पिछले कुछ वर्षों से मुंबई शहर का तेजी से विस्तार हुआ है. दिन-प्रतिदिन शहर में बढ़ती जनसंख्या के रहने की जरूरतों को पूरा करने के लिए कई नये इलाके बन रहे हैं. आज यह हाल है कि अगर आप एक सूची बनाकर इन सारे इलाकों के नाम लिखना शुरू करते जायेंगे तो इसकी सम्भावना बहुत अधिक बढ़ जाती है कि इनमें से कई इलाकों का नाम एक जैसा होगा.
इन इलाकों में रहने वाले लोगों की अपनी समस्याएं और जरूरतें हैं. कई लोग मानते हैं कि इनकी समस्याएं सिर्फ इन तक ही सीमित हैं, आम शहरी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. लेकिन यह बात कुछ हद तक गलत है. शहर में रहने वाले सभी लोगों की जरूरतें एक दूसरे से जुड़ी हैं. ऐसे में अगर शहर के किसी जगह कोई संकट आता है तो इसका असर दूसरे लोगों पर जरुर पड़ेगा.
लेकिन मुख्यधारा के लोगों और खासकर मीडिया ने इन इलाकों में रहने वालों को अपनी खबरों से पूरी तरह काट दिया है. इनकी रोजमर्रा की समस्याओं पर कहीं कोई चर्चा नहीं होती है. अगर कोई गंभीर घटना घट जाये तो वो महज एक कोने में छोटी सी खबर बनकर दम तोड़ देती है.
फिल्मों में शहरी समाज की व्याख्या
सिनेमा की पहुंच बहुत व्यापक है. इसके जरिए हम आसानी से किसी भी बात को एक बड़े समूह तक रख सकते हैं. एक कलाकार के लिए समाज से जुड़कर उसकी समस्याओं को लोगों के सामने लाने के लिए फिल्म एक सरल माध्यम है. हम देखते हैं कि फिल्मों में एक विशिष्ट समाज की कहानियों का ही बोलबाला होता है. हाशिये के लोगों की कहानियों को फिल्मों से काफी हद तक नज़रअंदाज कर दिया जाता है. फिर भी कई ऐसे लोग हैं जो समाज के पिछड़े तबकों के असल जीवन से जुड़ी कहानियों को भी परदे पर लाने में दिलचस्पी रखते है. लेकिन समाज में इन फिल्मों की कहानियों पर कोई चर्चा नहीं होती है. यहां तक कि फिल्म प्रदर्शन के लिए आयोजित होने वाले फिल्म समारोह भी एक खास वर्ग के लोगों तक ही सीमित होते है. इसका बड़ा खामियाजा उस समाज का उठाना पड़ता है जिसकी कहानी परदे पर होती है. फिल्म प्रदर्शन के बाद होने वाली चर्चा में इनके शामिल ना होने से यह चर्चा सिर्फ एक तरफा होकर रह जाती है.
शहर की प्रमुख समस्याओं को दिखाना
शहर की समस्याओं के बारे में सभी को सोचना और उसपर अपनी राय रखनी चाहिए. लेकिन ऐसा होता नहीं है. लोग सिर्फ अपनी समस्याओं तक ही खुद को सीमित रखते हैं. अपने कई साल के अनुभवों के आधार पर युवा संस्था ने इन समस्याओं से सभी को जोड़ने और मिलकर समाधान खोजने का एक सराहनीय कदम उठाया है.
युवा ने 24–26 मार्च तक मुंबई तथा नवी मुंबई में फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया. इस फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जानेवाली सभी फ़िल्में समाज आधारित थीं और एक समुदाय विशेष की कहानियों को परदे पर दिखाया गया. ये इसकी सबसे बड़ी खूबी थी. 27 मार्च को इस फिल्म फेस्टिवल का समापन समारोह तथा फ़िल्म से जुड़ी चर्चा का आयोजन मुंबई के सेंटर फॉर एजुकेशन एंड डॉक्युमेन्टेसन (CED) में रखा गया. यह आयोजन सेंटर फॉर एजुकेशन एंड डॉक्युमेन्टेसन के सहयोग से संपन्न हुआ.
