वर्ष 1948। दुनिया अभी-अभी विश्वयुद्ध की चपेट से बाहर आया था। इस युद्ध ने एक मनुष्य के साथ हो सकने वाले सभी विभत्स कृत्यों को देखा था। बहुत क़रीब से। मृत्यु-दुष्कृत्य-ग़ुलामी-गैस चेम्बर और ना जाने क्या क्या। इसके बाद 10 दिसम्बर को मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के रूप में हम सब को एक ऐसी ताक़त मिली जो उससे पहले कभी नहीं मिली थी। मानव को मानव होने के लिए आवश्यक सुरक्षा, मानव जीवन व्यतीत करने के लिए आवश्यक अवसर और ख़ुशहाल जीवन जीने के लिए आवश्यक सुविधाएँ इस घोषणा की आधार थी। मानव अधिकार। आज जब शहरी विषमता के सवाल हम लोगों के सामने मानव अधिकारों के सवाल खड़े करता है तो बहुत आवश्यक हो जाता है इस घोषणा में मौजूद 30 अधिकारों को फिर से दोहराना। फिर वो सवाल आवास का हो, जीविका का, भोजन का, स्वास्थ्य का या शारीरिक सुरक्षा का। हर सवाल के लिए बहुत ज़रूरी है कि एक बार मानव अधिकार के परिपेक्ष में उनके उत्तर ढूँढे जाए। जिस तरह से आवास के अधिकार का जब ज़बरन बेदख़ली के रूप में उल्लंघन होता है तो उसका सबसे महत्वपूर्ण समाधान इसी घोषणा के अनुच्छेद 25 में बसा हुआ है जो सभी मनुष्यों को आवास, भोजन, वस्त्र, स्वास्थ्य तथा जीविका का अधिकार प्रदान करती है। इसी क्रम में आवास का अधिकार सुनिस्चित करने के लिए हम समुदायों में इसकी अलख जगाने के लिए इन अधिकारों और एक समाज के रूप में अपने कर्तव्यों को समझते हुए अपने घर की रक्षा कैसे की जाए इसके लिए क्षमता विकास सत्र का आयोजन करते हैं।
ज़बरन बेदख़ली के विरुद्ध संघर्ष को तेज करने के लिए समुदाय में रह रहे आम लोगों का क्षमता विकास ज़रूरी है। ये क्षमता विकास किसी द्विय शक्ति का उनके अंदर डालना नहीं है बल्कि लोगों के अनुभव, उनकी समझ और उन्हें संवैधानिक अधिकारों तथा अन्तर्राष्ट्रीय क़ानूनों के साथ समन्वय करवाना है। ये क्षमता विकास जन आंदोलनों के द्वारा भी किया जा सकता है और समुदाय के अंदर छोटे-छोटे समुदायों के साथ प्रशिक्षण सत्र लगा के भीकर सकते है। हम दोनों को आवश्यक समझते हैं, लेकिन जब समूह को एक सत्र के माध्यम से बातचीत कर उनकी क्षमता विकास की जाती है तो यह अधिक प्रभावी भी है और आसान भी।
इसी क्रम में ‘ज़बरन बेदख़ली के विरुद्ध सहायता इकाई, भारत देश के अलग अलग हिस्सों में ऐसे प्रशिक्षण सत्र आयोजित करती है जिसमें बस्तीवासी, वक़ील, पत्रकार, विद्यार्थी और शहर में इन्हीं मुद्दों पर काम कर रहे अभ्यर्थियों का ज़बरन बेदख़ली के विरुद्ध संघर्ष को आयोजित करने हेतु क्षमता विकास करने का प्रयास करती है। इंदौर, दिल्ली, मुंबई, नवी मुंबई, गुवाहाटी, और पटना की बस्तियों में ये सत्र आयोजित किए गये हैं। ये सत्र घर के अधिकार, बस्ती का विकास, संवैधानिक अधिकार, अन्तर्राष्ट्रीय क़ानून तथा अदालत के आदेशों को बस्तीवासियों के अनुभव के साथ जुड़े हुए होते हैं, जिसमें लोगों के प्रश्न तथा उनकी समझ को भी साझा किया जाता है।
