेष कर लॉकडाउन लागू होने की स्थिति में)।
कुल मिलाकर, यह सामने आया है कि सर्वेक्षण किये गए क्षेत्रों में महामारी पर जागरूकता की कमी है, अफवाहें और गलत जानकारी अधिक हैं। हमने जिन ८०० परिवारों का सर्वेक्षण किया है उसमें से 95% परिवार दिहाड़ी मज़दूर हैं। अधिकतर लोग अभी से ही उनके रोज़गार द्वारा मिलने वाली आय के खोने का अंदाजा लगा रहे हैं और कुछ लोग पहले ही अपना रोज़गार खो चुके हैं|
नीचे प्रस्तुत की गयी जानकारी आकलन से मिली जानकारी का निष्कर्ष है। यह आकलन एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है और आने वाले हफ्तों में इस जानकारी को अपडेट किया जाएगा:
हाशिये से हाशिये पर
• ऐसे समूह जो पहले से ही वंचित थे, जैसे बेघर और वंचित समुदायों के व्यक्ति (पारधी समाज, ट्रांसजेंडर व्यक्ति और कई अन्य) एक गतिरोध का सामना कर रहे हैं। जीवित रहने के लिए भीख मांगने पर निरभित रहने वाले लोगों ने कहा कि उन्हें और भी अधिक शर्मिंदा किया जा रहा है, जीने के लिए ज़रुरी संसाधनों का अभाव भी तेजी से बढ़ रहा है।
• ऐसे परिवार जो लंबे समय से बेघर हैं और जिन्हें हाल ही में जबरन बेदखल किया गया है, वो रहने की जगह बिना सुरक्षा और दैनिक आय के (क्योंकि कई रोज़गार के साधन जैसे कि माला बनाना और खाने की चीजें बेचना, इनका चल पाना अभी के समय में असंभव है) भुखमरी के कगार पर आ रहे हैं। कई घरों में तो बहुत कम या किस भी प्रकार का अन्न नहीं बचा है।
अनाज तक पहुंचने में आने वाली मुश्किलें
- कई परिवार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से राशन का लाभ उठाना चाहते हैं, पर आधार कार्ड और राशन कार्ड ठीक से या बिलकुल ही लिंक ना होने के कारण, वे पर्याप्त मात्रा में बुनियादी अनाज और दाल प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। मुंबई में पश्चिमी उपनगर में, एक राशन दुकान के मालिक ने उल्लेख किया कि इस महीने के लिए राशन कोटा पहले ही वितरित किया गया था और किसी भी प्रकार का अधिक अनाज नहीं भेजा जाएगा (भले ही वर्तमान में अनाज की कमी महसूस हो रही है)।
- आई.सी.डी.एस. केंद्र या आंगनवाड़ी जहां 0 से 6 साल तक के बच्चों तक पोषण पहुँचाने का काम होता है, अब ऐसे कई केंद्रों में रोज़ दिए जाने वाले भोजन के वितरण का काम बंद हो चुका है।
- क्यूँकि पिछले कुछ दिनों से स्कूल भी बंद हैं, बच्चों को स्कूलों में मिलने वाला मिड डे मील (दोपहर का भोजन) अब मिलना बंद हो चुका है। बहुत सारे बच्चे दोपहर के खाने के लिए इस योजना पर निर्भर करते हैं।
मज़दूर और मज़दूरी
• इस महीने के शुरुआत से ही बेरोज़गारी का सामना करने वाले अधिकांश बेघर व्यक्तियों ने कहा कि विशेष रूप से इस हफ्ते (13 मार्च 2020) से उनके लिए कमाई/रोजगार का साधन खोजना बहुत मुश्किल हो गया है।
• ज्यादातर महिला घरेलू कामगारों ने कहा कि उन्हें काम पर न आने के लिए कहा गया है। उनमें से कुछ को काम पर न बुलाने की वजह भी नहीं बताई गयी है और ये कहा गया है कि जितने दिन वो काम पर नहीं आयेंगे उन्हें उतने दिनों का वेतन नहीं दिया जाएगा |
• निर्माण का काम करने वाले दिहाड़ी मज़दूरों को निर्माण स्थलों पर काम नहीं मिल रहा है — वे घर पर रहने के लिए मजबूर हैं और आय का कोई दूसरा स्रोत भी उनके पास नहीं है।
• वाशी नाका और लल्लूभाई कंपाउंड जैसी पुनर्वासित (आर एंड आर) वसाहतों में ठेला लगाकर सामान बेचने वाले विक्रेता और फेरीवाले (स्ट्रीट वेंडर) बताते हैं कि उनके सामान की बिक्री में बड़ी तेजी से गिरावट आ रही है। एक विक्रेता जिनसे हमने बात की वे बताते हैं कि “मैंने जो पैसे बचाए हैं उससे में अगले एक हफ्ते तक घर खर्च चला सकता हूँ, लेकिन उसके बाद क्या?”
