पहचानपत्र — शहर में अपनी पहचान और अस्तित्व को बनाने के लिए संघर्ष
I. संघर्ष — घरेलु कामगार महिलाओं के रजिस्ट्रेशन का…
मुंबई शहर जिस तरह अवसरों का शहर है उसी तरह चुनौतियों का भी शहर है| जहां पर एक तरफ ऊँची ऊँची इमारते दिखती है उसी जगह एक तरफ जुग्गी झोपड़ियों में रहते लोग दिखाई देते है| इस शहर के ऐसी ही दो चित्र दिखाई दते है मालाड पूर्व में| आंबेडकर नगर, मुंबई के मालाड पूर्व हिस्से में बसी एक ऐसी बस्ती जहाँ से कुछ ही दुरी पर ऊँची इमारते दिखाई देती है और दूसरी तरफ दिखाई देते है बम्बु ,प्लास्टिक की दिवार और छत से बनी घरों में रहनेवाले लोग| यह बस्ती पिछले ३० सालों से किसी भी तरह की मुलभुत सेवा और सुविधाओं से बंचित रही है| उसका एक कारण यह है की यह बस्ती वनविभाग की जमीन पर बनी है| इस बस्ती में रहेनेवाले अधिकतर लोग महाराष्ट्र और देश के अन्य राज्यों से काम की तलाश में मुंबई आये हुए श्रमिक है| कुछ लोग कंस्ट्रक्शन का काम करते है, कुछ सड़कों पर सामान बेचते है, कुछ सफाई कर्मचारी है तो कुछ पास ही के इमारतों में घरकाम करे है| डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी के नाम पर बनी इस बस्ती का हाल भी मुंबई में उनके नाम से बनी अधिकतर बस्तियों की तरह ही है| इन बस्तियों में अधिकतर लोकसंख्या श्रमिकों की होती है जो इस शहर को चलाते है पर यह बस्तियां और लोग हमेशा अपने मुलभुत अधिकारों से और सुविधाओं से वंचित ही रहे है| मालाड के आंबेडकर नगर की कहानी कुछ अलग नहीं है|
बस्ती में सुविधाओं का आभाव और लोगों के कुछ मुलभुत दस्तावेज बनाने के संघर्ष को ध्यान में रखते हुए युवा संस्था ने ‘अर्बन रिसोर्स सेंटर’ के मार्ग से इस बस्ती में अपना काम शुरू किया| युवा संस्था द्वारा चलाने जानेवाला यह सेंटर बस्ती में मुलभुत सुविधा के साथ लोगों को अपने मुलभुत दस्तावेज बनाने में मार्गदर्शन करने के लिए कार्यरत है| इस सेंटर से एक और काम चलता है — असंघटित कामगारों को उनके काम से संबंधित वर्कर बोर्ड के साथ जोड़ने का| यह बस्ती बड़ी इमारतों के पास होने की वजह से बस्ती की अधिकतर महिलाए उन मकानों में अपने श्रम देने जाती है| जिनको घरेलु कामगार कहा जाता है| इन महिलों के लिए महाराष्ट्र में एक कल्याणकारी बोर्ड भी बनया गया है, जहां उनका रजिस्ट्रेशन किया जाता है और उन्हें एक कामगार का दर्जा दिया जाता है| युवा साथियों ने बस्ती की घरेलु काम करनेवाली महिलों की रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू करने का सोचा|
