2 भाग श्रृंखला का भाग 1
कोविड जनजागृती अभियान — एक अविस्मरणीय अनुभव
गेल्या ८ महिन्यांपासून आम्ही युवा संस्था म्हणून युनिसेफ या संस्थेच्या सहकार्याने कोविड -१९ बाबत जनजागृती करण्यासाठी, नागरिकांना लस मिळण्यासाठी, लसीबाबत असणारे लोकांचे गैरसमज दूर करण्यासाठी एम.एम.आर. मध्ये १४ लोकांच्या टिमसह पूर्णवेळ कार्यरत होतो. खरं तर कोविड आल्यावर काही लोकांनी त्याला खूप गंभीर घेतले, काहींना तो फक्त गंमतीचा विषय वाटला…असे असले तरी कोविडने अनेकांची कुटुंब उद्धवस्त केली आहेत हे आपल्याला नाकारून चालणार नाही.
जसे काम करत गेलो, वेगवेगळ्या वस्त्यांमध्ये फिरलो, टीमच्या लोकांची मत ऐकली तसे वेगवेगळ्या गोष्टी समोर आल्या. माझ्या मनात आजही एक प्रश्न कायम घर करून आहे तो म्हणजे कोविड नेमका काय आहे? कसा आहे? त्याचे धोके काय? आपण कसे सुरक्षित राहू शकतो यासंदर्भात योग्य आणि समतोल जनजागृती करण्यास आपण यशस्वी झालो आहोत का?
आपण दोनच गोष्टी लोकांपर्यंत पोहचविल्या, एक म्हणजे म्हणजे कोविडने काहीच होत नाही आणि दुसरी म्हणजे कोविड खूप घातक आहे, त्याने माणूस मरतोच. एकीकडे ज्यांनी कोविडला बिलकुल गंभीर नाही घेतले आणि काही होत नाही म्हणून जे घाबरले नाहीत त्यांना कोविड होऊन मृत्यूचा सामना करावा लागला तर दुसरीकडे ज्यांनी केवळ मनात भीती घेतली आणि कोविडने माणूस मरतोच ते आजही मानसिक आरोग्य बिघडवून बसले आहेत. गेली ५-६ महिने झाले आमचे टीम मेंबर वेगवेगळ्या समुदायात काम करत असताना समुदायातील वेगवेगळ्या लोकांशी बोलत आहेत, त्यांचे समुपदेशन करत आहेत. काही लोकांनी मनात भीती घेतल्याने ते आजही नीट बोलत नाहीत. त्यांच्या घरच्यांशी बोलण्याचा प्रयत्न केला तेव्हा त्यांनी सांगितले कोविडला त्याने/तिने इतके मनावर घेतले की तेव्हापासून त्याचे/तिचे वागणे, बोलणे, चालणे सर्व बदलले आहे. संवाद कमी झाल्याने त्याच्यात/तिच्यात एकटेपणा वाढला आहे. लॉकडाऊन लावल्याने, बाहेर फिरल्यावर दंड आकारात जात असल्याने आणि व्यवस्था केवळ घरातच बसायचे संगत असल्याने शहरातील झोपडपट्ट्यात राहणाऱ्या लोकांची मोठी घुसमट झाली.
कोविडमुळे जे आर्थिक नुकसान झाले आहे ते भरून काढता येईल, भुखमारी कमी करता येईल पण बिघडलेले मानसिक संतुलन पूर्वपदावर आणण्यासाठी खूप वेळ जातोय. ते पूर्वपदावर येईल की नाही याचीही शाश्वती देता येत नाही म्हणून येणारा काही काळ आपल्याला अजून यावर काम करणे गरजेचे आहे.