• खाद्य पदार्थ बेचने वाले विक्रेता उन समूहों में से हैं जो सबसे ज्यादा पीड़ित हैं क्योंकि लोग सड़क से खाने के पदार्थ खरीदना टाल रहे है। थोक बाजारों (होलसेल मार्किट) के बंद होने को लेकर जो बातें हो रहीं हैं उनसे विक्रेताओं की बेचैनी और बढ़ रही है।
• पूजा/प्रार्थना स्थलों के बंद होने की वजह से उनसे जुड़े बाकी काम भी बंद होते जा रहे हैं|
• वाघरी समुदाय की महिलाएं जिन्हें आमतौर पर चिंधीवाली कहा जाता है, जो रोज़ाना बाजार जातीं हैं, पर बाजार में कोई न होने की वजह से उन्हें भी खाली हाथ वापस आना पड़ रहा है|
वरिष्ट नागरिकों पर हो रहा है दुगना असर
• दिहाड़ी मज़दूरी करते रोज़गार में जुटे बुजुर्ग नागरिक एक ऐसा समूह हैं जो सबसे अधिक पीड़ित है। आय का कोई स्रोत नहीं होने के कारण वे अधिक असुरक्षित होते जा रहे हैं। यहां तक कि उनकी उम्र के कारण उन्हें बीमारी का खतरा भी अधिक है और COVID -19 के मामले में वहीं सबसे ज्यादा जोखिम में हैं। पारधी समुदाय के एक पुराने दंपति ने बताया कि कैसे उन्होंने भीख मांगने का सहारा लिया है क्योंकि पिछले कुछ दिनों से कोई भी उन खाद्य पदार्थों को नहीं खरीद रहा था जिसे वे बेच रहे थे|
कई गुना डर: निष्कासन और एन.पी.आर.
• अंबुजवाड़ी (मुंबई के पश्चिमी उपनगर में 15,000 से अधिक लोगों की एक झुग्गी बस्ती) के भीतर दो जगहों पर अधिकारियों द्वारा जबरन बेदखली के नोटिस पोस्ट किए गए थे। एक तो काम खोने का डर और ऊपर से घर खोने का डर, इस स्थिति में वहाँ रहने वाले लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है|
• लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए अगर परिस्थिति को देखें तो कुछ जगहों पर निवासियों ने उल्लेख किया कि वे पहले से ही इस डर में जी रहे हैं कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एन.पी.आर.) उनके लिए कौन सी नयी मुश्किलें लेकर आने वाला है। और उसपर महामारी का प्रसार और रोज़गार के खोने की समस्या उस डर में कुछ नयी स्तर जोड़ रहे हैं।
बड़े पैमाने पर गलत जानकारी और जागरूकता का अभाव
• विभिन्न बस्तियों में निवासियों के साथ की बातचीत में कई व्यक्तियों ने बताया कि उनके आस-पड़ोस में डर का माहौल बना हुआ है, कुछ लोगों ने कहा कि यह वायरस अभी बहुत दूर है और उन्हें प्रभावित नहीं करेगा और कुछ लोगों ने कहा कि उन्हें वायरस के बारे में कोई जानकारी नहीं है पर कुछ गड़बड़ चल रही है इसका अंदाजा उन्हें है।
• लोगों के पास गलत जानकारी भी अधिक मात्रा में है — कुछ लोगों ने पूछा कि ‘क्या वायरस झुग्गी बस्तियों से फ़ैल रहा है?’ और कई व्यक्तियों का मानना है कि मांसाहारी आहार का सेवन वायरस फैला रहा है। उदाहरण के लिए, कुछ जगहों पर एक किलोग्राम चिकन जो 120 रुपये प्रति किलो बेचा जाता है वो अब कुछ क्षेत्रों में 40 रुपये प्रति किलो से भी कम में बेचा जा रहा है।
इस आकलन के माध्यम से यह स्पष्ट है कि महामारी के दौरान वंचित समुदायों के लिए स्वास्थ्य प्रणाली तक पहुचने के मार्ग पूरी तरह से गायब हैं। लोग इस स्थिति को समझने के लिए अफवाओं का और सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में वायरस के प्रसार से संबंधित और भी गंभीर प्रश्न उठ रहे हैं। लोग खुद की सुरक्षा करना नहीं जानते हैं। उनकी बुनियादी ज़रूरतें भी पूरी नहीं हो रही हैं| ऐसे समय में हम यह बात रखते है कि सरकार को वायरस के नियंत्रण की सुनिश्चितता के साथ इन मुद्दों को भी प्राथमिकता देकर सुलझाने का प्रयास करना चाहिए।
हमारे ज़मीनी आकलन के आधार पर हमने महाराष्ट्र सरकार के लिए अपनी मांगों की एक सूची प्रस्तुत की (नीचे प्रस्तुत है — ट्विटर लिंक के लिए ऊपर दी गई लाइन में हाइपरलिंक किए गए भाग पर क्लिक करें)।
सभी मंत्रियों को 31 मार्च 2020 तक जनता के सदस्यों के साथ व्यक्तिगत बैठकें नहीं करने को कहा गया है। इसके अलावा, मुख्य मंत्री कार्यालय सभी विभागों की ओर से पत्र स्वीकार कर रहा है और उन्हें अपनी ओर से निर्देशित कर रहा है। व्यक्तिगत बैठकों के अभाव में हम सोशल मीडिया का उपयोग इन मांगों को प्रचारित करने और आगे तक ले जाने के लिए कर रहे हैं।
इस परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए हमने Together We Can नामक एक अभियान शुरू किया है जिसके माध्यम से हम मुंबई महानगर के जिन इलाकों में काम करते हैं वहाँ हाशिये पर रहनेवाले समूहों को और खासकर दैनिक मज़दूरी पर काम करनेवाले समुदाय को अनाज और अन्य जरुरत की चीजों की आपूर्ति का प्रयास करने वाले है| हमें समर्थन मिलना शुरू हो गया है और खाद्य आपूर्ति वितरण की प्रक्रिया जारी है।
अभियान से जुड़ी हमारी बाकी की कोशिशें और बस्तियों में बदलते हालातों के बारे में जानने के लिए ये पढ़ें: #2, #3, #4, #5, #6, #7, #8