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HabitatNarrative Change

सिटी वाक: शहर को समझने की एक पहल

By July 24, 2019December 24th, 2023No Comments

सिटी कारवां 2019 के अंतर्गत युवाओं का दक्षिण मुंबई में पैदल सफर

मुंबई शहर किसका है? इसपर किसका अधिकार है? यह हमेशा से ही ए़क विवादित मुद्दा रहा है. हर कोई अपने-अपने तरीके से इस शहर पर अपना अधिकार जताता है. 25 मई 2019 को मयुरेश भड़सावले के नेतृत्व में 19 युवाओं की ए़क टीम ने सिटी कारवां 4.0 के अंतर्गत दक्षिण मुंबई का दौरा किया. इस दौरान युवाओं ने मुंबई शहर का इतिहास, इसकी शुरुवात तथा शहर की बहुरंगी संस्कृती को समझने की कोशिश की. युवा द्वारा संचालित यह कोर्स युवाओं को समावेशी शहर की परिभाषा समझने में मददगार होगा. इस वाक का पहला चरण ‘मेकिंग ऑफ मॉडर्न मुंबई’ यानी आधुनिक मुंबई का उदय इस विषय को जानने के लिए किया गया. इसमें युवाओं ने मुंबई के वर्तमान इतिहास को करीब से देखा. साथ ही दूसरे चरण में ‘मिल्स टू मॉल’ के अंतर्गत मुंबई शहर की अर्थव्यवस्था में मिल्स के योगदान को जाना साथ ही इन मिलों के गौरवशाली इतिहास व वर्तमान में इन जगहों पर उग आये आधुनिक संस्कृती के प्रतीक मॉल कल्चर को समझा.

इन दोनों वाक के जरिए युवाओं ने इस सवाल का जवाब ढूँढने की कोशिश की कि यह शहर किसका है?

हार्निमन सर्कल गार्डन

सिटी वाक की शुरुवात हार्निमन सर्कल गार्डन से हुई. ब्रिटिशकाल में मुंबई का शहरीकरण भी यही से शुरू हुआ था. उस समय यह शहर दो हिस्सों में बंटा था. ए़क सफ़ेद बॉम्बे और दूसरा काला बॉम्बे. सफ़ेद बॉम्बे यह वह जगह थी जहां ब्रिटिश स्वंय रहते थे और काला बॉम्बे जहां भारतीय रहते थे. अंग्रेजों की नजर में काला बॉम्बे बीमारी और गंदगी का घर था. यही पर दोनों शहरों को बांटने वाली लकीर थी. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के बनने की कहानी भी यही से शुरू होती है. यहां स्थित ए़क बरगद के पेड़ के नीचे कुछ भारतीय गुजराती और अंग्रेज व्यापारी आपस में वस्तुओं की लेनदेन करते थे. धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ने लगी. साथ ही यहां व्यापार में इजाफा हुआ. इसी तरह ए़क संगठित बाज़ार के रूप में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का जन्म हुआ. ब्रिटिश चहारदीवारी में स्थित तीन गेट अपोलो गेट, बाज़ार गेट और चर्च गेट यहां से देखे जा सकते हैं.

हार्निमन सर्कल गार्डन के बाहर का नजारा

हमारे मार्गदर्शक ने मुंबई शहर के पुराने नक़्शे के जरिए युवाओं से शहर के कुछ हिस्सों को पहचानने के लिए कहा. अधिकतर युवा इस नक़्शे से अनजान थे फिर उन्होंने कुछ देर बाद चर्चगेट स्टेशन के अलावा उस समय मौजूद बलार्ड पीयर और कोलाबा स्टेशन को ढूंढ लिया.

जीरो पॉइंट

ब्रिटिश काल में शहर के किसी भी हिस्से की दूरी यही से मापी जाती थी. इसे जीरो पॉइंट नाम दिया गया था. इसलिए इसे शहर का केंद्र भी कहते थे.

सेंट थॉमस कैथड्रल

मुंबई में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया यह पहला चर्च था. इसका निर्माण 1718 में किया गया. अपने रिहायशी इलाकों को सुरक्षित रखने के लिए अंग्रेजों द्वारा बनाये गए गेट का ए़क राश्ता इस चर्च से होकर जाता था. इसे चर्चगेट कहते थे. आज भी पश्चिम का पूरा इलाका चर्चगेट के नाम से ही जाना जाता है.