या सर्व समस्यांना कमी करण्यासाठी आम्ही युवा संस्थेच्या वतीने गेल्या आठ महिन्यांपासून मुंबई आणि वसई विरार या ठिकाणी ७ हेल्प डेस्क सेट अप केले होते. या हेल्प डेस्कच्या माध्यमातून गेल्या आठ महिन्यात वेगवेगळे उपक्रम राबविले गेले आणि परिणामकारक जनजागृती करण्यात आली. हेल्प डेस्कच्या माध्यमातून लसिकरण करण्यासाठी नागरिकांची ऑनलाईन नोंदणी केली, लस घेण्याबाबत लोकांचे असणारे गैरसमज दूर केले, तसेच लस ही पूर्णपणे सुरक्षित आहे हे नागरिकांना पटवून दिले. वसई विरार आणि पूर्ण मुंबईभर संस्थेच्या वतीने गरजू २०,००० नागरिकांना मोफत एन — ९५ मास्क वाटप करण्यात आले. सरकारमान्य नियमांची पत्रके, वेगवेगळी चर्चासत्रे राबवून नागरिकांना विशेष तज्ञांचा सल्ला देण्याचा प्रयत्न केला गेला. अंगणवाडी सेविका, सफाई कर्मचारी यांना सोबत घेऊन ठिकठिकाणी नागरिकांना कोरोनाचे नियम समजावण्याचा प्रयत्न केला गेला. वॉल पेंटिंग करून महत्त्वपूर्ण संदेश जनतेपर्यंत पोहचविले. विविध जिल्ह्यात ऑटो रिक्षा फिरवून वेगवेगळया समुदायात मायकिंग केले. शासकीय लसीकरण केंदांवर होणारी गर्दी कमी करण्यासाठी शासकीय यंत्रणेला टीमने मदत केली. गर्दीच्या ठिकाणी पथनाट्य करून जनजागृती करण्याचा प्रयत्न केला. मुख बधीर लोकांसाठी वेगवेगळे उपक्रम राबविले. वेगवेगळ्या संस्था संघटनांना सोबत घेऊन वेगवेगळ्या कार्यक्रमांचे आयोजन केले आणि कोविडविषयी जनजागृती केली. शेकडो लोकांना चर्चासत्राच्या माध्यमातून जागृत करून, लाखो लोकांना वैक्सीन देण्याची प्रक्रिया पूर्ण करण्यात आली. हे सर्व काम करताना अनेक अडचणी आल्या, अनुभव आले त्यावर आधारित टीमने काही यशस्वी कहाण्या, त्यांचे स्वताचे अनुभव लिहण्याचा अल्पसा प्रयत्न टीमने केला आहे.
या सर्व यशस्वी कहाण्या आम्ही पहिल्या साखळीमध्ये प्रसिद्ध करणार आहोत. ज्यामध्ये आम्ही कोणत्या समुदायापर्यंत कसे पोहचलो ? तेथील एकंदरीत परिस्थिती काय होती ? तिथे जे आम्ही काम केले त्याला यशाच्या स्वरूपात आम्ही का बघतो ? या सर्व गोष्टी नमूद करण्याचा प्रयत्न केला आहे. दुसऱ्या टप्प्यात आम्ही टीम सदस्यांना आलेले अनुभव जे त्यांनी लिहले आहेत त्याला प्रसिद्ध करणार आहोत, ज्यामध्ये ६ ते ८ महिन्यांच्या कालावधीत टीमला टीम म्हणून करता आलेले काम, समुदायात केलेले काम आणि त्यांना आलेली आव्हाने, त्यातून त्यांनी काढलेले मार्ग या सर्व गोष्टींचा सामावेश आहे.