जब इस काम की शुरवात की गयी तब सबसे पहली चुनौती थी इन महिलाओं को खोजना| बस्ती में पहले से कार्यरत एक संस्था से इसके लिए गटबंधन किया गया| उस संस्था के साथियों ने ऐसी महिलाओं को ढूंडने में मदत की| पर यह महिलाए इस तरह के किसी बोर्ड या रजिस्ट्रेशन से अवगत नहीं थी, जिसकी वजह से वो शुरुवात में काफी कतार रही थी| उनके इस डर और झिझक को ध्यान में रखते हुए इन महिलाओं के लिए एक जनजागृती सेशन का आयोजन किया गया था| जिसमे बस्ती की ४१ महिलों ने हिस्सा लिया और इस रजिस्ट्रेशन से जुड़े अपने सवालों के जवाब धुंडने की कोशिश की| इस सत्र से उन्हें काफी जानकारी मिली और आहिस्ता आहिस्ता उन्होंने रजिस्ट्रेशन के लिए अपनी तैयारी दिखाना शुरू किया| इस तरह महिलों के साथ मिलकर उनके बोर्ड के साथ रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू की गयी|
आगे बढ़ते है|पहली रुकावट थी रजिस्ट्रेशन के लिए लगाने वाला फॉर्म| वह फॉर्म ६ पन्नो का था और मराठी में था| अधिकतर महिलाए मराठी या अन्य कोई भी भाषा पढ़ना नहीं जानती थी| जिसके वजह से ऐसे फॉर्म खुद से भर पाना उनके लिए काफी मुश्किल था| उनकी इस समस्या को ध्यान में रख के युवा और बस्ती की संस्था के साथियों ने खुद से इन महिलों के फॉर्म भरना शुरू किया| यह प्रक्रिया काफी लम्बे तक चली| महिलाए दिन के समय आसानी से मिल नहीं पाती थी क्योंकि वो काम पर जाती थी इस लिए साथियों ने शाम को देर तक बस्ती में रुक कर सभी महिलाओं के फॉर्म भरे|
फॉर्म के बाद दूसरी रुकावट थी एप्लीकेशन फॉर्म के साथ लगने वाले डॉक्यूमेंट| बस्ती की जमीन को लेकर जो मसला था उसकी वजह से लोगों के पास किसी भी प्रकार के पहचान पत्र होना थोड़ा मुश्किल था| इसलिए अर्बन रिसोर्स सेंटर से उन महिलाओं के डॉक्यूमेंट — पहचान पत्र (आधार कार्ड, पैन कार्ड) बनाने की प्रक्रिया शुरू की गयी| इस तरह घरेलु कामगार महिलाओं के रजिस्ट्रेशन का काम इस बस्ती में शुरू हो गया|
फॉर्म भरने के बाद उन्हें बोर्ड के मुंबई के बांद्रा कार्यालय में जमा करना जरुरी था| पर वहा जाने के बाद मुश्किलें और बढ़ गयी| उस ऑफिस में हर रीजन के लिए एक ऑफिसर दिया गया है और उसके पास सभी विभागों से ऐसे अनेक फॉर्म आते है| उनके पास मदद के लिए ज्यादा लोग भी नहीं होते है| जिसकी वजह से एप्लीकेशन की प्रक्रिया बहुत धीमे चलती है और कही बार ऐसा भी होता है की कुछ एप्लीकेशन फॉर्म जमा करने के बाद उसकी ऑफिस में कही खो जाते है| इस पूरी समस्या को ध्यान में लेते हुए अर्बन रिसोर्स सेंटर की एक साथी ने उन ऑफिसर के साथ रिश्ता बनाते हुए उनको एप्लीकेशन की प्रक्रिया में मदद करना शुरू किया| अर्बन रिसोर्स सेंटर के साथी ने एप्लीकेशन की प्रक्रिया को आगे बढाने के लिए उनके सिस्टम में डाटा की एंट्री करना, कुछ महत्वपूर्ण स्लिप्स भरना कुछ इस तरह के अनेक कामों में अर्बन रिसोर्स सेंटर के साथी ने बोर्ड के ऑफिसर की मदद की|
इतनी मेहनत के बाद कुल ६१ महिलों का बोर्ड में रजिस्ट्रेशन किया गया और उनको सर्टिफिकेट भी दिए गए| उनका रजिस्ट्रेशन होने के बाद इस बस्ती से लगभग २०० महिलाओं के फॉर्म अर्बन रिसोर्स सेंटर में आये है और उनकी रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया अभी भी चल रही है|
Deepak Ghongade
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II. पहचान की खोज
नाम ? उम्र ? पता ?