ब्रेड एंड ब्रेकफास्ट स्ट्रीट

यह मुंबई की ए़क मात्र ऐसी सड़क है जिसकी वास्तुकला आज भी अंग्रेजों के समय की है. इस सड़क पर पहले अंग्रेजों के सामान्य उपभोग की वस्तुएं मिलती थी. आज यहां कई तरह व्यावसायिक दुकाने हैं.

वाटसन स्ट्रीट

दाहिने छोर पर स्थित खस्ताहाल पड़ी इमारत पहले वाटसन होटल के नाम से मशहूर थी. इसे जॉन वाटसन ने 1869 में बनाया था. यह लकड़ी और धातु के मिश्रण से बनी एशिया की पहली इमारत थी. साथ ही यह पहला रिहायशी होटल भी था. आज यह इमारत अपने वजूद को बंचाने के लिए संघर्ष कर रहा है. उस दौरान यह होटल सिर्फ सफ़ेद लोगों यानी अंग्रेजों के लिए था. दूसरा कोई इसमें नहीं जा सकता था. यह होटल अंग्रेजी शासन की विलासिता का प्रतीक था. 1871 में भारत के मशहूर उद्योगपती जमशेदजी टाटा को इस होटल में प्रवेश नहीं करने दिया गया था. इस घटना से दुखी होकर जमशेदजी ने भारतीयों के लिए कोलाबा में ताज महल होटल की नीव रखी. यह होटल 1906 में बनकर तैयार हो गया और जल्द ही पूरी दुनिया में मशहूर हो गया. उपनिवेशिक काल में इसकी बायीं ओर स्थित इमारत ब्रिटिश सेना और नेवी का स्टोर हुआ करता था. आज यह भारतीय सेना का सीएसडी कैंटीन है.

डेविड ससून लाईब्रेरी

डेविड ससून उन्नीसवी शताब्दी में बग़दाद से आया ए़क यहूदी था. वह खाड़ी देशों और ब्रिटिश सरकार के बीच कपडा उद्योग में ए़क बिचौलिया का काम करता था. लेकिन उसने बहुत जल्द तेल, कॉटन और कपड़ों का अपना व्यापर शुरू कर दिया. देखते ही देखते वह मुंबई में सत्रह मिलों का मालिक हो गया. इनमें पन्द्रह हजार से लेकर बीस हजार कर्मचारी काम करते थे.

भारत का सबसे सुंदर और बड़ा सिनोगाज( यहूदियों का प्रार्थना स्थल) बनाने का श्रेय डेविड ससून को ही जाता है. यह मुंबई के भायखला में डेविड मेजेंन के नाम से मशहूर है. पुणे में भी ससून ने डेविड ओहेल के नाम से ए़क सिनोगाज बनाया है. आज भी डेविड ससून और उनके परिवार के नाम से बहुत-सी संस्थाएं चल रही हैं. उन्होंने मुंबई में कई स्मारकों और शैक्षिणिक संस्थाओं का निर्माण किया. मुंबई के कोलाबा में ससून डॉक को इन्होंने ही बनवाया था.

ससून का आलिशान घर जिसे भायखला बंगला के नाम से जाना जाता था. इसे उन्होंने ए़क पारसी ट्रस्ट को दान दे दिया. आज यह मसीना हॉस्पिटल के नाम से जाना जाता है. उन्होंने अपनी ए़क और जगह मुंबई महानगर पालिका को अलबर्ट म्यूजियम की स्थापना के लिए दान दे दिया था.

डेविड ससून लाईब्रेरी के पास ही जमशेदजी जीजाभाय का घर है. वह ए़क पारसी व्यापारी व उद्यमी था. जमशेदजी जीजाभाय ने मुंबई में बहुत सी इमारतों, सड़कों और मैदानों के निर्माण में योगदान दिया है. आजादी की लड़ाई में इन्होंने कई मिडिया घरानों को सहयोग किया था.