नामदेव गुलदगड, युवा संस्था
सैफुल का अनुभव: युवा के साथ का सफ़र
मेरा नाम शेख सैफुल हसन है और मै न्यू भाब्रेकरनगर, मालवणी मालाड गेट नंबर ०८ में रहता हु | मै युवा संस्था और यूनिसेफ के कोविड १९ जनजागृती के प्रोसेस में जुडा था | हमने कोविड १९ जागरूकता के उपर काम किया है, जैसे की हमने वैकसिनेशन हेल्प डेस्क लगाये, उस हेल्प डेस्क के तहत हमने बस्ती के लोगो को वैक्सीन लेने के लिए दस्तावेज क्या लगेंगे और उनको आरोग्य सेतु एप, कोविन पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करके, उनका स्लॉट बुक करने में मदद किये, रिफरेन्स आईडी नंबर दिए और बस्ती के नियर वैक्सीनेशन सेण्टर पर वैक्सीन लेने को जाने के लिए मार्गदर्शन किया | उसी के साथ में कोविड -१९ ऊपर कम्युनिटी के लोगो के साथ जनजागृती चर्चासत्र भी लिए |
हमने राठोडी मार्केट के गोपाल होटल के पास कोविड रजिस्ट्रेशन कैंप लगाये थे, वहा के लोगो का रेस्पोंस अच्छा आया | कुछ लोग बिना मास्क के आये थे| जो बिना मास्क के आये थे, हमने उन्हें जागरूक किया मास्क लगाने के लिए कहा उसके बाद वो मास्क लगाकर आये और रजिस्ट्रेशन करवाए | कुछ लोग रजिस्ट्रेशन के लिए लाइन नही लगा रहे थे | लोग ज्यादा होने से सब लोग एक साथ जमा हो गए थे, तो हमने सभी को डिस्टेंस मेन्टेन करके लाइन लगवाए और उनका रजिस्ट्रेशन कोविड पोर्टल पर किये | काफी अच्छा रेस्पोंस आया | कैंप के लास्ट में बस्ती के एक लीडर आये और उन्होंने हमें बोले आप हमारे एरिया में भी रजिस्ट्रेशन कैंप लगाओ और दुसरे दिन हम उनके पहचान से उनके एरिया अम्बावाडी एरिया में कोविड १९ वैक्स्सीनेशन कैंप लगाये | बस्ती के लोग ज्यादा मजदुर और स्वच्छता कर्मचारी है और उन लोगो के पास एंड्राइड फ़ोन नही था | उनको पता नही था की, कोविड १९ वैक्सीन कैसे लिया जाता है तभी हमने उन्हें समझाया आप कोई भी एक दस्तावेज और एक मोबाइल नंबर पर ४ लोगो का रजिस्ट्रेशन होगा ऐसी जानकारी दिए | उन्हें जो सीनियर सिटीजन थे उनका कोविन पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करके वैक्सीन लेने के लिए डायरेक्ट वैक्सीनेशन सेंटर पर भेजे, उन्हें मार्गदर्शन किये और उनको वैक्सीन भी मिला |
हम खारोड़ी कम्युनिटी में कोविड १९ अवेयरनेस स्टीकर लगाने गए थे, तो वहा के कुछ लोगो से बात किये | वैक्सीनेशन रजिस्टर कैंप और अवेयरनेस चर्चा के सन्दर्भ में और उन्होंने हा बोले और हमें कैंप लगाने के लिए जगह दिए | हमारे साथ में मोबिलाइजेशन भी किए | हमारी बहोत मदद किये| इस कैंप के जरिये हमारा खारोड़ी कम्युनिटी के लीडर के साथ अच्छा पहचान भी हुआ |
युवा संस्था और यूनिसेफ के अंतर्गत हमने मालवणी कम्युनिटी के २२० लोगो को बस से विले पार्ले शिरोडकर हॉस्पिटल में ले जाकर वैक्सीन दिलाये और हमें मार्गदर्शन और हमारी मदद दरक्षा दीदी और बस्ती के लीडर सना ताई ने किये |
उसके बाद हमने युवा और यूनिसेफ के तरफ मास्क भी डिस्ट्रीब्यूट किये मालवणी कम्युनिटी, ६ नंबर वैक्सीन सेण्टर, वैक्सीन सेण्टर और उन्हें मार्गदर्शन किए |
हम मालवणी बस्ती के अलग अलग सोसाइटी में साधना सोसाइटी, शिवगर्जना सोसायटी, अम्बवाडी, छाया, मिलन अम्बोज्वाडी, न्यू भाब्रेकर नगर, मालवणी ८ नंबर, ७ नंबर, ६नंबर ऐसे अलग अलग सोसाइटी और एरिया में जाकर यूथ, महिला और बस्ती के सोसाइटी के लीडर के साथ में कोविड १९ जनजागृति किये | चर्चा सत्र और हेल्प डेस्क, डोर टू डोर पम्पलेट डिस्ट्रीब्यूट किया | रिक्शा में माईक के और बैनर के जरिये लोगो को अवेयरनेस किये | नुक्कड़ नाटक के माध्यम से हम कम्युनिटी में लोगो को जागरुक किये | स्पॉट देखकर वाल पेंटिंग किये | ऐसे अलग अलग माध्यमो से मलवानी कम्युनिटी में कोविड १९ जनजागृति किया गया .
