क्या होता है जब विस्थापन किसी के जीवन में हर रोज की घटना बन जाये ! ऐसे में छोटे बच्चे अपने खेलने के मैदान की बजाय खुद के लिए ए़क सुरक्षित ठिकाने को तरजीह देने लगते हैं. नवी मुंबई के ए़क इलाके की अपने कुछ ऐसे ही अनुभव हमसे बच्चों ने साझा की.
कुछ साल पहले पनवेल स्थित खांडा कॉलोनी के माता रमाई नगर इलाके में स्थानीय प्रशासन द्वारा बड़े पैमाने पर अनधिकृत बस्तियां तोड़ी गई. इन टूटे हुए घरों में चौथी क्लास में पढ़ने वाली ज्योती का भी घर था. ज्योति अब अपना अधिकांश समय ए़क ऐसा खेल खेलने में जुटी रहती है जो उसने पहले कभी नहीं खेला था. वह अपने आसपास बिखरी हुई लकड़ियों तथा अन्य सामग्री इकट्ठा कर ए़क छोटा-सा घर बनाती है. जो उसे हुबहू उसके टूटे हुए घर की तरह लगता है.
इस बारे में वह बताती है कि हमने अपने आसपास लोगों को इस तरह का बड़ा घर बनाते देखा है. घर बनाने की सारी प्रक्रिया उसने ए़क-ए़क कर विस्तार से समझायी. सबसे पहले ए़क गड्ढा खोदते हैं. उसमें लकड़ी के सहारे ए़क ढांचा तैयार किया जता है. उसे धागे से बांधते हैं फिर ऊपर कागज का छज्जा बनाते हैं.
खेल के लिए दूसरा जुगाडू तरीका
ज्योती और उसकी बहन ने मिलकर फिर से ए़क कामचलाऊ घर बनाया है. वे इसी घर में खेलती और सोती हैं. साथ ही वे दोनों यहीं खाना भी खाती हैं. यह उनके खेल का ए़क बेहतरीन स्थान है. लेकिन उन्हें डर है कि वे यहां कुछ समय तक ही रह पाएंगी. ए़क दिन सरकारी कर्मचारी आयेंगे और सबकुछ तोड़कर गिरा देंगे. वह उदास होकर बताती है कि पांच महीने पहले भी हमने ए़क ऐसा ही घर बनाया था जिसे सरकार ने ढहा दिया.
विस्थापन का अनुभव
युवा द्वारा हाल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक़ नवी मुंबई में वर्ष 2015 से जबरन विस्थापन की संख्या में तेजी आई है. 1990 या उससे पहले की बसी हुई कई बस्तियों में पहली बार हाल ही के दिनों में तोडक कार्रवाई की गई. शहरों के सौंदर्यीकरण, बड़ी-बड़ी परियोजनाओं, रेलवे कार्य तथा मेट्रो रेल के नाम पर हाल ही के दिनों में कई बस्तियां ढहाई गई हैं. माता रमाई नगर शहरी औद्योगिक विकास निगम(सिडको) की जमीन पर बसी है. इस बस्ती में पनवेल महानगरपालिका ने तोडक कारवाई किया.
बस्ती में लगातार होने वाली तोड़क कारवाई की वजह से छोटे बच्चे भी धीरे-धीरे इसके आदी हो जाते हैं. ज्योति की चाची सुनीता ने कहा कि कई बार हम काम पर चले जाते हैं, उस दौरान तोडक कारवाई की जाती है. हमारे बच्चे घर का जरुरी सामान बाहर निकालकर घर खाली कर देते हैं. मालिक से इस बारे में छुट्टी मांगने पर वो नाराज हो जाते हैं. ऐसे ही ए़क वाकये को याद करते हुए ज्योति की दादी ने बताया कि एक बार महानगरपालिका द्वारा बस्ती में विस्थापन की कारवाई की जा रही थी. ज्योती बुलडोजर के आसपास दौड रही थी. अचानक उसकी उँगलियों में चोट लग गई. जब मैं उसे वहां से उठाने दौडी तो महानगरपालिका के कर्मचारियों ने मुझे कई अपशब्द बोले.