जी हाँ ! यही पहचान थी उस युवक की जब वह अपनी मुहँबोली पहचान लेकर हमारे कार्यालय में आया था| जिस उम्र में युवा पीढ़ी अपने हाँथों में डिग्रिया लिये नौकरी की तलाश में रहते है, उस उम्र में यह युवक अपनी पहचान को तलाशते हुए राठोडी अर्बन रिसोर्स सेंटर में आया था | ‘राठोड़ी अर्बन रिसोर्स सेंटर’ यह युवा अर्बन इनिशिएटीव्ह्स के अंतर्गत मुंबई के मालाड (पश्चिम) के राठोडी नामक बस्ती में शुरू किया गया एक सेंटर है| जहा पर लोगों के जरुरत के अनुसार बस्ती की समस्या को लेकर अलग-अलग विषयों पर काम किया जाता है जैसे की, मूलभूत दस्तावेज और कल्याणकारी योजनओं तक लोगों को पहुचाने के लिए मार्गदर्शन और दस्तावेज शिबिर, लोगों में स्वास्थ्य संबंधित विषयों पर जानकारी बढाने के लिए स्वास्थ्य शिबिर और अपने मुलभुत अधिकारों के बारे में जानकारी देने के लिए जनजागृती चर्चासत्र इन सभी गतिविधियों का बस्ती में आयोजन किया जाता है|
अभी की परिस्थिति में हम सभी के जिंदगी में दस्तावेज एक अहम भूमिका निभाते है| जैसे की स्कूल में एडमिशन लेना है, नौकरी के लिए अप्ल्पाई करना है, ट्रेन या बस का पास बनाना है, बैंक में खाता खुलाना है या फिर किसी सरकारी योजना का लाभ उठाना है इन सभी के लिए कुछ मुलभुत दस्तावेजों की जरुरत होती है| यहाँ तक की आप इस देश के नागरिक है इस बात को बताने के लिए भी दस्तावेजों की जरुरत होती है|
इस युवक के साथ बात करने पर हमें यह पता चला की उसके पास ऐसे कोई भी दस्तावेज नहीं है, जिसे दिखाकर वह लोगों के सामने खुद की पहचान को साबित कर सके| जिस वजह से उसे नौकरी मिलने में भी मुश्किल हो गयी है और साथ ही में वो किसी भी सरकारी योजनाओं तक नहीं पहुच पा रहा था| इस युवक के पास दस्तावेज बनाने के लिए कोई जानकारी नहीं थी| यह युवक १८ सालों से राठोडी बस्ती में किराये पर रह रहा है | जब युवक को पूछा गया की ,उसने अभी तक कोई भी दस्तावेज क्यों नहीं बनवाये है, तो युवक ने कहा की, इससे पहले युवक को दस्तावेज जरुरी नहीं लगते थे लेकिन अभी के समय में वो जब काम के लिए अलग अलग जगाहो पर जाता है तो वहा पर दस्तावेज मांगे जाते है, दस्तावेज दिखाने के बाद ही प्रवेश मिलता है और काम करने के बाद जो पैसे मिलते है वोह नगद के स्वरुप में नहीं दिए जाते ऑनलाइन पैसे ट्रान्सफर किये जाते है जिस वजह से युवक को काफी दिक्कते होती थी क्योंकी, युवक का बैंक अकाउंट भी नहीं था| युवक इन परेशानियोंसे तंग होकर अपने दस्तावेज बनवाने का निर्णय लिया| इसीलिए वो कुछ एजेंट्स से मिला लेकिन एजेंट लोग ज्यादा पैसे मांगते थे और दस्तावेज देने का समय भी काफी ज्यादा बताते थे | एक एजेंट ने तोह इस युवक से पैसे भी लिए लेकिन दस्तावेज बनाकर नहीं दिए और युवक जब उससे संपर्क करने की कोशिश करता तब वह एजेंट कॉल भी नहीं उठाता था इस वजह से युवक काफी परेशान हो गया था |
उस युवक की इस परेशानी को ठीक से समझने के बाद युवा साथी दरक्षा और अभिजित इस युवक के साथ नजदीकी सरकारी कार्यालय में गए और उस युवक का आधार कार्ड बनवाने की प्रक्रिया शुरू की गयी| इस प्रक्रिया के दौरान अधूरे दस्तावेज होने की वजह से उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा जैसे की, आधार सेंटर में सरकारी कर्मचारी आधार कार्ड बनाने के लिए सरकारी पहचान पत्र मांग रहे थे जो उस युवक के पास नहीं था| उस वक्त हमने वकील से एफिडेविट बनवाया और बोरीवली के सरकारी आधार केंद्र कार्यालय में जाकर प्रोसेस शुरू की | ८ से १० दिनों तक लगातार फॉलोअप लेने के बाद आधार कार्ड का प्रोसेस पूरा हुआ और उसके एक महीने बाद उस युवक का आधार कार्ड बनकर आ गया| उस युवक का आधार कार्ड मिलने के बाद उसे और भी प्रोत्साहन मिला और हमारे साथ मिलकर उसने अपने बाकी दस्तावेज बनाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी, जिसमे हमने उसे जनधन बैंक अकाउंट, मतदान कार्ड, इ-श्रम कार्ड और हेल्थ आईडी इत्यादि दस्तावेज बनाने में मदत की|