चुनौतियाँ
• शुरू शुरू में काम करते वक़्त बहोत दिक्कत आ रही थी क्युकी लोग वैक्सीन को लेकर बहोत डरे हुए थे,बारिश में हम जब काम कर रहे थे बस्तियों में डोर टू डोर मोबिलाइजेशन और वैक्सीनेशन अवेयरनेस करने गए थे तो उस समय कुछ लोग हमसे सवाल कर रहे थे आप कहा से आये हो? पोलिटिकल पार्टी से आये हो ? अपना आईडी कार्ड दिखाओ? हमने उनको युवा संस्था के बारे में जानकारी दिए और उनको अच्छे हमारे काम के बारे में समझाए और आप वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन करने या कुछ इनफार्मेशन चाहिए तो हम आपको गाइड करेंगे और रजिस्ट्रेशन करने में कुछ दिक्कते आ रही है, तो हम आपको मार्गदर्शन करेंगे | आपको कोई जबरदस्ती नही इस तरीके से कम्यूनिकेट करके हम सिचुएशन को सँभालते थे | हम नए नए थे बस्ती में तो लोग जल्दी हमारे उपर बिश्वास नही करते थे | हमें अपना डिटेल्स देने में डरते थे फिर धीरे धीरे हमने उनके साथ में अच्छा कांटेक्ट बनाया फिर बाद में काम करने में आसानी हुई.
कुछ सबक
• यह काम मेरे लिए नया था, इसके पहले मैंने कम्युनिटी में काम नही किया था | लेकिन युवा में जुड़ने के बाद बस्ती में काम कैसे किया जाता है, उसका जानकारी मिली और काफी अच्छा एक्सपीरियंस मिला | नयी नयी चीजे सिखने को मिला, लोगो के साथ में कम्युनिकेशन कैसे करना है? उनके समस्या को जानकर उनको मार्गदर्शन करना और मोबिलाइजेशन करना, साथ डाटा एंट्री, रिपोर्टिंग यह सभी चीजे करने को मिला | अच्छा लर्निंग मिला इस प्रोसेस के अंतर्गत काम करते वक़्त, चैलेंजेस तो थे ही लेकिन उसमे भी लर्निंग था |
• बस्ती में वहा के लोगो के साथ में एक अच्छा बॉन्डिंग हुआ है | उन्हें भी हमारा काम बहोत अच्छा लगा |
- बस्ती के बहोत लोगो को हमारे वर्क के जरिये अवेयर हुए हमारे मार्गदर्शन पेउन्होंने वैक्सीन भी लिए | उनको हमारा काम बहोत पसंद आया, वो चाहते है की इस तरीके का काम उनके बस्ती में हो |
Sheikh Saiful Hasan, YUVA
मनीषा: लोगों की सेवा करने का सफ़र
नमस्कार मेरा नाम मनीषा गुप्ता, मैं युवा की नालासोपारा विभाग से कंसलटेंट के तौर पर काम करती हूँ। युवा के साथ का मेरा अनुभव आगे विस्तार में ……
कुछ ऐसी कहानी है मेरी और युवा की। वैसे तो काम करने से डरती हूँ मैं मगर लोगों की मदद और समाजसेवा में मेरा दिल कुछ ज्यादा ही लगता है। एक अलग ही सुकून मेरे दिल को मिलता है, जब मेरे मदद से किसी के चेहरे पर मुस्कान आती है।
शुरुवात के दिनों में, मैं युवा के साथ वॉलंटियर्स के तौर पर काम करती थी। मुझे आज भी याद है, वो शुरुवात के लॉकडाउन के दिन जब घर से बाहर निकलना मतलब जंग लड़ने के बराबर था। घर की लाडली हूँ तो घरवाले मुझको लेकर कुछ ज्यादा ही सतर्क रहते है, उन दिनों युवा के तरफ से कई समाज सेवा का काम चालू था। सच में अगर दिल की बात कहु मुझे बड़ा अच्छा लगता था लोगों की मदद करने में। और रिक्वेस्ट करने पर घरवाले भी मान जाया करते थे। फिर क्या मैं नन्हे पंख लेकर निकल पड़ी अपने युवा के साथ, अब मेरे सामने खुला आसमान था।