ऐसे ही सत्र ओड़िशा के चार शहरों ‘भुवनेश्वर, ब्रह्मपर, राउरकेला, तथा ढेंकनाल में ओड़िशा बस्ती संघर्ष समिति के साथ मिलकर आयोजित किए गए।
भुवनेश्वर
24 नवम्बर को भुवनेश्वर के ‘नेहरु युवा संस्थान’ में क़रीब 65 बस्तिवासियों, पथ-विक्रेताओं तथा वकीलों के साथ यह सत्र लिया गया। इस सत्र के अंदर मुख्य चर्चा शहर में ‘स्मार्ट सिटी’ और हॉकी विश्व कप के आयोजन के चलते हुए पथ विक्रेताओं के अंधाधुन बेदख़ली और बस्तिवासियों को रेल्वे और नगर निगम के लगातार मिल रहे नोटिस को लेकर था। लोगों का कहना था कि जिस तरह से पिछले कुछ समय में विकास और सुंदरता के नाम पर लोगों को हटाया गया है ऐसा लगने लगा है कि शहर हमारी वजह से गंदा दिखता है। बार-बार हमें ये याद दिलाया जाता है कि हम लोग अवैद्य हैं, अतिक्रमणकारी हैं अगर ऐसा है तो हमारे पास ये सरकारी काग़ज़ कैसे आएँ? ये सरकार को ज़मीन की अचानक से याद क्यों आती है? लोगों को ऐसे में नोटिस को ध्यान से पढ़ना, नोटिस का जवाब देना और नोटिस में आवश्यक तत्वों (जैसे- ज़मीन का मालिकाना हक़, ज़मीन पर प्रस्तावित सार्वजनिक हित का प्रोजेक्ट, पुनर्वास तथा मुआवज़ा का प्रावधान आदि) के बारे में बताया गया। यदि नोटिस में आवश्यक बातें नहीं हैं तो कैसे उसके ख़िलाफ़ अपील कर सकते हैं और सबसे आवश्यक बिना अदालत जाए भी कैसे लड़ाई खड़ी की जा सकती है। इन सभी मुद्दों पर चर्चा हुई।
ब्रह्मपुर
भुवनेश्वर से क़रीब 60 किमी दूर बसा ब्रह्मपुर ओड़िशा के गंजम जिले का एक नगर निगम है। अपनी हर गली में मंदिर के लिए विख्यात इस शहर में हमने सत्र भी एक मंदिर में ही रखा। 25 नवम्बर को सुबुधी शिव मंदिर में आयोजित सत्र में 100 से भी अधिक लोग पहुँचे। जब उनसे कहा गया कि ये सत्र छोटे समूह में होना चाहिए तो उन्होंने कहा हमारी लड़ाई है, हमें समझना है, अपना अनुभव साझा करना है, और सबसे बड़ी बात इस बहुत बड़े समूह का हिस्सा बनना है। लोगों को हिंदी उतने अच्छे से नहीं आती, समझ तो लेते हैं पर बोल बिलकुल भी नहीं पाते। इसके बावजूद क़रीब चार घंटे चले सत्र में वो ना एक भी बार उठे और जितना हो सका अपने समझ और अनुभव भी साझा किए। रेल्वे की ज़मीन पर बसी बस्तियों से आए साथियों ने बताया कि कैसे आए दिन उन्हें आकर परेशान किया जाता है और वो भी ये मान कर बैठे थे कि अगर सरकार ने बोला तो उन्हें यह जगह ख़ाली करनी होगी। संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रस्तावित दिशानिर्देश, तथा संवैधानिक अधिकारों को जब उन्हें बताया गया तो उन्होंने बताया कि कैसे अब तक उन्हें प्रताड़ित किया गया है। लोग इस बात से आश्वस्त दिखे कि अब उनके पास जवाब देने की क्षमता और ज्ञान दोनों है। वो अब बिना नोटिस के किसी भी बेदख़ली को होने नहीं देंगे और यदि ऐसा होता है तो ना सिर्फ़ उसका पुरज़ोर विरोध करेंगे बल्कि क़ानूनी कारवाई भी करेंगे।
राउरकेला
