कई सालों से हम सुनते आ रहे हैं कि भारत एक प्रगति की तरफ बढ़ने वाला देश है। भारत देश को सोने की चिड़िया के नाम से भी जाना जाता था। इसे ऐसे ही सोने की चिड़िया नहीं कहा जाता था, बल्कि इसलिए कहा जाता था क्योंकि यहाँ अलग-अलग देश के लोग व्यापार करने के लिए आते-जाते रहते थे। बड़े पैमाने पर व्यापार करने के लिए मुंबई को चुना गया था, जो देश की आर्थिक राजधानी थी। इसलिए देश के अलग-अलग राज्यों से, ज़िलों से लोग मुंबई शहर में काम की तलाश में आते रहते हैं। काम की तलाश में आए हुए लोग ज़्यादातर रिक्षा चालक, नाका कामगार, घर कामगार, कंपनियों में मजदूर आदि काम करते हैं। ये लोग रोज काम करते हैं और रोज घर का खर्चा चलाते हैं, क्योंकि इन्हें ज़्यादा पैसे नहीं मिलते हैं ।
ये सभी कामगार रहने के लिए झोपड़ा बनाकर या कहीं भी खाली जगह पर अपना घर बांध कर रहते हैं। मुंबई शहर में ऐसी बहुत सारी बस्तियाँ हैं, जिन्हें आज भी सरकार ने न तो मान्यता दी है और न ही कोई मूलभूत सुविधा । ऐसी ही एक-शांतिनगर नाम की बस्ती मालवणी, अंबुजवाड़ी में बसी हुई है। इस बस्ती को बसे पूरे ३५ साल हो गए हैं लेकिन आज भी वहाँ रहने वाले लोगों की बहुत बड़ी समस्या पानी है।
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आज भी वहाँ रहने वाले लोगों का ज़्यादा समय पानी खरीदकर भरने में चला जाता है और बहुत से घरों के बच्चे भी पानी भरने शांतिनगर से मालवणी गेट नंबर ८ पें आ जाते हैं। इसके कारण बहुत से बच्चे स्कूल जाना बंद कर चुके हैं। यहाँ खाली पानी की ही समस्या नहीं है, ऐसी बहुत सी समस्याएँ हैं। शांतिनगर लगभग ८०० से ८५० कुटुम्बों की बस्ती है, लेकिन शौचालय खाली ३ बने हैं जिसमें चालू खाली २ शौचालय है। १ शौचालय पिछले कई सालो से बंद पड़ा है । शौचालय की संख्या कम होने की वजह से कई लोगों को शौच के लिए खाड़ी में जाना पड़ता है। खाड़ी में जाने के लिए महिलाओं को बहुत तकलीफ़ उठानी पड़ती है।
सड़कें भी कच्ची हैं, जहाँ चलना काफी मुश्किल है। बारिश के समय सड़कों पर भारी मात्रा में पानी इकट्ठा हो जाता है। सड़कें मानो दिखाई ही नहीं देती हैं। सड़कों पर पानी जमा हो जाने के कारण बहुत सी बीमारियाँ जन्म लेती हैं लेकिन इस बस्ती में कोई भी सरकारी अस्पताल की व्यवस्था नहीं है और प्राइवेट अस्पताल भी नजदीक नहीं है। अगर उन्हें कोई बड़ी बीमारी का इलाज करवाना हो तो उन्हें शेरिंग ऑटो करके कुछ पैसे खर्च करना पड़ता है। छोटे-छोटे क्लिनिक हैं, जहाँ सर्दी, खासी, बुखार, आदि का इलाज किया जाता है। इन्हीं समस्याओं के बीच एक बड़ी समस्या बेरोजगारी भी है। बेगारी काम और दिहाड़ी संबधित काम पुरुषों को रोज नहीं मिलते हैं जिससे उन्हें घर चलाने में तकलीफ का सामना करना पड़ता है। इससे भी ज़्यादा तकलीफ तो महिलाओं को उठानी पड़ती है जो घर का काम करती हैं व घर पर माल बनाने का या कंपनियों में भी काम करती हैं। उन्हें पुरुषों के मुकाबले कम तनख्वाह दी जाती है। रोजमर्रा की ज़िंदगी में अपनी और अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने में उनका जीवन खत्म हो जाता है। इस प्रकार गरीब बस्तियों की आवाज़ लोगों को सुनाई नहीं देती है।
इन्हीं समस्याओं के बीच अभी कोरोना नाम की एक वैश्विक बीमारी ने इस देश में तबाही मचा रखी है। इसकी रोकथाम के लिए सरकार कदम उठा रही है। महाराष्ट्र शासन भी इस आपातकालीन स्थिति में सुधार करने में लगी है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने इस वायरस का लोगों पर प्रभाव ना पड़े, इसके लिए ऎलान किया कि सभी जगह लॉकडाऊन किया जाए। बस, रेलवे, कम्पनी, आदि बंद करने की घोषणा की गई। सब कुछ अचानक बंद होने के कारण जो अंबुजवाड़ी के शांतिनगर बस्ती में रहने वाले लोग हैं, जो (रिक्षा चालक, नाका कामगार, घर कामगार, आदिवासी समाज के लोग, आदि) रोज कमा कर खाने वाले लोग हैं, उनका घर चलाने का रास्ता पूरी तरह से बंद हो गया है। उनके लिए पहले से ही इतनी समस्याएँ थीं जिनमें कोरोना नाम की एक और आपदा आ गई है। शौचालय और पानी न होने की वजह से लोगों के आरोग्य का सबसे बड़ा सवाल सामने आ रहा है । रोजगार न होने की वजह से वे जियेंगे कैसे? ये भी सवाल है ।
ऐसी परिस्थिति में हम युवा संस्था की तरफ से बस्ती में ज़रूरतमंद परिवारों की जीवन-आवश्यक चीज़ों की पूर्ति के लिए उनकी मदद कर रहे हैं । जैसे- जिन लोगों का राशन कार्ड नहीं है, भाड़े पर रहते हैं, उनको राशन पहुँचाना और जिन लोगों को रोज का खाना चाहिए, उनको रोज़ का खाना पहुँचाने की कोशिश युवा संस्था और बस्ती के युवा साथी मिलकर कर रहे हैं । बस्ती के सभी ज़रूरतमंद लोगों तक राशन पहुँचाने के लिए हमने बस्ती के युवाओं को भी जोड़ा । शांतिनगर ८०० — ८५० परिवारों की बस्ती है। अभी तक हम लगभग २८० परिवारों को राशन की सेवा देने में सफल रहे हैं जिस वजह से कोरोना के ख़िलाफ़ इस लड़ाई को लड़ने में थोड़ी राहत मिली है । सभी ज़रूरतमंद परिवारों को मदद मिले और कोई भूखे पेट न सोने जाए, इसलिए युवा संस्था लगातार कोशिश कर रही है ।
युवा के प्रामाणिक काम से बस्ती के लोगों का हम पर विश्वास बढ़ रहा है। बस्ती के लोग भूख से भी लड़ रहे हैं और एक साथ मिलकर कोरोना से भी।
बैजूनाथ गुप्ता
कृतिका मिश्रा द्वारा समीक्षित