शुरुवात में, मैं युवा के साथ वोलंटियर के तौर पर काम किया करती थी। जैसे की राशन बाटना और वैक्सीन रेजिस्ट्रेशन, कुछ दिनों वोलंटरी लेवल पर काम करने के बाद मुझे एक सुनहरा मौका मिला जिससे की मैं लोगो के साथ-साथ अपना भी भला कर सकती थी, याने की अब मैं अपना घर भी चला सकती थी। शुरुवाती दिनों में बोहोत सी उलझने और मुसीबतों का सामना करना पड़ा मगर वो “ मंजिल ही क्या जो आसानी से मिल जाये।” शुरुवाती दिनों में काम थोड़ा मुश्किल भरा था क्योंकि लोगों वैक्सीन के प्रति जागरूक करने के बाद डाटा के तौर पर हमें उनका मोबाइल नंबर, आधार कार्ड नंबर लेना जरूरी होता है तो इस बात कर कई लोग हम पर उंगलिया भी उठा दिया करते थे। और कई ऐसे मन दुखाने वाले सवाल काम के प्रति हमारा मनोबल तोड़ दिया करते थे।
पहली बार हमने हेल्प डेस्क की प्रक्रिया भीमनगर से शुरू की। यह इलाका नालासोपारा का घनी आबादी वाला इलाका है, इस इलाके में सबसे चैलेंजिंग टास्क ये था की लोगो को वैक्सीन के प्रति बताना। इस इलाके में बात इतनी बिगड़ी हुई थी की लोग वैक्सीन का नाम सुनकर हमसे दूर चले जाया करते थे। तो ये बेहदही मुश्किल था उनको वैक्सीन के बारे में बता पाना। हमारे कोशिशों में रंग आई। फिर क्या “लोग जुड़ते गए … कारवाँ बनता गया”। इसी तरह अम्बवाड़ी, तुलिंज रोड, अलकापुरी और डॉनलाइन एक के बाद एक जगह बदल- बदल कर हमारा जागरूकता अभियान जारी रहा।
सिर्फ वैक्सीन रजिस्ट्रेशन ही काफी नही था। लोगों को इसके फायदे और नुकसान दोनों के तरफ ध्यान केंद्रित करना भी ज़रूरी था। तो इसके लिए हमने सेशन्स लेना शुरू किया। महिला बचत गट, आंगनवाड़ी सेविका तथा वसई विरार शहर महानगरपालिका के सफाई कर्मचारियों के साथ कई सेशन्स किए। हमारे सेशन्स का मुख्य उद्देश्य था की लोगो को ये बताना की हमारी थोड़ी सी लापरवाही कितनी गंभीर है। देश और दुनिया के खबरों के साथ हमने लोगों से आगाह किया , की वो अपना और अपने घरवालों का खयाल रखें और अपने साथ — साथ देश को बचाए।
जागरूकता अभियान, वैक्सीन रेजिस्ट्रेशन इसके अलावा एक और हमने मुख्य काम किया, जो की मास्क का बाटना। जागरूकता अभियान के साथ आते-जाते वक़्त जो ऐसे लोग हमे दिखते जिनके पास मास्क नही है अथवा है पर बुरे हालात में है, ऐसे लोगों को मास्क दे दिया करते थे।
युवा में जुड़ने के बाद से मैने और मेरी सहयोगी पूजा ने मिलकर अब तक 20 हजार लोगों का वैक्सीन रजिस्ट्रेशन तथा दिशा दिखाई, करीब हजारों लोगों को मास्क बाटे, 15 से ज्यादा सेशन्स ऐसे लोगो के साथ लिए जिनको करोना की गंभीरता का पता ही नही था।