लगातार होनेवाली इस प्रकार की कारवाई की वजह से बच्चों की पढाई में भी बांधा पहुंचती है. कई बार इन बच्चों की किताबें और स्कूल यूनिफॉर्म भी इसी आपाधापी में गुम हो जाती है. सुनीता ने बताया कि ए़क बार हमने अपनी समस्याओं को लेकर बच्चों के साथ स्थानीय विधायक के घर के सामने पूरी रात धरना दिया लेकिन वे हमसे मिलने तक नहीं आये. माता रमाई नगर रेल पटरी के किनारे बसी हुई बस्ती है. जब स्थानीय प्रशासन द्वारा निष्कासन किया जा रहा था तब पुलिस ने कई पुरुषों को बंदी बना लिया था. इस बारे में अपना अनुभव बताते हुए ज्योती की बहन पूजा नी कहा कि यह सब देखकर मैं बहुत डर गई थी.
आशियाने से दूर एक नए आशियाने की तलाश
कुछ दिन बाद हम ज्योती से दोबारा मिले, वह अपनी बहन के साथ स्कूल से शाम को घर लौट रही थी. खांडा कॉलोनी स्थित उसके अस्थायी नए घर में हम उसका इंतज़ार कर रहे थे. इस दौरान हमने उसकी मां, चाची और दादी से बातचीत की. ए़क छोटे से कमरे में वे सभी साथ ही रहती हैं. इस नए घर में रहने के बारे में उन्होंने बताया कि उनका पुराना घर बरसात की वजह से उजड़ गया. बगल में ही ए़क बिल्डर ने निर्माण कार्य शुरू किया. उसने पानी का धार हमारे घर की ओर मोड दिया. इस वजह से सारा पानी घर में घुसने लगा. कई बार घर के आसपास सर्प और विषैले जीव भी दिखाई दिए थे. साथ ही बरसाती पानी की वजह से बच्चे भी अधिकांश समय बीमार ही रहते थे. इसीलिए हमने वह घर छोडने का निर्णय लिया.
ज्योती के मौजूदा घर में हल्का प्लास्टर चढ़ा हुआ है. दीवारों में काफी दरारें हैं. इन सबके बावजूद यहां बिजली की सुविधा है. जो उसके पुराने घर में नहीं था. ज्योति की मां सुनीता ने कहा, ‘पहले हमारा रमाई नगर में पक्का घर था. जिसे प्रशासन ने 2002 में तोड़ दिया. शुरुवात में वहां 10–12 घर थे. लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़कर 150 से 200 हो गई.’
रत्ना ने बताया कि उनके परिवार की अधिकतर आय इलाज में खर्च हो जाती है. 11 लोगों के लिए ए़क छोटे से घर में गुजारा करना कठिन है. हम चाहते हैं कि हमरे बच्चे पढ़ लिखकर ए़क अच्छी जिंदगी जिये और रहने लायक घर बनाये.
स्कूल चले हम
ज्योति का स्कूल उसके घर से ४ किमी दूर है. वह और उसकी बहन अपने पिता के साथ साईकिल पर बैठकर स्कूल जाती हैं. सड़क पर मोटर गाड़ियों की वजह से कई बार उन्हें स्कूल जाने में डर भी लगता है. लेकिन उनके परिवार के पास इसका कोई विकल्प नहीं है. स्कूल से लौटने के बाद यहां के अधिकतर बच्चे पड़ोस से पानी भरने में जुट जाते हैं. इसके बाद स्कूल का होमवर्क पूरा करते हैं. ज्योति ने उदास होकर बताया कि उसे माता रमाई नगर के अपने दोस्तों की बड़ी याद आती है. इनमें से कई दोस्त बस्ती टूटने के बाद अपने गांव लौट गए. कुछ अब भी वहीँ रहते हैं. कई दोस्त इस बस्ती में आये हैं जिनके साथ में खो-खो खेलती हूं.
बार-बार विस्थापन का दर्द
ज्योति के परिवार की तरह नवी मुंबई में ऐसे हजारों परिवार हैं जिन्हें हर साल विस्थापन का दर्द झेलना पड़ता है. बार-बार ठिकाना बदलने की वजह से बच्चोँ की परवरिश पर इसका बुरा असर पड़ता है. साथ ही हर बार नए आशियाने की तलाश करना भी मुश्किल होता है. कई रिपोर्टों में बच्चों का स्कूल छोडना अथवा इससे दूरी बनाने की ए़क बड़ी वजह आए दिन होने वाला विस्थापन भी है.
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Sushil Kumar, Consultant, YUVA