इस प्रक्रिया के दौरान कोविड -19 के वातावरण को देखते हुए महाराष्ट्र में लॉकडाउन की घोषणा हुयी | इस युवक के परिवार में यह अकेला कमानेवाला व्यक्ति है| इस युवक के कमाई पर ही उसका परिवार निर्भर है जिस वजह से उसके परिवार की आर्थिक दिक्कते बढ़ गयी | उस वक्त भी युवा अर्बन इनिशिएटीव्ह्स और खाना चाहिए संस्था के तरफ से इस परिवार को एक महीने का राशन दिया गया| इस वक्त यह युवक वेल्डिंग का काम कर रहा है और २४००० रुपये प्रति महिना कमा रहा है|
अर्बन रिसोर्स सेंटर का संकल्प यही है की, सूरज जैसे कई लोग अपनी पहचान को तलाश रहे है लेकिन, अधूरी जानकारी या सही मार्गदर्शन न मिलने की वजह से वे लोग आज तक अपनी पहचान को हासिल नहीं कर पाए है| ऐसे लोगों को सही मार्गदर्शन देकर दस्तावेज और कल्याणकारी योजनओं को प्राप्त करवाने में सहयोग करना|
Gaurav Salvi
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III. कहानी अनिर्वाय आधार कार्ड की…
सैफुनिसा खान यह लल्लूभाई आर एन आर वसाहत में रहनेवाली एक महिला है, जिन की उम्र ४५ साल है| वे अपने परिवार के साथ पिछले १२ साल से मुंबई में रह रही है और उनका मूल गाँव बिहार है| जब साठे नगर और लल्लूभाई कंपाउंड में अर्बन रिसोर्स सेंटर का शुरू हुआ था तब सेंटर द्वारा डॉक्यूमेंट कैंप (जिसमें हम लोगों को एक जगह पर बुलाकर उनके पहचान पत्र बनाने की प्रक्रिया चलाते है) का आयोजन किया जाता था| उसी प्रक्रिया के दौरान हमने एक कैंप लल्लूभाई कंपाउंड में रख था| यह बस्ती में हमारा दूसरा ही कैंप था| तभी यह महिला हमारे पास आयी और हमसे पूछने लगी के आप क्या कर रहे हो? तभी हमने उन्हें डॉक्यूमेंट कैंप के बारे में जानकारी दी, हम ये कैंप क्यों कर रहे है यह भी बताया| हमने उन्हें यह भी बताया की पास ही में साठे नगर में हमारा सेंटर है जहासे हम लोगों के डॉक्यूमेंट बनाने के काम रोज करते है|
साड़ी जानकारी लेने के बाद उन्होंने हमसे आधार कार्ड किस तरह बनता और उसके लिए कौन कौन से डॉक्यूमेंट लगता है यह जानकारी भी मांगी| तब हमने आधार कार्ड के लिए कौन कौन से डॉक्यूमेंट लगते है उन्हें समझाया और आधार कार्ड कहा बनता है वो भी बताया और वो महिला हमसे हमारा नंबर लेकर चली गयी|
कैंप होने के कही दिनों बाद वो महिला फिर से सेंटर पर आई और फिर से आधार कार्ड के बारे में पूछने लगी| फिर हमने उन्हें बताया की आधार कार्ड के लिए एक पहचान पत्र (आइ डी पप्रूफ) और एड्रेस प्रूफ भी लगता है| उनसे बात करने पर पता चला की अभी तक उनके पास किसी भी डॉक्यूमेंट नही है| उनसे और बात करने के बाद ये भी पता चला की उनके सभी फॅमिली मेंबर्स के पास सभी डॉक्यूमेंट है बस इनके पास ही कोई डॉक्यूमेंट नही है जिसके वजह से उन्हें काफी दिक्कत हो रही थी| उनके फॅमिली में से किसी भी व्यक्तिकों उनके डॉक्यूमेंट बनाना जरुरी नहीं लग रहा था इसलिए वो अपने आप ही सेंटर पर आयी थी|