वक़्त के साथ साथ सबकुछ ठीक सा हो गया। अब लोग हमें निजी तौर धन्यवाद देते। एक बार तो दिल भर आया जब एक काका ने मुझे बिस्किट्स खिलाये बदले में मैने बस उनका वैक्सीन का रेजिस्ट्रेशन कर के नजदीकी वैक्सीन सेन्टर से वैक्सीन लगवाया था। पता नही उनको इसमे क्या दिख गया जो उनका ये मेरे प्रति इतना प्यार देखते ही नही बन रहा था। वो मुझे अपने बच्ची जैसे सहला रहे थे। बेटा-बेटा कहकर पुकार रहे थे उनके ये शब्द सुनकर एक अलग ही सुकून मिल रहा था। आज भी वो वाकया याद कर दिल भर आता है।
Manisha Gupta, YUVA
गुलप्शा: मेरी जिंदगी की मोड़
मेरा नाम गुलपशा शैख हैं, मैं मालाड मालवनी के राठौड़ी बस्ती में रहती हूं ! में ११ वी एंड १२ वी एसएनडीटी कॉलेज से कि हु, जब मैं S. Y. B. COM में थी तब से में युवा के प्रोसेस में जॉइंट हुई । उसके बाद कोरोना आया और हमारे देश में लॉकडाउन लगा| हम सब बाहर नही निकलते थे, घरों में ही रहते थे | बहुत से मरीज कोरोना वायरस से साग्रमित हुए और कुछ मरीज खतम भी हुए और फिर हमारे देश के वैज्ञानिकों ने कोरोना से बचने के लिए वैक्सिन बनाए | | लेकिन लोगों के मन में वैक्सीन को लेके डर था | लोगो को ये लग रहा था की, वैक्सिन के कारण लोग खतम हों रहे हैं। उसके डर से वैक्सिन बहुत कम लोग ले रहे थे।
यहीं समस्या को लेकर हमारी युवा ने सोचे की, क्यो ना हम लोगो को समझाए वैक्सीन को लेके की, वैक्सीन का क्या महत्व हैं | युवा ने एक टीम तयार किए, वैसे ही मुंबई के मालाड मालवनी एरिया से गुलप्शा शेख एंड सैफुल शैख एक टीम करके कैंप के लिए अलग अलग बस्तियों में जाते थे | तो हमें अंदर से डर लगता था कि, क्या पता वहा पे कैसे लोग मिलेंगे | वैक्सिन के लिए मानेंगे या नहीं | जब हमने राठौड़ी के मार्केट में पहेला कैम्प लगाए तो वहां पे बहुत से लोगों का पॉजिटिव रिस्पॉन्स था और कुछ लोगो का नेगेटिव रिस्पॉन्स था | उस कैम्प में हमसे बहुत से प्रश्न भी किए गए थे। हमें वैक्सीन से कुछ होगा तो नहीं? और हमें वैक्सीन कब तक मिलेगा? हमने सभी सवालों का जवाब दिए। फिर हम दूसरे दिन न्यू अंबेवाड़ी में कैंप लगाए वहां पे सब की सोच वैक्सीन को लेके बहुत अच्छी थी लेकीन वहा के लोगो को वैक्सीन मिल ही नही पा रहा था ।
उन्होंने हमे बताए, वो सुबह के 4 बजे से वैक्सीन सेंटर पे लाइन लगाते थे लेकिन दोपहर के 2 बज जाते थे उनको वैक्सीन नही मिलती थी | वो लोग भीड़ में जाके लाइन लगाते थे लेकिन वो लोगों को फिर भी वैक्सीन नही मिल पाता था | वहां पे बहुत से बुजुर्ग भी थे, जिनको वैक्सिन नही मिलता था | सब को लेके हम वैक्सीन सेंटर पर गए फिर गुलपशा और सैफुल अंदर जाके डॉक्टर से बात किए की, हमारे पास कुछ बुजुर्ग लोग हैं और कुछ अपंग वो लोग रोज आके लाइन लगाते हैं लेकिन उनको वैक्सीन नहीं मिल पा रहा है।