इस शहर के अंदर कई शहर बसते हैं। एक शहर जो बस्ती में है, एक शहर जो दिन-रात उद्योग में कार्यरत है, एक शहर जो स्टील सिटी में मज़े लूटता है, और एक शहर जो नगर निगम की दुकानों में व्यापार देखता है। और भी कई शहर जैसे नाला रोड पर बसी वो बड़ी सी बस्ती जिसे वहाँ रहने वाले लोगों के कारण पाकिस्तान कहते हैं और हाँ ऐसा शहर भी जो रेल्वे की ज़मीन पर बसी असंख्य बस्तियों में रहते हैं। 27 नवम्बर को गुरुद्वारा हॉल में राउरकेला के क़रीब 10 बस्तियों से 70 से अधिक लोग सत्र में शामिल हुए। इसका मुख्य उद्देश्य शहर में बसे कई शहरों को समझना तो था ही साथ ही साथ रेल्वे की ज़मीन पर बसी बड़ी आबादी के भविष्य के बारे में बात करना भी था। लोगों ने यह समझने की कोशिश की कि यदि भविष्य में उनकी बस्ती को ख़तरा आता है तो उसके बदले में क्या प्रावधान हो सकते हैं। उनके साथ विभिन्न आवासीय योजनाओं और पुनर्वास के तरीक़ों को लेकर चर्चा हुई। सभी चार शहरों में हुए सत्रों में राउरकेला का सत्र इसलिए भी बहुत रोचक रहा क्योंकि यहाँ लोगों ने पहली बार बस्ती-आवास-बेदख़ली और पुनर्वास के बारे में समझा। उन्होंने कहा कि हमें लगता था कि शहर के लोग हम लोगों पे उपकार कर रहे हैं कि हमें शहर में रहने दे रहे हैं, हमें पता ही नहीं था कि ये तो हमारा अधिकार है कि हम शहर में रह भी सकते हैं और काम भी कर सकते हैं।
ढेंकनाल
29 नवम्बर को ओड़िशा में झींगकूड़ी पहाड़ियों में बसे ढेंकनाल में क़रीब 45 सड़क व फुटपाथ विक्रेता प्रशिक्षण सत्र में शामिल हुए। बाक़ी सभी सत्रों में पथ-विक्रेता व बस्ती के मुद्दे पर साथ में चर्चा किया गया था, ये एक मात्र सत्र था जो सिर्फ़ पथ-विक्रेता के अधिकारों पर था। बस्ती की ज़बरन बेदख़ली से लड़ने के लिए बनाए गये मोड्यूल की तरह इस मुद्दे पर भी एक मोड्यूल बनाया गया है और यह एक पाइलट सत्र की तरह था। शामिल हुए सभी साथियों को काम करने के संवैधानिक अधिकारों और पथ-विक्रेता क़ानून के बारे में बताया गया। सभी साथियों को इस बारे में पता नहीं था इसलिए उन्हें लगा कि अब तक वो कितना असहाय महसूस कर रहे थे जबकि उनके लिए इतना संरक्षण प्राप्त है। उन्होंने कहा कि उनकी पहली लड़ाई अब शहर में क़ानून के प्रावधानों के हिसाब से टाउन वेण्डिंग कमिटी बनवाना है और उसमें ईमानदार पथ-विक्रेताओं को भेजना सबसे आवश्यक है। हाल ही में बलरामपुर में हुए आंदोलन जहाँ पर गाँव की महिलाओं ने साथ आकर एक शराब की फ़ैक्टरी वाले प्रोजेक्ट को बंद करवा दिया वैसे ही साथ आकर लड़ने की प्रेरणा लेते हुए लोगों ने कहा कि हम सभी पथ-विक्रेताओं को एक करेंगे और अपनी लड़ाई शुरू करेंगे।
चारों सत्र में अधिकारों व प्रावधानों के अलावा सहायता इकाई के फ़ोन नम्बर और वेबसाइट के बारे में भी बताया कि यदि अपनी लड़ाई में किसी भी तरह के साथ-सहायता की ज़रूरत हो या कभी भी कोई दिक़्क़त आए तो आप इस नम्बर पर फ़ोन कर सकते हैं। वो नम्बर है 9833900200 और वेबसाइट है: www.antievictionsupport.org.
Ankit Jha, Project Associate