उनके पास कोई भी डॉक्यूमेंट ना होने की वजह से आधार कार्ड बनानें में काफी मुश्किल हो रही थी| पर इस तरह के केसेस के लिए आधार एप्लीकेशन का एक अलग फॉर्म आता है जिस पर नगरसेवक के stamp और सिग्नेचर की जरुरत होती है| इसलिए हमने सबसे पहले उन्हें नगर सेवक से फॉर्म पर stamp लाने के लिए नगर सेवक के ऑफिस भेजा| पर शायद वो एक महिला होने की वजह से और एक विशिष्ट कम्युनिटी से होने की वजह से नगर सेवक ने उन्हें stamp देने के लिए बहुत देर कर दी| जिस के कारण हमे नगर सेवक के ऑफिस को विजिट कर के उन्हें इस महिला की केस समझानी पड़ी| stamp मिलने के बाद भी उनका काम आसान नहीं हुआ, सरकारी आधार सेंटर से उन्हें एक दो बार वापीस भेजा गया| तंग होकर उन्होंने बस्ती के एजेंट के पास आधार कार्ड बनाने के लिए जाने का तय किया| इस मामले में हम भी उनकी ज्यादा मदत नहीं कर पा रहे थे क्योंकि साठे नगर में हमारा काम काफी नया था और हमने पोस्ट ऑफिस भी विजिट किये थे पर वहा से हमे शुरुवात में अच्छा रेस्पोंस नही मिला था|
एजेंट ने भी आखिर उनका काम नहीं किया क्योंकि उसने भी कहा की कम से कम एक डॉक्यूमेंट तो लगेगा| इस के अलावा उन्हों ने शिवाजी नगर पोस्ट ऑफिस के आधार सेंटर से भी अपना आधार कार्ड बनाने की कोशिश की पर वहा भी उन्हें वही जवाब मिला| एजेंट हो पोस्ट ऑफिस या आधार सेंटर सभी जगह के चक्कर लगाकर भी उनका आधार कार्ड नहीं बन पाया|
मायूस होकर उन्होंने सेंटर आना भी बंद कर दिया और हम भी अपने दुसरे काम करने लगे| पर आहिस्ता आहिस्ता बस्ती में हमारा काम जोर लेने लगा और धिरे धीरे लोगों के साथ हमारा रिलेशन भी अच्छा होने लगा| बस्ती के लोगों के सुकन्या योजना के खाते खुलाने के हेतु से हमने नजदीकी पोस्ट ऑफिस के PR ऑफिसर के साथ मीटिंग की जिसमे उन्हों ने हमे सुकन्या के अकाउंट के बारे में बताया और उसकी पूरी जानकारी दी| अगले महीने में हमने उनसे १० सुकन्या अकाउंट ओपन करवाए| इस ही दौरान हमने उनके पोस्ट ऑफिस भी विजिट किया और आधार कार्ड के बारे में भी बात की| हमने उन्हें बताया की साठे नगर में हमारा काम चलता है और बस्ती में ऐसे बहुत लोग है जिनका आधार कार्ड बनाना है| तभी उन्होंने हमें यह बताया की वो इस काम में हमारी मदद करेंगे |
उसके बाद हमने सेंटर से आधार कार्ड बनाने की प्रोसेस स्टार्ट की| सेंटर से हम लोगो को फॉर्म बना कर देते थे और लोगो को पोस्ट ऑफिस भेजते थे फिर पोस्ट ऑफिस से कोआर्डिनेट करते थे| पोस्ट ऑफिस से हमारा काफी अच्छा रिलेशन तैयार हो गया था| इस तरह हम ने आधार कार्ड का काम सुरु किया| एक दिन अचानक वो महिला वापस सेंटर पर आई और उन्हों ने यह बताया की अभी तक उनका आधार कार्ड नही बना है|अपने साथ वो नगर सेवक का stamp किया हुआ फॉर्म भी लेकर आयी थी| वही फॉर्म लेकर हमने उन्हें देवनार पोस्ट ऑफिस भेजा| वहा जा के उन्होंने हमें कॉल किया के फिर से वो अधिकारी यही कह रहे की आधार कार्ड नहीं बनेगा| तभी हमने उस अधिकारी से कॉल पर बात की और उन्हें उस महिला की पूरी कहने बतायी| उन्हों ने कहा ‘ठीक है’, और कॉल कट करदिया| पर कुछ घंटे बाद उस महिला का कॉल आया और उन्होंने बताया ‘मेरा आधार कार्ड बन गया’| फ़ोन पर वो बहुत खुश लग रही थी और उसके दुसरे दिन ही उन्हों ने सेंटर पर मिल कर अपना आधार कार्ड का स्लिप दिखाया| चार महीने बाद आखिर कार उनका आधार कार्ड उन्हें मिल गया|
Meiraj Ahmed
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IVA. आखिर मिल ही गयी मिताली ठोंबरे को घरपट्टी से घर का मलकानी हक्क!