उनके लिए अलग से वैक्सीन काउंट कर के आता हैं, लेकिन वो लोग को लगता नही हैं । ऐसा क्यू? डॉक्टर ने बताए फिर जो हैंडीकैप हैं, उनको हम लगाते हैं | वैक्सीन अगर जनरल के लिए ५० आता हैं तो हैंडीकैप के लिए १० आता हैं | जो भी अपंग आते हैं, उनको हम वैक्सिन लगाते है। रहीं बात बुजुर्ग की उनको कल आप भेज दीजिए हम लगा देगे ऐसा डॉक्टर ने कहा । ऐसे ऐसे कर के हमने नियर सेंटर पे बात किए और ५,६ लोगों को रोज भेजते थे वैक्सिन के लिए । फिर हम एक बस्ती में गए वो बस्ती का नाम श्री समर्थ वहां पे किसी को वैक्सीन नहीं लेना था। हमने जब पूछे आपको वैक्सीन क्यों नही लेनी है। उन सब ने कहां की वैक्सीन से लोग मर रहे हैं, हम भी वैक्सीन लेगे तो मर जाएंगे । फिर हमने वहां पे मौजूद एक आंटी से बात किए उन्होंने वैक्सिन लिया था और उनका भी कहना ये था कि वैक्सीन हमारे लिए सही हैं ।
लेकिन वहा के लोग नहीं सुनते थे। तो हम वहां पे एक सेशन लिए जहाँ जरनल लोग थे | सब को बुलाए सब को इकट्ठा किए | वैक्सीन के बारे में बताए जानकारी दिए। कुछ वीडियो भी दिखाएं फिर जाके वो लोग वैक्सिन को लेके अच्छी सोच लाए । और जाके वैक्सीन लिए। फिर हम अलग अलग जगह जाके सेशन लिए, बच्चों के साथ भी सेशन लिए | उनके साथ हाइजिन के उपर बताएं और जो बड़े लोगो के साथ सेशन लेते थे उनमें से कुछ लोगों का निगेटिव था जिन लोगों का निगेटिव रिस्पॉन्स रहता था उनको हम अच्छे से समझाते थे। और फिर वो लोग भी वैक्सीन के लिए तयार होते थे।
रिक्शा के जरिये से हम जब अवेयरनेस करते थे, हमने ऑटो एक्टिविटी में बहुत अच्छे से किए और मजा भी बहुत आया।
“ सामने मंजिल तो, रास्ता ना मोड़ना”, “ जो मन में हैं वो ख्वाब न तोड़ना,
“ हर कदम पर मिलेगी सफलता हम सबको बस आसमान छूने के लिए जमीन न छोड़ना”, ।
Gulpasha Shaikh, YUVA
दीपाली: मेरा संघर्ष मेरी आशा
गणपत पाटिल नगर गल्ली नंबर ०१ से १४ तक है। यह बस्ती में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोग काफी ज्यादा रहते है।
यह बस्ती बहुत बड़ी और घनी बस्ती है, यहा पे लोग मजदूरी का काम, बेगारी मजदूर, कुटीर उद्योग, नाका कामगार, इत्यादि काम करते हैं। यहां पर युवा और यूनिसेफ की तरफ से हमें वैक्सीनेशन हेल्प डेस्क वॉलिंटियर के तौर पर काम करने को मिला | यहां पर हमने जनजागृति प्रोग्राम किया, जिसमें लोगों को कोविड-19 से जुड़े नियमों का पालन करना, मास्क और सैनिटाइजर का अधिक से अधिक उपयोग करना बताया| अपने हाथों को बार-बार धोने का आग्रह किया। वैक्सीनेशन हेल्प डेस्क अलग-अलग गलियों में जाकर