काला घोड़ा

वेल्स के राजकुमार किंग एडवर्ड VII के अठारवीं शताब्दी में मुंबई आगमन पर उनके सम्मान में घोड़े पर सवार उनकी यह प्रतिमा बनाई गई. यह काले पत्थरों की बनी है. इसीलिए यह जगह काला घोड़ा के नाम से जानी जाती है. 1965 में सरकार ने ब्रिटिश द्वारा स्थापित उनके शासकों की मूर्तियों को शहर से हटाने का फैसला किया. इसी फैसले के तहत असली काला घोड़ा को इस जगह से हटाकर भायखला के रानी बाग में स्थापित किया गया. असली काला घोड़ा की जगह 2017 में इसके प्रतीक के रूप में 25 फीट उंची काले रंग के घोड़े की मूर्ति स्थापित की गई है.

काला घोड़ा मुंबई में किताबों के लिए मशहूर है. यहां हर तरह की किताबें आसानी से मिल जाती हैं. यहां सड़कों पर भी स्कूली किताबों से लेकर प्रोफेशनल और नॉवेल की विक्री कम किमतों में होती है.

पिछले कुछ सालों से इन दुकानदारों को स्मारकों की सुंदरता व सुंदरीकरण के नाम पर हटा दिया गया है. यह न सिर्फ इनकी रोजीरोटी के साथ खिलवाड़ है बल्कि समावेशी शहर के हमारी अवधारणा को भी ठेस पहुंचाती है. आजकल हर साल यहां काला घोड़ा फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है. इस आयोजन में विभिन्न कलाओं व संस्कृतियों के मंचन के साथ ही हस्तनिर्मित सामनों कि विक्री भी की जाती है. लकिन यह फेस्टिवल महज शहर के कुछ प्रतिशत अमीर तबके तक ही सिमटकर रह जाता है.

हुतात्मा चौक

हुतात्मा चौक पहले फ्लोरा फाउंटेन के नाम से जाना जाता था. इसका नाम रोमन की देवी फ्लोरा के नाम पर रखा गया था. इसका निर्माण 1864 में किया गया.

1956 में भारत सरकार ने राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की. इसी आधार पर बॉम्बे को विभाजित कर भाषा के नाम पर इसमें दो राज्यों महाराष्ट्र व गुजरात के गठन की मांग रखी गई. लोगों ने बड़ी संख्या में फ्लोरा फाउंटेन पहुंचकर आंदोलन शुरू कर दिया. पुलिस ने इस अहिंसक आंदोलन पर गोलियाँ दाग दी जिसमें 15 लोगों की मौत हो गई. इस कार्रवाई की वजह से तत्कालीन मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई को इस्तीफ़ा देना पड़ा. उनकी जगह नए मुख्यमंत्री वाय.बी. चौहान को चुना गया.

1960 में जब गुजरात व महाराष्ट्र दो अलग-अलग राज्य बनाये गए उस समय मुंबई शहर को लेकर दोनों में विवाद शुरू हो गया. दोनों ही मुंबई को अपने राज्य में मिलाना चाहते थे. इसी मुद्दे को लेकर एक बड़ा आंदोलन मुंबई में हुवा जिसमे समाज के हर तबके ने खास कर के मजदूरों ने बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया जिसके परिणाम स्वरुप ये निर्णय लिया गया कि मुंबई महाराष्ट्र की राजधानी बनेगी. 1961 में संयुक्त महाराष्ट्र समिति ने राज्य की स्थापना के लिए अपनी जान गंवाने वालों के लिए महाराष्ट्र सरकार से ए़क स्मारक बनाने की मांग रखी. इसी के बाद फ्लोरा फाउंटेन का नाम बदलकर हुतात्मा चौक यानी शहीद चौक कर दिया गया. नरसंहार की वर्षगांठ के अवसर पर ए़क शहीद की मां शावंतीबाई करगुडे द्वारा हुतात्मा चौक की नींव रखी गई.

नेशन फर्स्ट

अंग्रेजों के शासनकाल में यह ए़क प्रमुख गोदाम था. यहां से सामानों का आयात-निर्यात किया जाता था. वर्तमान में यह भारतीय नेवी का क्वार्टर है. इस जमीन का मालिकाना हक मुंबई पोर्ट ट्रस्ट के पास है.