पहले तीन दिन प्रदर्शन के लिए चुनी गई सभी फिल्मों में समाज के उन्हीं वर्गों की कहानियों को दिखाया गया जिनके इर्द-गिर्द इसका आयोजन किया गया. जैसा कि हाल में नवी मुंबई और उसके आसपास बड़े पैमाने पर महानगर पालिका की ओर से बस्तियों को तोड़ा गया है. यहां रहने वाले अधिकतर लोग अप्रवासी मजदूर हैं. यहां प्रदर्शन के लिए डस्ट वी राईज फिल्म को चुना गया. यह फिल्म मुंबई महानगर पालिका के सफाई कर्मचारियों की समस्याओं से जुड़ी है.
मानखुर्द स्थित लल्लूभाई कंपाउंड में छेड़खानी तथा नशाखोरी एक प्रमुख समस्या है. कम उम्र में ही उचित मार्गदर्शन न मिलने की वजह से कई युवा गलत संगत में पड़कर इसके शिकार हो जाते हैं. यहां हमने लोगों को खुले आसमान के नीचे फिल्म दिखाया. यह फिल्म मुंबई शहर में लड़कियों को खेलने के लिए खुले मैदान की वकालत करती है. आज भी शहर में लडकियों को खेलने के लिए लड़कों की तुलना में मैदान न के बराबर हैं. फिल्म प्रदर्शन के बाद चर्चा में शामिल लड़कियों ने भी इसे एक जरुरी मुद्दा माना.
मालाड़ के अम्बुजवाड़ी में बस्ती की समस्याओं तथा मूलभूत सुविधाओं को ध्यान देते हुए ऐसी फिल्मों को प्राथमिकता दी गयी जो इसे फिल्मों के जरिये बखूबी दिखा सके. अम्बुजवाड़ी की बस्तियों में युवक-युवतियों की प्रमुख भागीदारी रहती है. यहां इन्हीं युवाओं द्वारा बस्ती तथा अपने आसपास की समस्याओं के समाधान पर आयोजित युवा के वार्षिक कार्यक्रम की चर्चाओं पर केंद्रित मेकिंग मुंबई फिल्म का प्रदर्शन किया गया.
यह फिल्म फेस्टिवल सभी के लिए एक खुला मंच की तरह था. इसके जरिए कई लोगों ने शहर से जुड़े अपने अनुभवों को साझा किया गया. खासकर फिल्म समाप्ति के बाद इसमें दिखाई जाने वाली कहानियों और समस्याओं को खुद से जोड़ते हुए लोगों ने इसके समाधान के लिए शहर में एक व्यापक चर्चा की शुरुवात करने पर जोर दिया. युवा का भी फिल्म फेस्टिवल आयोजित करने का मुख्य मकसद यही था. हम इस फेस्टिवल के जरिए शहर में लोगों के बीच एक संवाद शुरू करना चाहते हैं. जिससे हर कोई अपने रोजमर्रा के अनुभवों को दूसरे लोगों के बीच साझा कर सके.
हमारे लिए मुंबई शहर के भाग-दौड़ भरे जीवन में लोगों को फिल्म फेस्टिवल के लिए उपस्थित करना तथा उनके अनुभवों को सुनना और उसपर चर्चा करना काफी यादगार रहा. इस बारे में विस्तार से चर्चा हम अपने अगले ब्लॉग पोस्ट में करेंगे.
यह फिल्म फेस्टिवल युवा संस्था की ओर से 23 से 28 मार्च तक आयोजित कॉम्प्लेक्स सिटी कार्यक्रम का हिस्सा था. इस कार्यक्रम के बारे में अधिक जानकारी युवा की वेबसाइट www.complexcity.in पर उपलब्ध है.