मिताली ठोंबरे २०१६ से नालासोपारा वलई पाड़ा बस्ती में खुद के रूम में अपने परिवार के साथ रह रही है। इनके २ छोटे बच्चे है एक लड़का ५ साल का और एक लड़की ७ साल कि| दोनों स्कूल भी जाते है। इनके पति वसई के किसी कंपनी में कागज की थैली बनाने का काम करते हैं। घर की परिस्थिति को संभालने के लिए मिताली जी भी घरकाम में लादी-पोछा, बर्तन साफ करना जैसे काम कर रही है। इस काम से इनको महीने की ५ हजार से ६ हजार रूपए तनखा भी मिल जाती है। इस प्रकार पति-पत्नी के कमाई से इनका घर चलता हैं।
घर की आर्थिक परिस्थिति ठीक न होने के कारण शादी से पहले मिताली ठोंबरे को अपनी पढ़ाई छोड़कर कोकण से मुंबई में आना पड़ा| माता पिता की आर्थिक स्थिति को समझते हुए इन्होंने मुंबई में छोटी उमर से ही घर काम करना शुरू कर दिया। मिताली ठोंबरे जैसी अन्य ३०-४० श्रमिक घर कामगार महिलाएं वलई पाडा बस्ती में रहती है, और घरकाम कर के अपने परिवार चलाती है|
वलई पाडा यह बस्ती मुंबई शहर के हाशिये पर पालघर विभाग के नालासोपारा में बसी है| इस बस्ती में बसे हुए लोग अलग अलग राज्य से आये है और अलग अलग भाषाएँ बोलनेवाले है| इस बस्ती के ज्यादातर लोग पास ही की कंपनियों में हेल्पर का काम करते है| कुछ लोग बेगारी, रिक्शा चलाना इत्यादि कामो से अपना और अपने परिवार का बसर गुजारा करते है| अधिकतर लोग असंघटित क्षेत्र में काम करते है जिस वजह से उनकी महीने की कमाई भी सिमित है| दुसरे राज्यों से आये हुए लोग अपनी सिमित कमाई से कुछ पैसा बचा के बस्ती में खुद का घर भी लेने की कोशिश करते है| यह बस्ती जिन के जमीन पर बनी है वो जमीन पर छोटे छोटे घर बनाते है और इन लोगों को बेचते है| ऐसे घर खरीदने के बाद सरकरी कागज़ पर घर की मालीकाना अधिकार पाने के लिए उन्हें सरकरी दफ्तरों से घरपट्टी भरनी होती है और वह घरपट्टी अपने नामों पर करानी होती है| जिससे यह सिद्ध होता है की रूम इनका ही है और इस घरपट्टी से सरकार को सालाना टेक्स भरना होता है| घरपट्टी बनाने की या अपने नाम पर कराने की प्रक्रिया इन्हें पता न होने की वजह से घरपट्टी बनाने के लिए स्थानीय एजेंट लोग से १५ हजार से २० हजार रुपये की मांग करते है, जबकि सरकारी नियमो के हिसाब से २ हजार रुपये से ३ हजार रूपए के अंदर ही यह काम हो सकता है| पर घरपट्टी बनाने के लिए लगने वाले पेपर और प्रक्रिया की जानकारी नहीं होने के वजह से सरकारी दफ्तर में लोगो को बहुत ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है साथ ही भाग दौड़ करना पड़ता है इसलिए लोगो को खुद से घरपट्टी बनाने में दिक्कते होती है और वो अपनी कामी का बड़ा हिस्सा एजेंट को देकर घरपट्टी बनाने की कोशिश करते है| कही बार इन प्रक्रियाओं में उनको फसाया भी जाता है|
बस्ती में सिर्फ घरपट्टी ही नहीं आधार कार्ड और पैन कार्ड जैसे मूलभूत पहचानपत्र बनाने के लिए भी लोग एजेंट को जरुरत से ज्यादा पैसे दे रहे थे और जिनके पास उतने पैसे नहीं थे वो बिना दस्तावेज ही अपना काम चला रहे थे| जरूरी दस्तावेज पास न होने की वजह से बस्ती के लोगों को सरकारी योजनाओं और सुविधाओं तक पहुचने में भी दिक्कते हो रही थी| इन सभी चीजों को देखते हुए बस्ती में रहनेवाले लोगों तक सरकारी योजनाओ की जानकारी पहुचाने के लिए और उन्हें मुलभुत दस्तावेजों तक पहुचने में मदद करने के लिए वलईपाडा बस्ती में अस्तित्व मूलभूत संसाधन केंद्र का काम सुरु किया गया | मुलभुत संसाधन केंद्र से लोगो को सरकारी योजना की और दस्तावेज बनाने की जानकारी मुफ्त में दी जाती है| साथ ही में लोगों को अपने मुलभुत अधिकारों के बारे में जानकारी देने के लिए जनजागृती सत्र भी आयोजित किये जाते है| ऐसे सत्रों में लोगों को आमंत्रित करने के लिए बस्तियों में मोबिलाइजेशन किया जाता है| मिताली ठोंबरे से हमारी मुलाकात बस्ती इसी प्रकार के मोबिलाइजेशन के दौरान हुयी| मोबिलाइजेशन के माध्यम से ही मिताली जी को संसाधन केंद्र के बारे में जानकारी मिली। एक दिन घरपट्टी बनाने की प्रक्रिया को समझने के लिए मितीला ठोंबरे संशाधन केंद्र पर आयी| उनसे बात करने पर पता चला की मिताली ठोंबरे अपनी घरपट्टी बनाने का काम पहले से किसी एजेंट को दिया हुआ था| उनके पास इस प्रक्रिया की जानकारी भी नहीं थी और अपने काम की वजह से सरकारी दफ़तर में जाने के लिए समय भी नहीं था|