बलार्ड बंदर

1920 में बलार्ड बंदर गेट हाउस का निर्माण बलार्ड स्टेट ने किया था. आज़ादी के बाद यह नेवल डॉकयार्ड का भाग बन गया. 2005 में भारतीय नौसेना ने इसे पुनर्जीवित कर इसको म्यूजियम की शक्ल देकर आम लोगों के लिए खोल दिया.

शिवड़ी फोर्ट

शिवड़ी फोर्ट का निर्माण अंग्रेजों द्वारा 1680 में किया गया था. वे इसे वाच टावर के रूप में प्रयोग करते थे. यहां से मुंबई हार्बरपर आसानी से नजर रखी जा सकती थी. इस फोर्ट पर खड़े होकर दक्षिण मुंबई समेत मुंबई ट्रस्ट व शिवड़ी नवा शेवा ट्रांस हार्बर सी लिंक को आसानी से देख सकता है. किले के आसपास निर्माण कार्यों की वजह से यहां जैव विविधिता प्रभावित हुई है. यहां पाए जानेवाले मैंग्रो को भी खासा नुकसान हुआ है. इस वजह से यहां हर साल विशेष मौसम में आने वाली दूसरे देशों की पंक्षियों की संख्या में भी कमी आई है. पर्यावरण का ध्यान रखे बिना बड़ी संख्या में यहां मैंग्रो को काटा गया.

शिवड़ी

यह ए़क अनोखी जगह है. हमने यहां पोर्ट से सामान लादकर जाते हुए ए़क मालगाड़ी देखी. ये मालगाड़ी वडाला रोड को काटते हुए गुजरी.

कवला बंदर

यहां पानी की जहाजों की तोडफोड़ की जाती है. यहीं भारतीय नौसेना के जहाज आईएनएस विक्रांत को तोड़ा गया था.

नेशनल टेक्सटाईल कार्पोरेशन लिमिटेड मिल

यह मुंबई की बंद पड़ चुकी कपड़े के मिलों में से ए़क है. यहां की अधिकांश बंद मिलों को बिल्डरों और पूंजीपतियों को बेच दिया गया है. आज कई मिलों को तोड़कर उनकी जगह शोपिंग मॉल या गगनचुम्बी इमारतें बनाने का प्रचलन तेजी से फ़ैल चुका है.

इन बंद पड़ी मिलों को देखकर युवाओं के मन में कई जिज्ञासाएं उभरी. उन्होंने सवाल किया कि जब मुंबई में इतनी अधिक खाली जमीन मौजूद है तब सरकार सस्ता घर बनाने की योजना इन जमीनों पर लागू क्यों नहीं करती. अगर गहराई से विचार करें तो इनका ये सवाल जायज है. सरकार को मुंबई में तेजी से बढती असंगठित रिहायसी इलाकों को विकल्प के रूप में इन जमीनों का इस्तेमाल किया जा सकता है.

कोई भी समुदाय मुंबई शहर पर अकेले अपना दावा नहीं कर सकता है. इस शहर को बनाने में में कई समुदायों का योगदान है. आज मुंबई जिस तरह दिखती है उसमें इस शहर के पारसी, यहूदी, ब्रिटिश, व्यापारी, और मेहनतकश मजदूरों के योगदान की झलक दिखाई देती है.

इस बात पर ध्यान देना बेहद जरुरी है कि आज जो लोग मुंबई को धर्म, जाति और भाषा के नाम पर अपना अधिकार जताने के कोशिश करते हैं इस शहर को बनाने में उनका योगदान नगण्य है. मुंबई का इतिहास हमें बताता है कि इस शहर का विकास तेजी से हुआ क्योंकि इसे बनाने में कई लोगों ने अपना योगदान दिया. हमें इसका श्रेय किसी ए़क व्यक्ति को न देकर यहां रहनेवाले सभी समुदायों को देना चाहिए. सिटी वाक के जरिए शहर के अलग-अलग संस्कृतीयों, समुदायों व इसके इतिहास को करीब से समझने का मौका मिलता है.

ब्लॉग के लिए योगदान: गौरव, मनाली, रसिका, रिजवान, सना, श्रुति, सुनील(सिटी कारवां), कनक(इंटर्न), अलिसिया और सचिन युवा से

Sushil Kumar

Consultant, YUVA

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