लगाया ; जिसमें हमने लोगों का वैक्सीनेशन रजिस्ट्रेशन किया और लोगों को वैक्सीन लेने की जानकारी दी। यहां पर लोगों को वैक्सीन की पूरी जानकारी नहीं थी | हम लोगों ने जनजागृति के माध्यम से लोगों को वैक्सीन लगवाने और कोविड-19 से लड़ने के लिए और सुरक्षित रहने के लिए वैक्सीन जरूरी है, यह बताया और लोगों को जागरूक किया जिससे लोगो के ऊपर प्रभाव पडा और लोगों ने वैक्सीन लिया।
बस्तियों में हमने अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग विषय के ऊपर प्रोग्राम लिए और उसका अच्छा प्रभाव बस्ती में देखने को मिला| जैसे कि जनजागृति प्रोग्राम, यूथ काउंसलिंग, केपेसिटी बिल्डिंग, फेथ बेस ऑर्गेनाइजेशन के साथ प्रोग्राम किया।
अलग बस्तियों में, गलियों में मीटिंग लिया| जिसमें यूथ काउंसिल प्रोग्राम किया| 15 से 29 साल के बीच के सभी लोगों ने भाग लिया | हमने कोविड-१९ से जुड़े जानकारी और कोविड-19 में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इसके बारे में जानकारियां दी | वैक्सीन लगवाना सभी के लिए जरूरी है बताया |
लोगों को वैक्सीन लेने का आग्रह किया लोगों का वैक्सीनेशन रजिस्ट्रेशन किया। बस्तियों में फेथ बेस ऑर्गेनाइजेशन महिलाओं के साथ, महिला मंडल के महिलाओं के साथ और महिला बचत गट के महिलाओं के साथ चर्चा की | जिसमें हमारे बस्ती की महिला मंडल की सदस्य केसर ताई झोरे ने सहयोग किया जिसमें 15 से 20 महिलाएं सेशन में जुड़ी और इसका प्रभाव भी पड़ा |
हमने आंगनवाड़ी टीचर के साथ मीटिंग ली और उनके साथ एक्टिविटी की और उनको भी कोविड — १९ से जुड़े नियमों का पालन करना और ज्यादा से ज्यादा हाथों को धोना, हैंड सैनिटाइजर का उपयोग करना और मास्क का उपयोग करना इत्यादि के बारे में जानकारी दी। जिसमें 15 से 16 आंगनवाडी टीचर सेशन में जुड़ी थी| हमने लोगों को रजिस्ट्रेशन को लेकर जानकारी दी और जिसका भी रजिस्ट्रेशन बाकी है, उन्हें रजिस्ट्रेशन करवाने और वैक्सीन लगवाने की सलाह दी। अपने एरिया के पोस्टमैन के साथ प्रोग्राम लिया जिसमें 15 से 30 लोग जुड़े थे | जिसमें पोस्ट मैंने पोस्ट से जुड़ी कई सारी जानकारी दी और कोविड-19 से जुड़ी बातों का ध्यान रखने को कहा इस प्रोग्राम में हमने वीडियो स्क्रीनिंग भी किया जिसमें कोविड-19 से जुड़ी एक वीडियो दिखाई |
थैंक यू युवा और यूनिसेफ को क्यूँकी हमे वोलियंटर के तौर पर काम करने का मौका दिया | लोगों से हमने बहुत सारी चीजें सीखी | हमारी कम्युनिकेशन स्किल बड़ी और हमें लोगों के विचार और उनके हिसाब से क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए उसके बारे में पता चला | हमें बहुत सारी चीजें हमारे समन्वयक से सिखने को मिली | यह काम का बहुत ही अच्छा अनुभव रहा।
Dipali, YUVA