पर जब वो संसाधन केंद्र आये, तब युवा साथियों ने उन्हें इस प्रक्रिया कि जानकारी दिया| मितालीजी को उनके घर के रजिस्ट्रेशन पेपर, लाइट बिल और आधार कार्ड के साथ खुद का प्रतिज्ञा पत्र, १ पासपोर्ट साइज़ फोटो, फुल साइज़ दरवाजे के बाजु में खड़े रहकर १ फोटो लेकर वसई विरार शहर महानगरपालिका के कार्यालय में जाने को कहा|
जब वो पहली बार कार्यालय में गए, तब उनका काम नहीं हुआ| वह फिर से संसाधन केंद्र पर आयी, ऐसा लगभग २ से ३ बार हुआ, जब भी वो सरकारी कार्यालय में जाती थी तब उनको सम्बंधित अधिकारी जिस प्रकार से जानकारी दे रहे थे वह जानकारी मिताली जी को समझमें नहीं आती थी | इस बात को ध्यान में रखते हुए युवा साथियों ने सम्बंधित विभाग के डोंगरे साहेब उनसे उनको बात करने को और अपना घरपट्टी का अर्ज़ जमा करने को कहा गया| इस जानकारी से उन्हें काफी मदद मिली| इस प्रक्रिया के दौरान सरकारी अधिकारीयों से मिलना, उनसे बाते करना, अपने काम से संबंधित जानकारी हासिल करना इन सभी चीजों की वजह से उनका आत्मविश्वास अधिक बढ़ गया और कुछ दिनों के बाद उनको उनके घर का घरपट्टी मिल गया|
अपनी घरपट्टी बनाने के लिए खून पसीने की कमाई से इकट्ठा किये हुए ₹१७००० उन्होंने एजेंट को दिए हुए थे | इस प्रक्रिया से जाने के बाद उन्होंने एजेंट से वह पैसे वापस ले लिए क्योंकि अब उन्हें लग रहा था की वो अपना काम खुद से ही कर सकती है| घरपट्टी जैसे महत्त्वपूर्ण दस्तावेज को खुद से बनाने के बाद ‘युवा’ के साथ उनका रिश्ता विश्वसनीय और बेहतर बनते गया।
घरपट्टी बनने से मिताली जी का एक जरूरी सरकारी दस्तावेज तैयार हुआ, यह दस्तावेज रहवासी दाखला के रूप में उनके काम आ सकता है, घरपट्टी यह भी दर्शाती है की वलई पाड़ा बस्ती में जिस घर में वह रह रही है वो उनका खुद का घर है| अगर आगे जाकर किसी भी प्रकार का डेवलपमेंट प्रोजेक्ट उस जगह पर आता है तोह यह घरपट्टी नामक सरकारी दस्तावेज इनको अपना हक दिलाने में सबसे महत्वपूर्ण मदद करेगा।
जिनके पास घरपट्टी नहीं होती, महानगरपालिका के अधिकारी उन रूम को बंद कर देते है या फिर रूम को तोड़ भी देते है| इस प्रकार घरपट्टी न सिर्फ भविष्य में उनको अपना अधिकार दिलाएगी पर वर्तमान में उनके आवास के अधिकार की रक्षा भी करेगी (उनका घर टूटने से बचाएगी)|
इसके बाद मिताली ठोंबरेजी ने अर्बन रिसोर्स सेंटर की मदद से अपना आधार कार्ड, घर कामगार का फॉर्म, श्रमिक कार्ड, मतदान कार्ड, बैंक खाता जैसे अन्य कामों के साथ सुकन्या समृद्धि योजना का लाभ लेने तक सभी काम खुद से किये| यह सभी दस्तावेज बनाने के बाद उन्होंने अपना नया राशन कार्ड बनाने की भी प्रक्रिया भी शुरू कर दी है|
मिताली ठोंबरे जैसे कई परिवार वलई पाडा की बस्ती में हैं जो अभी तक इन सभी सुविधाओं से वंचित है। इन वंचित लोगो को सरकारी प्रक्रियाओं की जानकारी नहीं होने के कारण एजेंट के पास जाना पड़ता है जहां उन्हें पैसा भी अधिक देना होता है| अर्बन रिसोर्स सेंटर के माध्यम से बस्ती के लोगों को जो जानकारी मिलती है वह लोगो के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण साबित हो रही है| अर्बन रिसोर्स सेंटर के माध्यम से लोगो को जानकारी के साथ साथ पैसा की बचत करने भी मदद मिलती है और लोगों को अपने अधिकारों के बारे में जागरूक भी किया जा रहा है|
Anshu Maurya
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IVB. Mitali Thombre finally got her gharpatti — the right to home ownership!
Since 2016, Mitali Thombre has been living in Valai Pada, Nalasopara, with her family. She has 2 small children — a son aged 5 and a daughter aged 7, who go to school. Her husband works in a company at Vasai making paper bags. To help with household expenses, Mitali also works as a domestic help. She earns around 5 to 6 thousand rupees a month. This is how the family has been making ends meet.
Due to their impoverished financial background, Mitali had to leave her education midway and come to Mumbai from Konkan before marriage. To help her parents, she started working as a domestic help from a very young age. There are about 30–40 women like Mitali living in Valai Pada who work in this way to support their families.
Valai Pada is in Palghar district of Nalasopara. The residents hail from different states and speak varied languages. Most people of this informal settlement work in nearby companies. Some people make a living by driving rickshaws. Most of the people work in the informal sector, due to which their monthly earnings are limited. People coming from other states save some money from their limited earnings and try to buy their own house. The landowners build small houses and sell them to these people. After buying such houses, in order to get the ownership rights of the house on government paper, they have to fill the ‘gharpatti’ from government offices and get that registered in their names. This proves that the house belongs to them and they have to pay annual tax on this to the government. Being unfamiliar with the registration process themselves, people are often dependent on local agents who demand 15 to 20 thousand rupees for making gharpatti, whereas according to the government rules this work can be done within 2 to 3 thousand rupees. Due to lack of knowledge about the requisite documents and process involved, people have to face a lot of trouble in the government office as well as make repeated trips, hence doing the process themselves is very difficult. Therefore they spend a large part of their savings in paying the agent. Sometimes they are also trapped in these schemes.
Not only gharpatti, the people in Valai Pada were paying more money to the agents than necessary for making basic identity cards like Aadhar and PAN card and those who did not have that much money were managing without these documents. Due to unavailability of necessary documents, the people were also facing difficulties in accessing government schemes and facilities. In view of all these issues, to make information available about government schemes to the people living in Valai Pada and to help them access the basic documents, YUVA Urban Initiative’s urban resource centre was set up. This centre disseminated information on government schemes and processes for free among the people. Along with this, public awareness sessions have also been organised to make people aware about their fundamental rights. Mobilisation is done in settlements to invite people to such sessions. We met Mitali Thombre through one such session. She heard about the initiative through the mobilisation effort. On talking to her, we came to know that Mitali had already outsourced her gharpatti application to an agent. She did not have knowledge of the process and due to her work did not even have time to go to the government office.
But when she came to the resource centre, the YUVA team informed her about this process. Mitali was asked to go to the Vasai Virar City Municipal Corporation office with her home registration paper, light bill and Aadhar card along with her undertaking and other necessary documentation.
When she went to the office for the first time, it did not work. She again came back to the resource centre — this happened about 2 to 3 times, whenever she used to go to the government office, Mitali did not understand the way the officials were giving her the information. Keeping this in mind, the YUVA team asked her to talk to Dongre Saheb of the concerned department and submit the application. This information helped Mitali a lot. During this process, meeting with government officials, talking to them, getting related information, all these activities increased Mitali’s confidence and after a few days she secured the papers of their house. For this process, she had initially paid an agent 17,000 rupees of her hard earned money. Once she realised the task could be done by herself, she got her money back from the agent. After managing to secure the document by her own, her trust and relationship with YUVA was further cemented.
With access to her gharpatti, an important government document, Mitali would be known as the rightful owner of her house. Going forward, for any development project in this area, this document would help her in getting her dues. In this way, the gharpatti will not only give them their rights in future but will also protect their right of residence in the present (save their house from being demolished).
After receiving her gharpatti, Mitali also sought the facilitation of the Urban Resource Center (URC) for her other documentation like Aadhar card, domestic worker form, labor card, voting card, bank account and even took the benefit of Sukanya Samriddhi Yojana. After making all these documents, she has also started the process of making her new ration card.
Many families like Mitali Thombre are in Valai Pada, who are still deprived of all these facilities. Due to lack of knowledge of government procedures, these people have to go to agents where they have to pay more money. The information that the people of the settlement get through the Urban Resource Centre is proving to be very important. Through the Centre, people get information as well as save money and are becoming more aware about their rights.
Translated by Manisha Swain